शादी और सियासत के बीच घमासान
कल तक दबी जुबान से जो बाते हो रही थीं आज खुलेआम उस पर बहस हो रहा है। घर- रिश्तेदार से लेकर विपक्षी दल के लोग भी बोलते नजर आ रहे हैं। तेजस्वी यादव बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं। अभी हाल ही में गुप-चुप तरीके से दिल्ली में उनकी शादी हुई है। बताया जा रहा है अपनी 6 वर्ष पूर्व महिला मित्र से उन्होंने शादी रचाई है। तो इसमें विवाद क्या है

ललित विजय, स्वतंत्र पत्रकार
शादी और सिसायत में यूं तो सीधा कोई तालमेल नहीं है लेकिन हमारे यहां किसी भी चीज को लेकर सवाल खड़े किये जाते रहें हैं। विवाद तब और भी गहरा हो जाता है जब किसी नामचीन व्यक्ति से जुड़ा मसला हो।
समझना जरुरी है, कौन सा मसला है जिसपर आज-कल बिहार में बातें हो रही हैं? क्या ऐसी बातें होनी चाहिए? क्या निजी तौर पर लिये गए फैसले जो कि व्यक्तिगत होते हैं उनपर सवाल उठना चाहिए? क्या शादी जैसे मसलों पर राजनीति नहीं हो रही? बड़ा सवाल आप इक्कसवीं सदी के युवाओं से क्या उम्मीद रखते हैं? क्या खुद के फैसले लेने के लिए युवा आज भी स्वतंत्र नहीं? या फिर सामाजिक परंपराओं का युवा पीढ़ि तिरस्कार कर रही है? क्या परिवार या मां-बाप के फैसले को युवा पीढ़ि मानने को तैयार नहीं? क्या जाति या धर्म के कट्टर लोगों के दिन लद चुके हैं? क्या निजी मामलों का राजनीतिकरण होना चाहिए? क्या समाज का मिजाज अब बदल रहा है? या फिर निजी तौर पर भी ऐसे बड़े लोगों द्वारा लिए गए फैसले से समाज का नजरिया बदलता है परिणामस्वरुप फैसले में निजता रह नहीं जाती? और आखिर में क्या सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों का निजी जीवन रह नहीं जाता लिहाजा समाज को देखकर ही उन्हें हर फैसला करना चाहिए?
कल तक दबी जुबान से जो बाते हो रही थीं आज खुलेआम उस पर बहस हो रहा है। घर- रिश्तेदार से लेकर विपक्षी दल के लोग भी बोलते नजर आ रहे हैं। तेजस्वी यादव बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं। अभी हाल ही में गुप-चुप तरीके से दिल्ली में उनकी शादी हुई है। बताया जा रहा है अपनी 6 वर्ष पूर्व महिला मित्र से उन्होंने शादी रचाई है। तो इसमें विवाद क्या है?
दुल्हा यानी तेजस्वी के मामा साधु यादव ने यह कहते हुए सवाल खड़ा किया कि तेजस्वी ने समूचे यादव समाज व बिहार प्रांत का अपमान किया है, गैर बिरादरी एवं दूसरे धर्म में शादी करके, लिहाजा उन्हें समाज से बहिष्कृत किया जाना चाहिए। वो यहीं तक नहीं रुके कई ऐसे हमले किये मसलन वोट बिहार के लोग दें और शादी कहीं और! विपक्ष के नेता होते हुए इनकी जबावदेही पहले प्रदेश की जनता के प्रति है न कि बाहरी राज्यों के प्रति! लालू जी ने अपनी पहली बेटी की शादी सिर्फ इसलिए एक परिवार में नहीं होने दिया, कि लड़के के पिता ने अन्तरजातीय विवाह किया था तो फिर उन्होंने अपने बेटे को क्यूं नहीं रोका वगैरह...वगैरह
उधर तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप ने यह कहते हुए मामा को जबाव दिया कि यह कंस है इसके समय बहन, बेटियों की इज्जत बिहार में सुरक्षित नहीं थी! हमें बिहार आने दो हिम्मत है तो मेरे सामने खड़े हो के दिखा देना..
आपसी रिश्ते कितने तल्ख हैं यह उपरोक्त भाषा से समझा जा सकता है। कई ऐसी बातें कही गईं जो लिखने के लायक नहीं! तो पार्टी के कर्यकर्ताओं ने भी साधु यादव के कथन का विरोध किया और पुतला तक दहन कर दिया। जो लोग बिहार की राजनीति को समझते हैं वह यह जरुर जानते होंगे कि लालू-राबड़ी के शासनकाल में साधु की क्या चलती थी। कालांतर में रिश्तों में इतनी करवाहट आई कि साधु दूसरी पार्टी में चले गए और अभी बताने की जरुरत नहीं उनका दर्द क्यूं झलका!
बहरहाल साधु यादव ने तो कई सवाल खड़े कर ही दिये जिसपर चर्चा होना स्वाभाविक था। और होना प्रारंभ भी हो गया। विपक्ष के लोग सवाल खड़े कर रहें हैं कि यह वही लड़की है जिसकी तस्वीर जब कुछ माह पूर्व मीडिया में लीक हुई तो तेजस्वी यादव ने पहचानने से इंकार कर दिया तो फिर अब शादी के लिए कैसे मान गए..? क्या इसके पीछे कोई राज छुपा है?
