'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी मजहबी संस्थान नहीं', केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में रखी दलील, आज फिर सुनवाई

Aligarh Muslim University minority status: तुषार मेहता ने कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना 1875 में हुई थी। तब से अब तक यह विश्वविद्यालय हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है। 

Updated On 2024-01-10 12:21:00 IST
Aligarh Muslim University

Aligarh Muslim University minority status: सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University-AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुनवाई चल रही है। पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं।

पीठ इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही है कि क्या केंद्र सरकार से मिल रही आर्थिक मदद से चलने वाला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है? पीठ को यह भी विचार करना है कि अनुच्छेद 30 के तहत किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मानदंड क्या हैं? क्या संसदीय कानून द्वारा बना कोई शैक्षणिक संस्थान अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त कर सकता है? सुनवाई सोमवार को शुरू हुई थी, जो बुधवार को भी जारी है। 

किसी मजहब का नहीं एएमयू
मंगलवार को केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं है और न ही हो सकता है। क्योंकि कोई भी विश्वविद्यालय जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है, वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है। विश्वविद्यालय की स्थापना 1875 में हुई थी। तब से अब तक यह विश्वविद्यालय हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है। 

NAC ने दी ए प्लस ग्रेडिंग
तुषार मेहता ने आगे कहा कि एएमयू एक मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में कार्य करने वाला विश्वविद्यालय नहीं है, क्योंकि इसकी स्थापना और प्रशासन अल्पसंख्यकों द्वारा नहीं किया गया है। मेहता ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क-2023 द्वारा एएमयू को भारत में विश्वविद्यालयों और स्वायत्त संस्थानों में नौवां स्थान दिया गया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की एक स्वायत्त संस्था, राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) ने विश्वविद्यालय को ए प्लस कैटेगरी में वर्गीकृत किया है।

पिछले कई दशकों से कानूनी पेंच में फंसा अल्पसंख्यक दर्जे का मामला
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला पिछले कई दशकों से कानूनी चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि चूंकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है। हालांकि, जब संसद ने 1981 में एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किया तो इसे अपना अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया। 

जनवरी 2006 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था। केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की। यूनिवर्सिटी ने इसके खिलाफ अलग से याचिका भी दायर की।

भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले लेगी। इसने एस अजीज बाशा मामले में शीर्ष अदालत के 1967 के फैसले का हवाला देते हुए दावा किया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था, क्योंकि यह सरकार द्वारा वित्त पोषित एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।

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