झुमका गिरा रे...: फिल्मी मिथक से ग्लोबल ब्रांड बनने तक, बरेली के 'झुमके' की अनकही दास्तान!
अपनी बारीक जालीदार नक्काशी और हल्के वजन के लिए मशहूर यह आभूषण करोड़ों का विदेशी व्यापार करता है। बरेली की मूल निवासी, ग्लोबल स्टार प्रियंका चोपड़ा ने कई अंतरराष्ट्रीय इंटरव्यूज में गर्व से 'बरेली के झुमके' का जिक्र किया है।
बरेली का झुमका सिर्फ एक आभूषण नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की कलात्मक पहचान, सांस्कृतिक धरोहर भी है।
बरेली : "झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में..." साल 1966 में फिल्म 'मेरा साया' का यह गीत जब रेडियो पर गूंजा, तो किसी ने नहीं सोचा था कि एक गीत एक पूरे शहर की किस्मत बदल देगा।
आज दशकों बाद, बरेली का झुमका सिर्फ एक आभूषण नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की कलात्मक पहचान, सांस्कृतिक धरोहर और करोड़ों के व्यापार का मुख्य केंद्र बन चुका है।
सोने-चांदी की सूक्ष्म नक्काशी से लेकर पीतल की किफायती चमक तक, बरेली का यह आभूषण अब सात समंदर पार अपनी चमक बिखेर रहा है। यह रिपोर्ट बरेली के झुमके के उस सफर को दर्शाती है जिसने एक लोककथा को वैश्विक व्यापार में बदल दिया।
इतिहास की गहराइयों में झुमका - कब और कैसे हुई शुरुआत
बरेली में आभूषण और धातु शिल्प का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है, जो कि रुहेलखंड के नवाबों के शासनकाल से शुरू होता है। उस दौर में बरेली को "बांस-बरेली" के नाम से जाना जाता था, जहाँ हस्तशिल्प की जड़ें बहुत गहरी थीं।
हालांकि, 'झुमका' शब्द को इस शहर के साथ अटूट रूप से जोड़ने का श्रेय 1960 के दशक को जाता है। 1966 में रिलीज हुई फिल्म 'मेरा साया' में अभिनेत्री साधना पर फिल्माए गए गाने ने बरेली को एक ऐसी पहचान दी जिसकी उसने कभी कल्पना नहीं की थी।
इतिहासकारों और पुराने जौहरियों के अनुसार, उस समय बरेली के 'बड़ा बाजार' और 'कुतुबखाना' क्षेत्रों में आभूषणों की छोटी दुकानें हुआ करती थीं। गाने की लोकप्रियता के बाद, देश-दुनिया से आने वाले पर्यटक यहा सिर्फ झुमका खरीदने की इच्छा से आने लगे।
इस भारी मांग को देखते हुए स्थानीय कारीगरों ने पारंपरिक 'बुंदे' (कानों के टॉप्स) को छोड़कर बड़े और लटकन वाले झुमकों पर ध्यान केंद्रित किया। धीरे-धीरे बरेली के कारीगरों ने अपनी एक विशिष्ट शैली विकसित की, जिसे आज 'बरेली पैटर्न' के नाम से जाना जाता है।
बरेली में झुमका गिरने की कहानी - हकीकत या सिर्फ एक कल्पना?
अक्सर लोग सवाल पूछते हैं कि क्या वाकई बरेली के किसी बाजार में किसी का झुमका गिरा था? ऐतिहासिक तथ्यों और शोध के अनुसार, बरेली में किसी विशेष व्यक्ति का झुमका गिरने की कोई वास्तविक घटना दर्ज नहीं है। असल में, यह पूरी कहानी प्रसिद्ध गीतकार राजा मेहदी अली खान की कल्पना का परिणाम थी।
1966 में आई फिल्म 'मेरा साया' के लिए जब उन्होंने यह गीत लिखा, तब उन्होंने 'बरेली' शब्द का चुनाव केवल इसलिए किया क्योंकि यह गाने की लय और तुकबंदी में सटीक बैठ रहा था।
हालांकि, इस काल्पनिक कहानी ने धरातल पर इतना गहरा असर डाला कि बरेली के 'बड़ा बाजार' और 'कुतुबखाना' आने वाले लोग दशकों तक वहां की गलियों में उस 'गिरे हुए झुमके' का अहसास ढूंढते रहे।
इस लोककथा की दीवानगी को देखते हुए ही प्रशासन ने साल 2020 में विशाल 'झुमका तिराहा' बनाकर इस फिल्मी कहानी को एक स्मारक का रूप दे दिया। आज बरेली आने वाला हर व्यक्ति इस कहानी को हकीकत मानकर उस विशाल झुमके के साथ अपनी यादें संजोता है।
कारीगरी का जादू - क्या खास है बरेली के झुमके में?
