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Norway's Wealth Fund: नार्वे सरकार ने नैतिक चिंताओं के चलते यह फैसला लिया है। जिसके मुताबिक, नार्वे का सरकारी पेंशन फंड अब अडाणी पोर्ट्स में नहीं लगाया जाएगा।

Norway's Wealth Fund: देश के दूसरे सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडाणी को नार्वे सरकार ने जोर का झटका दिया है। नॉर्वे के केंद्रीय बैंक (नोर्गेस बैंक) ने बुधवार को नैतिक चिंताओं के चलते अपने सरकारी पेंशन फंड से 3 कंपनियों को बाहर करने की घोषणा की है। इनमें भारत की अडाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (APSEZ) भी शामिल है। अन्य दो कंपनियां अमेरिका की L3हैरिस टेक्नोलॉजीस (L3Harris Technologies) और चीन की वीचाई पावर (Weichai Power) हैं। 

हमारी पोर्ट कैपिसिटी का 24% अडाणी पोर्ट के पास
बता दें कि अडाणी पोर्ट्स, गौतम अडाणी के बिजनेस समूह की एक कंपनी है, जो भारत समेत दुनिया के कई देशों में पोर्ट मैनेजमेंट और माल ढुलाई के कामकाज से जुड़ी है। यह भारत में सबसे बड़े निजी पोर्ट ऑपरेटर और एंड-टू-एंड लॉजिस्टिक्स प्रदाता है, जिसके 13 पोर्ट और टर्मिनल हैं। अडाणी पोर्ट्स भारत में पोर्ट कैपेसिटी का 24 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करती है। गुरुवार को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर अडाणी पोर्ट्स का शेयर मामूली गिरावट के साथ 1334 रुपए पर ट्रेड कर रहा था। 

दो साल से नार्वे की निगरानी में थी अडाणी पोर्ट्स
नॉर्वे के केंद्रीय बैंक ने कंपनियों में संभावित निवेश को लेकर "युद्ध या संघर्ष की स्थिति में नागरिकों के अधिकारों के उल्लंघन" के बारे में चिंता जताई है। नोर्गेस बैंक का यह फैसला 21 नवंबर, 2023 की नैतिकता परिषद की सिफारिश के बाद आया है। बैंक ने बताया कि अडाणी पोर्ट्स मार्च 2022 से हमारी निगरानी में है, लेकिन अब इसे सूची से हटाने के बाद निगरानी खत्म हो गई है। नोर्गेस बैंक के बयान में तीनों कंपनियों में फंड की हिस्सेदारी का खुलासा नहीं किया गया है। 

L3 हैरिस और वीचाई पावर पर कार्रवाई क्यों?
नोर्गेस बैंक की ओर से L3 हैरिस और वीचाई पावर को पेंशन फंड से बाहर किया गया है। बताया जा रहा है कि अमेरिकी कंपनी को परमाणु हथियारों के विकास और प्रोडक्शन में शामिल होने के कारण फंड से बाहर रखा गया है। वहीं, परिवहन उपकरण निर्माता वीचाई पॉवर को हथियारों की बिक्री का समर्थन और अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करने के लिए लिस्ट से हटाया गया है। 

क्या है नॉर्वे का सरकारी पेंशन फंड ग्लोबल?

  • सरकारी पेंशन फंड ग्लोबल की शुरुआत नॉर्वे के ऑयल वेल्थ मैनेजमेंट करने, वर्तमान और भावी की पीढ़ियों के लिए वित्तीय स्थिरता और दीर्घकालिक बचत के लिए की गई थी। 1969 में उत्तरी सागर में तेल की खोज से मिले रेवेन्यू को जिम्मेदारी से मैनेज करने और असंतुलन से बचने के लिए यह फंड बनाया गया था।
  • 1990 में फंड की स्थापना के लिए कानून पारित किया गया। इसके बाद 1996 में पहली बार इसमें राशि जमा की गई। इसे दुनिया का सबसे बड़ा सॉवेरियन (संप्रभु) वेल्थ फंड है, जो कि नॉर्वे की इकोनॉमी की सुरक्षा के लिए खासतौर से विदेशों में निवेश करता है। दुनियाभर की करीब 9 हजार कंपनियों में इसकी होल्डिंग है। नॉर्वे वेल्थ फंड के पास लिस्टेड ग्लोबल कंपनियों के करीब 1.5% शेयर हैं।
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