गजब! मौत को छोड़कर हर बीमारी का रामबाण इलाज है ''बरगद'' में
बरगद की हवाई जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं।

बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड़ कभी नष्ट नहीं होता है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है।
इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है।
बरगद के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वंर माना जाता है।
पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि तीन महीने तक अगर बरगद के दूध (लेटेक्स) की दो बूंद बताशे में डालकर खाया जाए तो पौरूष बढ़ता है और शारीरिक ताकत में बढ़ावा होता है।
बरगद की हवाई जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं, इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकता है।
हवा में तैरती ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती है।
लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर चूर्ण बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़ी बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफेदी प्राप्त करते हैं। प्रतिदिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।
पेशाब में जलन होने पर बरगद की हवाई जड़ों (10 ग्राम) का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची (2 - 2 ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए, तो अतिशीघ्र लाभ होता है। यही फॉर्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।
पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर लेप बनाया जाए और रोज सोते समय स्तनों पर मालिश करने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।
पैरों की फटी पडी एडियों पर बरगद का दूध लगाया जाए तो कुछ ही दिनों फटी एडियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड जाते हैं। डांग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार प्रतिदिन रात में सोने से पहले बरगद के दूध को एडियों पर लगाना चाहिए।
बरगद की ताजा कोमल पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर चूर्ण बनाया जाए, इस चूर्ण की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रतिदिन एक बार शहद के साथ लेने से याददाश्त बेहतर होती है।
बरगद के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेपित किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। कई इलाकों में आदिवासी ज्यादा गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोड़ा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देते है और सूती कपड़े से घाव पर पट्टी लगा दी जाती है। माना जाता है कि दो दिन बाद पट्टी हटाने पर घाव काफी हद तक सूख चुका होता है।
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