बरेली के झुमकों की सबसे बड़ी विशिष्टता इसकी 'जालीदार नक्काशी' और 'झालर' की बनावट है। यहा के कारीगर 'हलो' (Hollow) तकनीक का उपयोग करते हैं, जिसमें धातु को अंदर से खोखला रखकर बाहर से विस्तृत डिजाइन तैयार की जाती है।
इसका लाभ यह है कि झुमका दिखने में बहुत भारी और शाही लगता है, लेकिन वजन में इतना हल्का होता है कि महिलाएं इसे घंटों पहन सकती हैं।
तकनीकी रूप से, यहा झुमकों के निर्माण में सोने, चांदी, और तांबे का प्रयोग होता है। इसमें 'दानेदार' काम और 'मीनाकारी' का अद्भुत समन्वय मिलता है। यहा के झुमकों में 'पीकॉक मोटिफ' और 'लोटस डिजाइन' सबसे अधिक लोकप्रिय हैं।
इसके अलावा, बरेली के झुमकों में इस्तेमाल होने वाला 'पेच' इतना सटीक होता है कि इसे हाथ से बनाई गई इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। यहा की 'एंटीक पॉलिश' इसे एक शाही और पुराना लुक देती है, जो आजकल की आधुनिक महिलाओं की पहली पसंद है।
झुमका तिराहा - एक फिल्मी सपने का धरातल पर उतरना
दशकों तक बरेली में 'झुमका' केवल गीतों और कहानियों में जीवित रहा, लेकिन स्थानीय लोगों और पर्यटकों की यह कसक साल 2020 में दूर हुई।
बरेली के पार्साखेड़ा क्षेत्र में दिल्ली-लखनऊ हाईवे के जीरो पॉइंट पर 'झुमका तिराहा' स्थापित किया गया। यह केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि बरेली की ब्रांडिंग का सबसे बड़ा प्रतीक है।
इस विशाल झुमके की ऊचाई लगभग 14 फीट है और इसका घेरा 8 फीट का है। इसे तैयार करने में करीब 200 किलो पीतल का उपयोग किया गया है और इसकी कुल लागत 18 लाख रुपये से अधिक रही।
इसे प्रसिद्ध वास्तुकार और डिजाइनरों की देखरेख में बनाया गया है। झुमके को रंग-बिरंगे पत्थरों, शीशों और बरेली की प्रसिद्ध जरी-जरदोजी की कलाकृतियों से सजाया गया है।
रात के समय यह झुमका विशेष लाइटों के प्रभाव में ऐसा लगता है जैसे आसमान से कोई स्वर्ण आभूषण जमीन पर उतर आया हो। आज यह स्थान बरेली का सबसे प्रमुख 'लैंडमार्क' और सेल्फी पॉइंट बन चुका है।
बाजार मूल्य और वैश्विक निर्यात
बरेली का आभूषण उद्योग केवल एक स्थानीय कारोबार नहीं रह गया है। आर्थिक आंकड़ों के अनुसार, बरेली का कुल आभूषण और हस्तशिल्प बाजार सालाना 800 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करता है।
यहा से उत्पादित झुमके भारत के सभी बड़े महानगरों जैसे मुंबई, दिल्ली, और हैदराबाद के शोरूम्स की शोभा बढ़ाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, बरेली के झुमकों का निर्यात अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और विशेष रूप से संयुक्त अरब अमीरात में होता है। दुबई के सोने के बाजारों में 'बरेली कट' और 'रुहेलखंडी डिजाइन' के झुमकों की जबरदस्त मांग है।
ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया के उदय ने छोटे कारीगरों को भी 'डायरेक्ट टू कंज्यूमर' मॉडल से जोड़ दिया है। अब न्यूयॉर्क या लंदन में बैठा ग्राहक इंस्टाग्राम के माध्यम से सीधे बरेली के जौहरी से अपना पसंदीदा झुमका ऑर्डर कर सकता है, जिससे निर्यात में पिछले तीन सालों में 40% की वृद्धि दर्ज की गई है।
सरकारी प्रोत्साहन और 'एक जनपद-एक उत्पाद' (ODOP)
उत्तर प्रदेश सरकार की 'एक जनपद-एक उत्पाद' (ODOP) योजना ने बरेली की कला को नई ऑक्सीजन दी है। हालांकि बरेली का मुख्य ODOP उत्पाद जरी-जरदोजी है, लेकिन सरकार ने 'झुमका' और 'आभूषण कला' को पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय के तहत एक प्रमुख ब्रांड के रूप में प्रमोट किया है।
सरकार द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों में बरेली के झुमकों को अलग से गैलरी दी जाती है।
हाल ही में, एमएसएमई विभाग ने स्थानीय कारीगरों के लिए 'डिजाइन सेंटर' और 'कॉमन फैसिलिटी सेंटर' बनाने की घोषणा की है, जहा आधुनिक सीएनसी मशीनों के जरिए झुमकों के डिजाइन में और अधिक बारीकी लाई जा सकेगी।
साथ ही, कारीगरों को मुद्रा योजना के तहत आसान ऋण उपलब्ध कराए जा रहे हैं ताकि वे बिचौलियों के चंगुल से निकलकर सीधे वैश्विक बाजार में अपना माल बेच सकें।
सेलिब्रिटी चॉइस - ग्लोबल मंच पर बरेली की चमक
बरेली का झुमका आज दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित रेड कारपेट्स पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। बरेली की मूल निवासी और ग्लोबल स्टार प्रियंका चोपड़ा ने न केवल फिल्मों में बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय इंटरव्यूज में गर्व से 'बरेली के झुमके' का जिक्र किया है।
उन्होंने अपनी शादी के दौरान भी भारतीय परंपरा को दर्शाते हुए बरेली के डिजाइन से प्रेरित आभूषणों को तरजीह दी थी।
बॉलीवुड की धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित, फैशन आइकन सोनम कपूर और विद्या बालन जैसी अभिनेत्रियों ने कई साड़ियों के विज्ञापन और फिल्मों में 'बरेली स्टाइल' के भारी झुमके पहनकर इसे एक नया ट्रेंड बनाया है।
हॉलीवुड की कुछ प्रसिद्ध स्टाइलिस्टों ने भी भारतीय 'बोहेमियन' लुक के लिए बरेली के कारीगरों द्वारा तैयार किए गए सिल्वर और ऑक्सिडाइज्ड झुमकों को अपने कलेक्शन में शामिल किया है।
डिजाइनरों का मानना है कि बरेली का झुमका एक 'स्टेटमेंट पीस' है, जो किसी भी साधारण परिधान को शाही लुक देने की क्षमता रखता है।