Inspirational Story: 26 साल बाद लौटाया खून का कर्ज, डीएसपी ने सफाईकर्मी के परिवार को अपनाया, इंसानियत ने जीत लिया दिल

26 साल पहले खून देकर जान बचाने वाले सफाईकर्मी के परिवार के लिए डीएसपी संतोष पटेल बने सहारा। कन्यादान का संकल्प लेकर उन्होंने इंसानियत और कृतज्ञता की अनोखी मिसाल पेश की।

Updated On 2025-12-31 15:34:00 IST

26 साल पहले खून देकर जान बचाने वाले सफाईकर्मी के परिवार के लिए डीएसपी संतोष पटेल बने सहारा। 

सतना। कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो व्यवस्था, पद और ताकत से ऊपर उठकर सीधे इंसान के दिल को छू जाती हैं। मध्य प्रदेश पुलिस के डीएसपी संतोष पटेल की यह कहानी भी ऐसी ही है, जो यह याद दिलाती है कि असली सम्मान वर्दी या ओहदे से नहीं, बल्कि कृतज्ञता और संवेदनशीलता से पैदा होता है। 26 साल पहले मिले जीवनदान को उन्होंने सिर्फ याद ही नहीं रखा, बल्कि उसे अपने आचरण और कर्म से सम्मान भी दिया। साल 1999 में संतोष पटेल एक आम नागरिक थे और गंभीर बीमारी के कारण सतना के बिड़ला अस्पताल में भर्ती थे। हालात बेहद नाजुक थे। डॉक्टरों ने तत्काल ऑपरेशन और खून की जरूरत बताई, लेकिन परिवार की तमाम कोशिशों के बावजूद कोई रक्तदाता नहीं मिल पा रहा था। उस मुश्किल घड़ी में अस्पताल में सफाई का काम करने वाले एक कर्मचारी, जिन्हें लोग संतु मास्टर के नाम से पुकारते थे, आगे आए।

उनका मरीज से न कोई पहले से परिचय था, न कोई स्वार्थ। बस एक इंसान को बचाने की भावना थी, जिसने उन्हें खून देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बिना झिझक खून दान किया और उसी रक्त से संतोष पटेल का ऑपरेशन सफल हो सका। समय के साथ जिंदगी ने नई दिशा ली। मेहनत और ईमानदारी के बल पर संतोष पटेल डीएसपी बने, लेकिन उनका दिल उस उपकार को कभी नहीं भूला। वे वर्षों तक उस व्यक्ति को तलाशते रहे, जिसने उन्हें दूसरा जीवन दिया था, ताकि उसके सामने सिर झुकाकर धन्यवाद कह सकें। जब वे आखिरकार संतु मास्टर के घर पहुंचे, तो वहां उन्हें एक गहरी पीड़ा से भरी सच्चाई का सामना करना पड़ा।

संतु मास्टर और उनकी पत्नी, दोनों का निधन हो चुका था और घर में उनकी दो बेटियां रह गई थीं। यह जानकर डीएसपी संतोष पटेल भावुक हो उठे। उन्होंने परिवार के सामने झुककर कहा कि वह इस खून के कर्ज को चुकाना चाहते हैं। उन्होंने संतु मास्टर की बड़ी बेटी की शादी में कन्यादान करने और परिवार की पूरी जिम्मेदारी निभाने का संकल्प लिया। उनके शब्दों में यह कोई दान नहीं, बल्कि उनका फर्ज है। यह कहानी समाज को यह संदेश देती है कि इंसानियत कभी छोटी नहीं होती। एक सफाईकर्मी का खून और एक अधिकारी की कृतज्ञता मिलकर यह साबित करते हैं कि सच्चे रिश्ते पद और हैसियत से नहीं, बल्कि दिल से बनते हैं।

(एपी सिंह की रिपोर्ट)

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