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Ramlala statue creation process: अयोध्या के श्रीराम मंदिर में विराजित रामलला की नई प्रतिमा के मनमोहक बनने की कहानी मूर्तिकार की पत्नी विजेता योगराज ने साझा की है। विजेता ने बताया कि मूर्ति बनाने से पहले पति अरुण योगराज ने कई स्कूलों को दौरा किया। इससे उन्हें बच्चों का हाव-भाव समझने में मदद मिली

Ramlala statue creation process:अयोध्या के श्रीराम मंदिर में रामलला की नई प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। कर्नाटक के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने इसे बनाया है। मूर्ति की मुस्कान मनमोहक है। बाल स्वरूप में बनी इस प्रतिमा की देश-दुनिया में तारीफ हो रही है। अरुण योगराज की पत्नी विजेता योगराज ने मूर्ति को लेकर कई खुलासे किए हैं। विजेता योगीराज ने बताया कि मूर्ति को तैयार करने से पहले अरुण योगीराज ने बच्चों के हाव-भाव पर खूब रिसर्च की। बच्चों के स्कूलों का दौरा किया ताकि वह  बच्चों के चेहरों को गौर से देखें और उनकी भाव भंगिमाओं को समझ सकें। 

ट्रस्ट ने मूर्ति बनाने के लिए दिए थे कुछ निर्देश
विजेता ने बताया कि मूर्ति बनाने से पहले श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मूर्ति कैसी होनी चाहिए इसके बारे में कुछ निर्देश दिए थे। ट्रस्ट ने कहा था कि मूर्ति पांच साल के बालक स्वरूप में होनी चाहिए। देखकर ऐसा लगे की यह किसी राजकुमार की मूर्ति है। चेहरे पर एक दैवीय आभा होनी चाहिए और चेहरा मुस्कुराता हुआ होनी चाहिए। इसके बाद जो भी किया अरुण ने अपनी कल्पना से किया। अरुण ने बच्चों की शारीरिक बनावट के बारे में विस्तार से जानने के लिए ह्यूमन एनेटॉमी से जुड़ी किताबें पढ़ी। बच्चों के शारीरिक बनावट के बारे में गहराई से समझा

मूर्ति बनाने से पहले तैयार की स्केच
रिसर्च पूरी होने के बाद अरुण योगीराज ने प्रतिमा की एक स्केच तैयार की। स्केच में सबसे पहले प्रतिमा का चेहरा तैयार किया। इसमें बारीकी से आंखें, गाल, होंठ, नाक और ठुड्डी का खाका खींचा। होंठ को तैयार करने के दौरान मुस्कुराहट संतुलित हो इसका खासा ध्यान रखा। स्केचिंग से संतुष्ठ होने के बाद अरुण योगीराज ने श्याम शिला पर मूर्ति की एक-एक भाव भंगिमा को उकेरना शुरू किया। इसी प्रक्रिया को अपनाकर अरुण ने एक मास्टरपीस तैयार कर दिया। अरुण के पास पत्थर पर मूर्ति उकेरेने का सिर्फ एक मौका था और उसने यह कर दिखाया। 

कहां से आया कृष्ण शिला चुनने का आइिडया
विजेता योगीराज ने बताया कि कृष्ण शिला चुनने का सुझाव ट्रस्ट ने ही दिया था। इसकी वजह यह है कि इस किस्म के पत्थर पर एसिड, बारिश या मौसम का कोई असर नहीं होता। अगर इस पर कोई चीज चढ़ाई जाएगी तो उसकी शुद्धता पर कोई असर नहीं होगा। साथ ही मूर्ति पर भी इसका कोई असर नहीं होगा। इस पर चढ़ाई चीजें बिल्कुल शुद्ध बनी रहेंगी इसलिए प्रसाद के तौर पर उन्हें खाने से किसी प्रकार का नुकसान होने की संभावना नहीं है। इस तरह के पत्थर सिर्फ कर्नाटक के कुछ हिस्सों में ही पाए जाते हैं। यहां तक कि इस किस्म के पत्थरों को हजार साल तक कोई नुकसान नहीं होता। 

क्यों 51 इंच ही तय की गई लंबाई
अरुण योगीराज की पत्नी ने यह भी बताया कि रामलला की प्रतिमा की ऊंचाई 51 इंच ही क्यों रखी गई है। मूर्ति की एक बड़ी विशेषता यह है कि हर रामनवमी पर इसके माथे पर सूर्य की किरणें पड़ेंगी। मूर्ति को यह खासियत देने के लिए इसका मात्र 51 इंच का होना जरूरी था।  बता दें कि  200 किलोग्राम वजनी इस मूर्ति को कमल के फूल पर खड़ा दिखाया गया है। योगीराज ने मूर्ति बनाने के लिए पारंपरिक टूल्स के साथ ही सॉफ्टवेयर का भी इस्तेमाल किया। 

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