Diwali 2024: बेर पूजा और ब्राह्मणों से दूरी, जानें रतलाम में कैसे दिवाली मनाते हैं गुर्जर समाज के लोग

मध्यप्रदेश में रतलाम के कनेरी गांव में दिवाली पर 3 दिन तक गुर्जर समुदाय के लोग ब्राह्मणों का मुंह नहीं देखते। यह परंपरा अपने आप में बहुत अजीब हैं, लेकिन फिर भी इस गांव के लोग इसे मानते हैं।

Updated On 2024-10-31 13:36:00 IST
Diwali celebration in Ratlam

Diwali Unique tradition: देशभर में दिवाली का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं हैं। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के कनेरी गांव की है। यहां दिवाली पर तीन दिन तक गुर्जर समुदाय के लोग ब्राह्मणों का मुंह नहीं देखते। यह परंपरा अपने आप में बहुत अजीब है, लेकिन फिर भी इस गांव के लोग इसे मानते हैं।

 यह परंपरा पिछले कई साल से रतलाम के कनेरी गांव में चली आ रही है। आज भी यहां का गुर्जर समुदाय इस परंपरा का निर्वहन करता है। दिवाली के दिन वह गुर्जर समुदाय के लोग कनेरी नदी के पास इकट्ठा होते हैं और फिर एक कतार में खड़े होकर अपने हाथों में एक लंबा बेर पकड़ते हैं और उस बेर को पानी में प्रवाहित करते हैं। फिर विशेष पूजा करते हैं। 

एकजुटता का लेते संकल्प गुर्जर समुदाय के लोग। 

गुर्जर समाज के सभी लोग पूजा के बाद एकत्रित होकर घर से लाए गए भोजन को खाते हैं और पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा का पालन करते हैं। दिवाली के 5 दिनों में से तीन दिन रूप चौदस, दिवाली और पड़वी पर गुर्जर समुदाय के लोग ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं। 

यह है मान्यता 
मान्यता है कि कई वर्ष पहले गुज्जर समाज के भगवान देवनारायण की माता ने ब्राह्मणों को श्राप दिया था। इस अनुसार दिवाली, रूप चौदस, दीपावली और पड़वी के दिन कोई भी ब्राह्मण गुर्जर समुदाय के सामने नहीं आ सकता। वहीं इन तीन दिनों में गुर्जर समुदाय के लोग किसी भी ब्राह्मण का चेहरा नहीं देख सकते हैं। उस समय से लेकर आज तक गुर्जर समाज दिवाली पर विशेष पूजा करता है। इस दिन कोई भी ब्राह्मण गुर्जर समाज के सामने नहीं आता और न ही कोई ब्राह्मणों के सामने जाता है।

एकजुटता का लेते हैं संकल्प
इस परंपरा के बारे में गुर्जर समुदाय के लोगों बताते है कि उनके पूर्वजों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी, जिसे समुदाय के लोग लंबे समय से निभाते आ रहे हैं। दिवाली का दिन गुर्जर समुदाय के लिए सबसे खास दिन होता है। लोग नदी के किनारे बेर पकड़कर पितृ पूजा करते हैं और एकजुट रहने का संकल्प लेते हैं। इस दिन बेर की भी पूजा की जाती है। बेर का भी अपना महत्व होता है।
 

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