सिरसा: शहीद बेटे की प्रतिमा खंडित होने से टूटा पिता, सदमे में गई जान
बेटे की मूर्ति को इस हालत में देखकर वे इतने सदमे में आए कि उसी रात उनकी तबीयत बिगड़ गई और उनका निधन हो गया। लांस नायक अमित कुमार 8 जुलाई 2023 को ड्यूटी के दौरान शहीद हो गए थे।
सिरसा के हांडी खेड़ा गांव में रिटायर्ड फौजी पिता अपने शहीद बेटे की प्रतिमा खंडित होने पर इतने गहरे सदमे में आए कि खुद भी दुनिया को अलविदा कह दिया। यह घटना एक पिता के अपने शहीद बेटे के प्रति असीम प्रेम और सरकार तथा प्रशासन की उदासीनता को दर्शाती है।
अपने खर्च पर भव्य स्मारक स्थल बनवाया था
रामजीलाल कसाना (67) एक रिटायर्ड फौजी थे और अपने गांव के पहले व्यक्ति थे जो सेना में भर्ती हुए थे। उनका 32 वर्षीय बेटा अमित कुमार भी उन्हीं की तरह सेना की 21-राजपूत रेजिमेंट में लांस नायक के पद पर कार्यरत था। रामजीलाल और अमित दोनों ने एक ही रेजिमेंट में देश की सेवा की थी। यह पिता-पुत्र का रिश्ता न केवल खून का था, बल्कि देश सेवा के जज्बे से भी जुड़ा था।
8 जुलाई 2023 को यूपी के प्रयागराज में ड्यूटी के दौरान अमित का निधन हो गया था। बेटे की मौत के बाद से रामजीलाल गहरे दुःख में थे और अपने पोतों के भविष्य की चिंता में रहते थे। उन्होंने गांव में अपने खर्च पर बेटे का एक भव्य स्मारक स्थल बनवाया था, जहां उसकी प्रतिमा स्थापित की गई थी।
कुदरत के कहर के बाद टूटा दिल
पिछले कुछ दिनों से हो रही भारी बारिश ने इस स्मारक स्थल को भी नहीं बख्शा। लगातार बारिश के कारण स्मारक स्थल धंस गया और उस पर लगी अमित की प्रतिमा खंडित हो गई। 12 सितंबर को जब रामजीलाल ने यह देखा कि उनके बेटे की प्रतिमा झुक गई है, तो उनका दिल बैठ गया। गांव वालों ने प्रतिमा को दोबारा लगाने के लिए नीचे उतरवाने की बात कही। रामजीलाल पूरे दिन वहां डटे रहे और हाइड्रा मशीन से अपने बेटे की प्रतिमा को नीचे उतरवाया।
इस पूरे दौरान वे लगातार रोते रहे। घर आकर भी उनकी आंखों से आंसू नहीं रुके। वे अपने बेटे की तस्वीर को देखते रहे और गम में डूबते चले गए। उसी रात उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई, उन्हें घबराहट महसूस हुई और अस्पताल ले जाते समय उन्होंने दम तोड़ दिया। यह एक ऐसा सदमा था जिसे वे सह नहीं पाए।
सरकारी वादे और उदासीनता
शहीद अमित के भाई सुमित बताते हैं कि जब उनके भाई का पार्थिव शरीर गांव लाया गया था, तब कई नेताओं और अधिकारियों ने स्मारक स्थल बनवाने में सहयोग का वादा किया था। इनमें सांसद, मंत्री और विधायक शामिल थे। लेकिन, किसी ने भी अपना वादा पूरा नहीं किया। पूरे स्मारक को परिवार ने अपने खर्च पर बनवाया, जिसमें लगभग 8-9 लाख रुपये लगे।
विधायक को मूर्ति स्थापना के समय बुलाया गया था, लेकिन वे नहीं आए। शहीद के भाई सुमित, जो लंदन में नौकरी करते हैं, का कहना है कि हरियाणा में शहीदों की कोई कीमत नहीं है। उनके भाई की पत्नी को आज तक कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली और वे सिर्फ पेंशन पर ही गुजारा कर रही हैं। यह घटना सरकारी उदासीनता की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है।
अधूरा रह गया काम
रामजीलाल ने स्मारक स्थल को ठीक कराकर प्रतिमा को दोबारा स्थापित करने का काम शुरू करवा दिया था, लेकिन इससे पहले ही उनकी मौत हो गई। अब परिवार को यह काम पूरा करना होगा।
शहीद अमित की मां परमेश्वरी देवी का दर्द भी कम नहीं है। उन्होंने पहले अपना जवान बेटा खोया और अब पति को। वह बताती हैं कि अमित की प्रतिमा टूटने के बाद से रामजीलाल बहुत परेशान थे। वे लगातार बेटे की तस्वीर देखते रहते थे और उसकी ही चिंता में डूबे रहते थे। उन्होंने कहा कि उनके जवान बेटे के छोटे-छोटे बच्चे हैं, और यही चिंता उन्हें दिन-रात सताती थी। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हमारे देश में शहीदों के लिए सम्मान केवल शब्दों तक ही सीमित रह गया है।