भूटान-भारत साहित्य महोत्सव: सांस्कृतिक सेतु का सफल आयोजन, भोपाल के कवि सुरेश सोनपुरे 'अजनबी' सम्मानित

भूटान-भारत साहित्य महोत्सव 2025 थिम्फू में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। भोपाल के कवि सुरेश सोनपुरे ‘अजनबी’ सहित कई साहित्यकार सम्मानित। जानिए आयोजन की खास बातें।

Updated On 2025-09-19 20:48:00 IST

भोपाल के कवि सुरेश सोनपुरे 'अजनबी' सम्मानित

Bhutan India Literature Festival: भूटान की राजधानी थिम्फू में पोयट्री क्लब भूटान और मेरठ स्थित क्रांति धरा साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित "भूटान-भारत साहित्य महोत्सव" का दो दिवसीय आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। डॉ. विजय पंडित के कुशल मार्गदर्शन में संपन्न यह महोत्सव 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना को मजबूत करते हुए शिक्षा, साहित्य, कला और संस्कृति के माध्यम से दोनों देशों के रचनाकारों को एक मंच पर लाया। इसका मुख्य लक्ष्य साहित्यिक सहयोग को बढ़ावा देना और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना रहा।

जयपुर के साहित्यकार राजेंद्र मोहन शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मॉस्को की सुश्री श्वेता सिंह उमा ने शिरकत की। विशिष्ट अतिथियों में भूटान के डॉ. देवेंद्र अरोरा और राजस्थान के सालूम्बर से श्रीमती विमला भंडारी शामिल रहीं। पोयट्री क्लब भूटान की संस्थापक सीता माया राई, लुधियाना की जसप्रीत कौर तथा राजेंद्र पुरोहित और हेमंत सक्सेना की गरिमापूर्ण उपस्थिति ने आयोजन को और समृद्ध किया।

72 साहित्यकारों ने दिखाया प्रदर्शन

इस अवसर पर भारत के विभिन्न राज्यों से करीब 72 साहित्यकारों और भूटान के 15 रचनाकारों ने कविता, गजल, कहानी और निबंध जैसी विधाओं पर आधारित अपनी रचनाओं का सशक्त प्रदर्शन किया। इन प्रस्तुतियों ने सांस्कृतिक एकता की मिसाल कायम की। विशेष रूप से भोपाल के चर्चित कवि सुरेश सोनपुरे 'अजनबी' को उनके योगदान के लिए "अजनबी" सम्मान से नवाजा गया। इसी क्रम में बीएचईएल के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी डॉ. गोपेश बाजपेयी, अशोक व्यास और डॉ. अनिल शर्मा 'मयंक' को भी स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र तथा सम्मान पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया।

सुरेश सोनपुरे 'अजनबी' ने देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत अपनी कविता "चांद-सूर्य सा सदा चमकता मेरा हिंदुस्तान रहे, लहराता रहे तिरंगा विश्व में गौरव गान" सुनाकर समूह को भावविभोर कर दिया। डॉ. गोपेश बाजपेयी ने मातृत्व के सम्मान में रचना "मां का कहना मानकर लो मां का आशीष, मां ही सच्ची मीत है मां ही जगदीश" प्रस्तुत की, जो श्रोताओं के हृदयस्पर्शी रही।

डॉ. अनिल शर्मा 'मयंक' की पंक्तियां "लाखों ने बलिदान दिया था, उनका वो सम्मान कहां है? बोलो नेहरू, बोलो गांधी, मेरा हिंदुस्तान कहां है" ने स्वतंत्रता संग्राम की स्मृतियों को जीवंत कर दिया। वहीं, अशोक व्यास ने आधुनिक जीवनशैली पर व्यंग्यात्मक कविता "मैं और मेरा मोबाइल अक्सर बातें करते हैं" के माध्यम से डिजिटल संस्कृति पर चिंतन कराया, जो उपस्थित साहित्यकारों को मंत्रमुग्ध करने वाली साबित हुई।

10 पुस्तकों का भी हुआ विमोचन

आयोजन की विशेष आकर्षणों में डॉ. खेमचंद्र यदुवंशी का नौटंकी विधा के इतिहास और शैली पर विस्तृत व्याख्यान, संग्राम सिंह का आल्हा प्रदर्शन, रायपुर की अनुराधा दुबे का कथक नृत्य, प्रयागराज के आनंद श्रीवास्तव और कोलकाता की ऊषा शा का राम-शबरी प्रसंग पर नाट्य प्रस्तुति शामिल रही। इसके अलावा, तीन महत्वपूर्ण साहित्यिक शोध पत्रों का वाचन किया गया और 10 नई पुस्तकों का विमोचन भी संपन्न हुआ।

डॉ. विजय पंडित के संचालन में चले इस समारोह का समापन कानपुर की सीमा 'वर्णिका' के हार्दिक आभार प्रदर्शन के साथ हुआ। यह महोत्सव न केवल साहित्यिक आदान-प्रदान का प्रतीक बना, बल्कि भारत-भूटान संबंधों को साहित्य के सूत्र से मजबूत करने वाला एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।

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