Angel Tax Regime: बजट में एंजेल टैक्स खत्म करने का ऐलान, स्टार्टअप्स के लिए बड़ी राहत; जानें क्या था इसका नुकसान?

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एंजेल टैक्स सिस्टम मूल रूप से 2012 में मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए एक एंटी-एब्यूज उपाय के तौर पर लागू किया गया था। इसे खत्म करने में 12 साल लगे, स्टार्टअप इंडस्ट्री को नई दिशा मिली।

Angel Tax Regime: देश में स्टार्टअप्स में ज्यादा निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई के बजट भाषण में सभी प्रकार के निवेशकों के लिए एंजेल टैक्स को खत्म करने की घोषणा की। सरकार के इस फैसले से स्टार्टअप्स और निवेशकों के चेहरे खिल गए। एंजेल टैक्स सिस्टम मूल रूप से 2012 में मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए एक एंटी-एब्यूज उपाय के तौर पर लागू किया गया था। सालों से स्टार्टअप्स और निवेशक टैक्स अधिकारियों द्वारा परेशान किए जाने के बारे में चिंता जता रहे थे।

भारतीय स्टार्टअप्स के लिए महत्वपूर्ण फैसला: एक्सपर्ट
3One4 कैपिटल के मैनेजिंग पार्टनर सिद्धार्थ पई ने कहा- "सभी प्रकार के निवेशकों के लिए एंजेल टैक्स को हटाने का फैसला एक बड़ा सुधार है। यह जरूरी है कि स्टार्टअप्स भारत में रहें और यहीं से प्रोडक्शन करें। यह भारतीय स्टार्टअप्स के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भारतीय स्टार्टअप ग्रोथ में एक निर्णायक पल है। कैपिटल पर टैक्स लगाना पूंजी निर्माण के उल्ट है और इसे लंबे समय से स्टार्टअप्स और निवेशकों को परेशान करने के लिए इस्तेमाल किया गया। अनिवार्य डिमैटिंग और सेक्शन 68 के कारण टैक्स रिटर्न में लिस्टेड इन्वेस्टर्स की एंट्री ने पारदर्शिता अंतर को खत्म कर दिया है, जिसके लिए एंजेल टैक्स बनाया गया था। इसमें 12 साल लगे, लेकिन स्टार्टअप इंडस्ट्री अब राहत की सांस ले सकता है कि क्योंकि खतरनाक एंजेल टैक्स हटा दिया गया है।

वित्त विधेयक 2023 में एंजेल टैक्स में मिली थोड़ी राहत
पिछले साल केंद्रीय बजट में एंजेल टैक्स प्रावधान में किए गए एक बदलाव ने विदेशी निवेशकों द्वारा देश में स्टार्टअप निवेश के बारे में चिंताएं बढ़ा दी थीं। इसका कारण यह था कि वित्त विधेयक 2023 में तथाकथित एंजेल टैक्स सिस्टम के तहत विदेशी निवेशकों से जुटाई गई राशि के लिए छूट को खत्म कर दिया गया था। हालांकि, सेबी रजिस्टर्ड वैकल्पिक निवेश कोष द्वारा किए गए निवेश के लिए छूट अभी भी जारी रही।

मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए लागू हुआ था एंजेल टैक्स
एंजेल टैक्स सिस्टम मूल रूप से 2012 में मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए एक एंटी-एब्यूज उपाय के तौर पर शुरू किया गया था। इसमें प्रावधान था कि जब भी कोई स्टार्टअप फंड जुटाएगा और उस फंडिंग राउंड का मूल्यांकन शेयरों के उचित मूल्य से अधिक होगा, तो उस पर टैक्स लगाया जा सकता है। सालों से स्टार्टअप्स और निवेशकों ने वास्तविक निवेश के मामले में भी कर अधिकारियों द्वारा परेशान किए जाने के बारे में चिंता जताई गई थी।

सालों की शिकायतों के बाद सरकार ने 2019 में एक रियायत दी कि डीपीआईआईटी-रजिस्टर्ड स्टार्टअप्स को इस प्रावधान से छूट दी जाएगी। लेकिन सूक्ष्म रूप से यह साफ हुआ कि यह सभी ऐसे स्टार्टअप्स के लिए एक सामान्य छूट नहीं थी। यह केवल उन लोगों पर लागू होती थी जिन्हें एक अन्य सरकारी निकाय इंटर-मिनिस्ट्रियल बोर्ड (आईएमबी) द्वारा सर्टिफाई किया गया था।

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