Diwali festival : जैन, बौद्ध और सिख संप्रदाय में दिवाली का महत्व, जानें इससे जुड़ी प्रमुख परंपराएं

History of Diwali
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History of Diwali
दिवाली का इतिहास काफी पुराना है। सिंधु घाटी सभ्यता और मुगल कॉल में भी यह मनाया जाता रहा। हिंदुओं के साथ जैन, बौद्ध और सिख पंथ के लोग भी दिवाली उत्सव धूमधाम से मनाते हैं।

Diwali festival: रोशनी का पर्व दिवाली न सिर्फ हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है, बल्कि इसे जैन, बौद्ध और सिख पंथ के लोग भी धूमधाम से मनाते हैं। दिवाली का त्योहार हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। दिवाली इतिहास 3300 वर्ष पुराना है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भी इसे मनाते थे।

बौद्ध धर्म: 'अप्पों दीपो भव' का उपदेश
बौद्ध धर्म में भी दिवाली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध 17 साल बाद अपने अनुयायियों के साथ गृह नगर कपिल स्वस्तु लौटे थे। उनके स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई गई थी। साथ ही भगवान बुद्ध ने 'अप्पो दीपो भव' का उपदेश देकर दिवाली को एक नया आयाम दिया था।

सिख समुदाय: दिवाली में स्वर्ण मंदिर की नींव
हिंदुओं की तरह ही सिख समुदाय भी दिवाली का पर्व काफी धूमधाम से मनाते हैं। इसी दिन साल 1577 में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी गई थी, जो सिखों के सबसे बड़े तीथों में से एक है। इसके अलावा सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह को इसी दिन कैद से रिहाई मिली थी।

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जैन धर्म: महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस
जैन धर्म में भी दिवाली धूमधाम से मनाई जाती है। मान्यता है कि है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी को कार्तिक अमावस्या के दिन ही मोक्ष मिला था। इसी दिन उनके पहले शिष्य गौतम गणधर को ज्ञान की प्राप्ति हुई। जैन संप्रदाय के लोग दिवाली को महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। जैन धर्म में पूजा का तरीका अलग है पर यहां भी हिंदू धर्म की तरह ही दीप जलाकर दिवाली मनाई जाती है।

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