अवध समृद्धि और अवध मधुरिमा: बाग में लगाएं कलरफुल आम, केंद्रीय बागवानी संस्थान ने ईजाद की दो नई किस्में 

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) ने अवध समृद्धि और अवध मधुरिमा नाम से आम की दो नई किस्में ईजाद की है। ट्रायल के बाद इनकी लांचिंग की जाएगी।

Updated On 2024-09-25 16:41:00 IST
Mango New Variety in CISH

Mango New Variety in UP : आप बागवानी के शौकीन हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है। लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) ने आम की दो नई किस्में ईजाद की है। अवध समृद्धि और अवध मधुरिमा नाम की इन किस्मों से आम की वैरायटी में विविधता आएगी। यह आम काफी करलफुल और स्वादिष्ट हैं। लिहाजा, मार्केट में कीमत भी अच्छी मिलने की उम्मीद है। 

अवध समृद्धि आम  
अवध समृद्धि और अवध मधुरिमा आम का अभी ट्रायल चल रहा है। इसके बाद लॉन्चिंग होगी। CISH के मुताबिक, अवध समृद्धि आम की एक जलवायु-प्रतिरोधी संकर किस्म है। इसका रंग चमकीला और वजन 300 ग्राम के करीब होता है। पेड़ मध्यम आकार का होता है। जो कि गहन बागवानी के लिए उपयुक्त है। यह आम जुलाई और अगस्त के बीच पकता है। तब तक अन्य किस्म के आम झड़ चुके होते हैं।  

अवध मधुरिमा 
अवध मधुरिमा का भी क्षेत्रीय परीक्षण चल रहा है, लेकिन इसकी लांचिंग में थोड़ा समय लगता है। आम की इन नई किस्मों से सर्वाधिक फायदा आम को होगा। क्योंकि आम का सर्वाधिक उत्पादन इसी राज्य में होता है। आकर्षक रंग, औसत आकार और लंबी शेल्फ लाइफ के चलते आम के इस किस्म के निर्यात की संभावनाएं काफी हैं।  

अंबिका आम 
सीआईएसएच ने इसके पहले आम की अंबिका और अरुणिका प्रजाति विकसित की थी। अंबिका नियमित फल और अधिक उपज देने वाली किस्म है। पीले छिलके, गूदा गहरा पीला, ठोस और कम रेशे वाला यह आम देर से पकता है। इसकी भंडारण क्षमता भी अच्छी है। इसका वजन 350-400 ग्राम होता है। रोपण के 10 साल बाद 80 किलो आम का उत्पादन ले सकते हैं। 

अरुणिका आम 
अरुणिका आम भी देर से पकने और नियमित फल देने वाली किस्म है। इसका वजन 190-210 ग्राम के बीच होता है। गूदा नारंगी पीला, ठोस और कम रेशेदार होता है। जबकि, पेड़ बौना और सघन छाया वाला होता है। रोपण के 10 वर्ष बाद लगभग 70 किलोग्राम प्रति पौधा उत्पादन लिया जा सकता है। 

दो दशक में ईजाद होती है नई किस्म 
CISH के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आशीष यादव ने बताया कि आम की नई प्रजाति डेवलपर करने में दो दशक का समय लग जाता है। संस्थान में ही इसका लंबा ट्रायल चलता है। आत्मसंतुष्टि के बाद अन्य संस्थाओं में ट्रायल के लिए भेजा जाता है। हर जगह पॉजिटिव फीडबैक मिलने के बाद ही किसी आम की नई प्रजाति लांच की जाती है। 

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