दूसरा यह कि जब नेता प्रतिपक्ष जाति-धर्म को नहीं मानते, ए टू जेड की बात करते हैं, जो कि अच्छी बात है। साथ ही आधुनिकता के पैरोकार हैं, तो फिर बिहार में जातिय जनगणना के पक्ष में कैसे खड़े हो जाते हैं?
अब सवाल यहां यह है कि व्यक्तिगत मसलों पर कितनी बात-चीत होनी चाहिए या इसको इस नजरिये से देखना जरुरी है कि ऐसे लोगों का जो पब्लिक फिगर हैं उनका निजी जीवन होता ही नहीं है! सब सार्वजनिक ही होता है। मतलब आपका काम या सामाजिक जीवन, व्यक्तिगत जीवन को न सिर्फ प्रभावित कर रहा है अपितु लोग निजी जीवन को भी सार्वजनिक रुप से ही देखने के आदी हैं। लिहाजा आपका हर फैसला सामाजिक कसौटियों पर कसा जाने लगता है और यही वजह है कि मामला सार्वजनिक होते ही लोगों की प्रतिक्रिया भी आने लगती है।
इक्कीसवीं सदी में निःसंदेह दुनिया बदल रही है और हमारा समाज भी। इससे हम सब भी अछूते नहीं रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आज युवा पीढ़ि अपने-आप को देखते हुए निर्णय ले रही है। आधुनिकता व स्वच्छंदता के दौर में 'अनुभव' कहीं खो सा गया है। या फिर यूं कहें कि टेक्नोलॉजी के कारण कम समय में युवाओं को अधिक जानकारी प्राप्त हो जा रही है। हम सब जानते हैं भारत एक समृद्ध परंपरा वाला देश है जहां कि संस्कृति विशाल है। साथ ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का तमगा भी भारत के पास है। ऐसे में युवा पीढ़ि को संभलकर चलने व अपने मूल्यों को बचाने का भी दारोमदार उतना ही है जितना स्वतंत्र होकर निर्णय करने का है।
सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों के बारे में प्रारंभ से ही एक राय समाज के अंदर बनी रहती है। या यूं कहें कि उनके हर आचरण पर लोगों की नजरें टिकी रहती हैं चाहे वो निजी ही क्यूं ना हों! ऐसे में सबसे बड़ी जिम्मेवारी उन्हीं लोगों की हो जाती है जो सार्वजनिक जीवन जीते हैं। उनके किसी भी फैसले से लोग समाज में सीखते भी हैं और उसका अनुकरण भी करते हैं।
हमारे यहां राजनेता, फिल्मी हस्तियां, खिलाड़ी, बिजनेस आयकॉन, मीडिया व अन्य किसी क्षेत्र में नाम कमाने वाले जितने भी लोग होते हैं उनसे समाज प्रभावित होता है। माना यही जाता रहा है कि उनके अंदर चारित्रिक मूल्य, संस्कार, बौद्धिक योग्यता, नैतिकता, दूरदृष्टि जैसे तमाम गुण विध्धमान होंगे। यही कारण है कि लोग उनको सर आंखों पर बिठाते हैं। ऐसे में उनलोगों की जिम्मेवारी समाज व देश के प्रति ज्यादा बढ जाती है।
निजी फैसले तो निजी ही होते हैं और उनपर बहस तो होना नहीं चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं आया है। लिहाजा इस शादी के फैसले पर भी बातें हो ही रहीं हैं। तेजस्वी की पत्नी ईसाई धर्म से हैं और उनका नाम रेचल है लेकिन अब नाम बदलकर राजश्री यादव हो गया है। तो बिहार के परिपेक्ष्य में आप देख लीजिए क्यूंकि ये कोई और नहीं प्रतिपक्ष के नेता की पत्नी हैं। सवाल यह है कि जब शादी हो गई तो फिर नाम में क्या है! लेकिन
यहां हर बात में राजनीति होने की संभावना बनी रहती है तदनुसार लोग चीजों को समायोजित करने में लग जाते हैं।
मीरा बाई ने लिखा है "नेह की डोरी तुम संग जोरी, हमसे तो नहीं जावेगी तोड़ी" तो क्या बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता ने अपने निजी जीवन में अपने ही संकल्प को दोहराया है जिससे उनका विश्वास और गहरा हुआ है या फिर यूं कहें कि मोहब्बत में शादी का फैसला लिया है जिसे बेवजह तूल देना उचित नहीं!
वजह जो कुछ हो लेकिन हमें निजी मसलों पर राजनीति से बचना चाहिए। हर किसी को अधिकार है अपने हिसाब से जीवन जीने का चाहे वो साधारण व्यक्ति हो या विशेष। इस अधिकार से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता है। पाखंड करने वाले लोग आगे आकर कुछ ऐसी व्यूहरचना करते हैं जिससे समाज कलंकित होता है। इससे भी युवा पीढ़ि को बचने की आवश्कता है। समाज के ताने-बाने को समझना भी अपनी योग्यता को निखारने जैसा ही है। हमें तथाकथित ठेकेदोरों से भी सावधान रहना है। बस ख्याल आधुनिकता से इतर संस्कृति का भी हो, जो हमारे लिए अनमोल है।