हिंदी का वैश्विक सफर: विदेशों में बुलंद होती हिंदी की आवाज, रूस से श्रीलंका तक- कैसे बढ़ा प्रभाव और सम्मान? जानिए

हिंदी सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि विश्व की भाषा है। ऑस्ट्रेलिया, रूस, श्रीलंका और इंग्लैंड में लोग हिंदी को बढ़ावा देकर भारतीय संस्कृति का मान बढ़ा रहे हैं।

By :  Desk
Updated On 2025-09-14 12:24:00 IST

हिंदी का वैश्विक सफर: विदेशों में बुलंद होती हिंदी की आवाज

Hindi Diwas Special : हिंदी न केवल भारत की भाषा है, बल्कि विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके वैश्विक स्वरूप का कारण हिंदी भाषियों और गैर-हिंदी भाषियों का इस भाषा के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान है। विदेशों में कई बड़े विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है, और यह कार्य न केवल प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) द्वारा, बल्कि विदेशी नागरिकों द्वारा भी किया जा रहा है, जो वैश्विक स्तर पर हिंदी की पताका फहरा रहे हैं। सीनियर रिपोर्टर मधुरिमा राजपाल की यह रिपोर्ट कुछ ऐसी ही प्रेरक कहानियों को सामने लाती है।

रीता कौशल, ऑस्ट्रेलिया: विदेश में बसने के बाद हिंदी के प्रति बढ़ी लगन 

ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली रीता कौशल को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय निर्मल वर्मा सम्मान 2024 से सम्मानित किया जाएगा। आगरा में जन्मीं रीता ने परस्थेसिया, अरुणिमा (उपन्यास), रजकुसुम, रंग चिरंगी बाल कहानियां (कहानी संग्रह), और विकांक्षा (काव्य संग्रह) जैसी दो दर्जन से अधिक रचनाएं लिखी हैं। 


रीता कहती हैं कि हिंदी मेरी रग-रग में बसी है। 2007 में ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद भी मैंने हिंदी के प्रति अपनी लगन को बनाए रखा और किताबें लिखना शुरू किया। उन्होंने अपने दोनों बच्चों को भी हिंदी का माहौल दिया। 

रीता की बेटी यूके में कार्यरत है और बेटा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है। दोनों बच्चे न केवल हिंदी बोलते हैं, बल्कि इस भाषा के प्रति गहरा सम्मान भी रखते हैं। रीता भविष्य में नेशनल बुक ट्रस्ट के साथ बच्चों की पिक्चर बुक प्रकाशित करना चाहती हैं।

इंदिरा गाजिएथा, रूस: मेरे विदेशी छात्रों को भारतीय संस्कृति से गहरा प्रेम

उज्बेकिस्तान के ताशकंद में जन्मीं इंदिरा ने ताशकंद विश्वविद्यालय में हिंदी सीखी और रूस के मॉस्को विश्वविद्यालय में हिंदी में पीएचडी की। उन्होंने संस्कृत भी पढ़ा, जो विदेशों में भारतीय भाषाओं के प्रति प्रेम को दर्शाता है।


इंदिरा कहती हैं कि हिंदी सीखने के बाद मुझे लगा कि यही मेरे जीवन का आधार है। अब वह रूसी राजकीय मानविकी विश्वविद्यालय में हिंदी की प्रोफेसर हैं। उनके माता-पिता ताशकंद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाते थे, और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रेरित होकर उन्होंने उनका नाम इंदिरा रखा।

इंदिरा ने हजारों विदेशी छात्रों को हिंदी सिखाई है। वर्तमान में उनके 12 छात्र हैं, जो हिंदी, भारतीय साहित्य, इतिहास, और संस्कृति को उत्साहपूर्वक सीखते हैं। ये छात्र प्रेमचंद, भीष्म साहनी, यशपाल, और अमृता प्रीतम जैसे लेखकों की रचनाओं का अनुवाद कर अपने परिवार को सुनाते हैं। इंदिरा को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय फादर कामिल बुल्के सम्मान 2024 से सम्मानित किया जा रहा है।

पद्मा जोसेफिन वीरसिंधे, श्रीलंका: 2,000 से अधिक श्रीलंकाई लोगों को हिंदी सिखाई

श्रीलंका की पद्मा जोसेफिन पिछले तीन दशकों से हिंदी के प्रचार-प्रसार और सांस्कृतिक जागरूकता के लिए समर्पित हैं। उन्होंने 2,000 से अधिक श्रीलंकाई छात्रों को हिंदी सिखाई है। उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय फादर कामिल बुल्के सम्मान 2025 से सम्मानित किया जाएगा।


पद्मा बताती हैं कि मुझे बचपन से हिंदी फिल्मी गीत बहुत पसंद थे। मेरे जीवनसाथी शरणगुप्त वीरसिंघे से मेरी मुलाकात हिंदी गीतों के कारण हुई।” 1976 में उन्होंने और शरणगुप्त ने मिलकर सारंग म्यूजिकल सर्कल की स्थापना की, जहां लोग हिंदी फिल्मी गीत सीखने के लिए हिंदी सीखते थे। 

गीतों को सिंहली में अनुवाद करने के बाद भी लोग उन्हें हिंदी में ही गाते थे। इसके बाद 1993 में उन्होंने श्रीलंका हिंदी निकेतन की स्थापना की, जहां उन्होंने हिंदी पढ़ाना शुरू किया।

पद्मा कहती हैं कि हिंदी मेरी मातृभाषा नहीं, लेकिन मेरे दिल में इसके लिए वही श्रद्धा है जो शायद हर भारतीय के दिल में होती है।

वंदना मुकेश, इंग्लैंड: हिंदी में 250 पुस्तकें लिखीं, लंदन में हिंदी पखवाड़ा मनाए  

वंदना मुकेश का जन्म ओडिशा में हुआ। उन्होंने हिंदी और इंग्लिश में एमए किया और फिर हिंदी में पीएचडी पूरी की। 2002 में इंग्लैंड जाने के बाद उन्हें हिंदी की महत्ता का और अधिक अहसास हुआ। वह इंग्लैंड में हिंदी मुफ्त में पढ़ाती हैं और अब तक उनकी 250 पुस्तकें, लेख, कहानियां, और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं।


वंदना ने लंदन में हिंदी पखवाड़ों और कवि सम्मेलनों में मंच संचालन किया और वक्ता के रूप में भी हिस्सा लिया। उनका बेटा एक प्रसिद्ध म्यूजिशियन और तबला वादक है, जबकि उनकी बेटी डेंटिस्ट होने के साथ-साथ कथक नृत्यांगना भी है। 

वंदना की ढाई साल की पोती हिंदी, मराठी, और अंग्रेजी आसानी से बोल और समझ लेती है। वंदना को मध्य प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय निर्मल वर्मा सम्मान 2025 से सम्मानित किया है।

हिंदी हमारी सांस्कृतिक धरोहर

ये कहानियां दर्शाती हैं कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो विश्व भर में लोगों को जोड़ रही है। चाहे वह ऑस्ट्रेलिया, रूस, श्रीलंका, या इंग्लैंड हो, हिंदी के प्रति प्रेम और समर्पण सीमाओं को पार कर रहा है। ये लोग न केवल हिंदी को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और साहित्य को वैश्विक मंच पर सम्मान दिला रहे हैं। 

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