Ground Report Mandla Lok Sabha Seat: मंडला में भाजपा-कांग्रेस के आदिवासी चेहरों के बीच होगा कड़ा मुकाबला

Ground Report Mandla Lok Sabha Seat: मध्य प्रदेश की मंडला लोकसभा सीट में बीजेपी और कांग्रेस के बीच आदिवासी चेहरों में कड़े मुकाबले के आसार हैं। यहां पहले चरण यानी 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे।

Updated On 2024-03-31 16:00:00 IST
मंडला लोकसभा सीट ग्राउंड रिपोर्ट

दिनेश निगम ‘त्यागी’, विशेष संवाददाता (हरिभूमि)
Ground Report Mandla Lok Sabha Seat: आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित मंडला लोकसभा क्षेत्र में इस बार भाजपा-कांग्रेस के आदिवासी चेहरों के बीच कड़ा मुकाबला है। भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते आठवीं बार मैदान में हैं। कांग्रेस ने इनके मुकाबले विधानसभा का चुनाव लगातार जीत रहे ओमकार सिंह मरकाम पर दांव लगाया है। फग्गन केंद्रीय मंत्री रहते विधानसभा का चुनाव हारने के कारण ज्यादा सतर्क है जबकि ओमकार उन्हें घेरने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे।

कांग्रेस में भगदड़ से बीजेपी को होगा फायदा
मंडला में केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भाजपा की ओर से आठवीं बार मैदान में हैं। 2009 का सिर्फ एक चुनाव वे कांग्रेस के बसोरी सिंह मेशराम से 65 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हार गए थे। एक बार फिर उनकी राह आसान नहीं है। केंद्रीय मंत्री रहते विधानसभा का चुनाव हार जाने के कारण वे सतर्क हैं और बैकफुट पर भी। कांग्रेस की ओर से मैदान में उतरे ओमकार सिंह मरकाम 2014 का चुनाव फग्गन से हार चुके हैं लेकिन इस बार उनका मनोबल बढ़ा हुआ है। वे उन्हें चारों तरफ से घेरने की कोशिश कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव में फग्गन खुद को मुख्यमंत्री का भावी उम्मीदवार बता रहे थे, इसे लेकर भी उनका घेराव हो रहा है। ‘तू डाल डाल, मैं पात पात’ की तर्ज पर दोनों ओर से दांव चले जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस कमजोर नहीं है। इसलिए भी कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है लेकिन भाजपा को भरोसा है कि वह मोदी लहर के भरोसे चुनाव की नैया किनारे लगा लेगी। कांग्रेस में भगदड़ से भी भाजपा के पक्ष में माहौल बन रहा है।

भाजपा- कांग्रेस के पास मुद्दों की कमी नहीं
विकास और माहौल के लिहाज से भाजपा का पलड़ा भारी दिखता है लेकिन कांग्रेस के पास भी मुद्दों का अकाल नहीं है। भाजपा राम मंदिर, धारा 370 के साथ केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे कामों को मुद्दा बना रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा और अमित शाह जैसा रणनीतिकार पार्टी के पास है ही। दूसरी तरफ राहुल गांधी की यात्रा से कांग्रेस को ताकत मिली है। महंगाई और बेरोजगारी को रोक पाने में केंद्र की नाकामी भी एक  मुद्दा है। भाजपा द्वारा विधानसभा का चुनाव हार जाने के बाद भी फग्गन को प्रत्याशी बनाने से मतदाताओं के साथ भाजपा के अंदर भी असंतोष के स्वर उभर रहे हैं। कांग्रेस की विभिन्न वर्गों के लिए दी जा रहीं गारंटियां पार्टी का मुद्दा बन रहे हैं।

विधानसभा सीटों के लिहाज से कांग्रेस को बढ़त
मंडला लोकसभा क्षेत्र के तहत 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। विधानसभा चुनाव में इनमें से 5 पर जीत दर्ज कर कांग्रेस ने भाजपा पर बढ़त हासिल कर रखी है। कांग्रेस द्वारा जीती गई विधानसभा सीटें बिछिया, निवास, डिंडोरी, केवलारी, लखनादौन हैं। भाजपा सिर्फ 3 विधानसभा सीटों मंडला, शहपुरा और गोटेगांव में ही जीत हासिल कर सकी थी। मजेदार बात यह है कि खुद फग्गन कुलस्ते निवास विधानसभा सीट से 9 हजार 723 वोटों के अंतर से चुनाव हार चुके हैं। जीत के अंतर के लिहाज से कांग्रेस को समूचे लोकसभा लोकसभा क्षेत्र में 16, 482 वोटों की बढ़त हासिल है। इस अंतर को कवर कर आगे बढ़ना फग्गन के लिए बड़ी चुनौती है। हालांकि 2019 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने 6 विधानसभा सीटें जीत कर भाजपा पर बड़ी बढ़त हासिल की थी लेकिन लोकसभा चुनाव वह 97 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हार गई थी।

मंडला सीट के तहत चार जिलों के क्षेत्र शामिल
अनुसूचित जनजाति बहुल मंडला लोकसभा सीट का भौगोलिक क्षेत्र काफी बड़ा है। इसके अंतर्गत चार जिलों की विधानसभा सीटें आती हैं। इन जिलों में मंडला, डिंडोरी, सिवनी और नरसिंहपुर शामिल हैं। मंडला जिले की बिछिया, निवास और मंडला विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं तो डिंडोरी जिले की शहपुरा और डिंडौरी। सिवनी जिले के केवलारी और लखनादौन सीट से लोकसभा क्षेत्र में हैं और नरसिंहपुर जिले की एक गोटेगांव। गोटेगांव में भाजपा काबिज है और सिवनी जिले की दोनों सीटों केवलारी और लखनादौन में कांग्रेस का कब्जा है। डिंडोरी जिले की एक-एक सीट भाजपा और कांग्रेस के पास है। मंडला जिले की तीन सीटों में से 2 पर कांग्रेस और एक पर भाजपा काबिज है। इस लिहाज से मंडला में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले के आसार हैं।

आदिवासी मतदाताओं का ही बोलबाला
मंडला लोकसभा सीट आदिवासी बाहुल्य है। यहां हार-जीत का निर्णय यह वर्ग ही करता है। क्षेत्र में अन्य सभी समाज भी हैं। दूसरे नंबर पर दलित और तीसरे नंबर पर पिछड़ी जातियां हैं। चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों की पहली कोशिश आदिवासी वर्ग को ही अपनी ओर आकर्षित करने की रहती है। इसके बाद दूसरे समाजों की ओर रुख होता है। अन्य समाजों को ध्यान में रखकर ही नेताओं को प्रचार के लिए बुलाया जाता है। इससे पहले तक प्रदेश में भाजपा का मुख्य चेहरा शिवराज सिंह चौहान हुआ करते थे लेकिन इस बार मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी  शर्मा की जोड़ी हर जगह पहुंच रही है। कांग्रेस में भी इस बार नए चेहरों प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के हाथ में प्रचार अभियान की कमान है। हर दल और नेता सामाजिक आधार पर मतदाताओं को रिझाने में ताकत झोंक रहा है।

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