हरियाणा पंजाब जल बंटवारा: 49 साल पुराने SYL विवाद में 9 जुलाई को दिल्ली में बैठक, सीएम सैनी ने बनाई खास रणनीति

हरियाणा और पंजाब के बीच बहुचर्चित SYL नहर विवाद में समाधान की कुछ आस जगने लगी है। 9 जुलाई को दिल्ली में हरियाणा व पंजाब के बीच बैठक होनी है। बैठक से पहले सीएम सैनी ने अधिकारियों के साथ मंथन कर खास रणनीति बनाई है।

Updated On 2025-07-07 21:05:00 IST

हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी। 

हरियाणा पंजाब जल बंटवारा : सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर हरियाणा ने दिल्ली में 9 जुलाई को होने वाली संयुक्त बैठक से पहले अपनी रणनीति पर मंथन शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने चंडीगढ़ स्थित अपने सरकारी आवास पर वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाकर नहर निर्माण से जुड़ी कानूनी और तकनीकी पहलुओं की समीक्षा की। उन्होंने निर्देश दिए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों, अब तक हुई बैठकों और पंजाब के विरोध के तथ्यों को समेटते हुए ठोस दस्तावेज तैयार किए जाएं ताकि केंद्र सरकार की अगुआई में होने वाली बातचीत में हरियाणा की स्थिति स्पष्ट और मजबूत रखी जा सके। बैठक में जल संसाधन विभाग, विधि विभाग और रेवेन्यू विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए। सीएम सैनी ने अधिकारियों से कहा कि यह हरियाणा के हक और किसानों की पीढ़ियों से जुड़ा मुद्दा है। इसलिए राज्य के पक्ष को तथ्यों के साथ प्रभावशाली ढंग से रखा जाए।

हरियाणा व पंजाब के सीएम से बैठक करेंगे केंद्रीय मंत्री पाटिल

दिल्ली में 9 जुलाई को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल की अध्यक्षता में होने जा रही इस उच्चस्तरीय बैठक में हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी, पंजाब के सीएम भगवंत मान और अन्य संबंधित अधिकारी मौजूद रहेंगे। यह बैठक सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश के तहत हो रही है, जिसमें केंद्र सरकार को दोनों राज्यों के बीच मध्यस्थता की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

सुप्रीट कोर्ट ने पंजाब को लगाई थी फटकार

सुप्रीम कोर्ट पहले ही SYL नहर को लेकर पंजाब सरकार की भूमिका पर सख्त टिप्पणी कर चुका है। 6 मई की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पंजाब को फटकार लगाते हुए कहा था कि कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए नहर निर्माण के लिए अधिगृहीत जमीन को गैर-अधिसूचित करना मनमानी का स्पष्ट उदाहरण है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि यह परियोजना तीन राज्यों हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के हित में है।

पंजाब की दलील : पानी की कमी, YSL बनाओ

दूसरी ओर, पंजाब सरकार का तर्क है कि राज्य गंभीर जल संकट से जूझ रहा है और उसके पास अतिरिक्त पानी नहीं है जिसे SYL के माध्यम से साझा किया जा सके। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यह सुझाव तक दे दिया कि SYL की बजाय यमुना-सतलुज लिंक (YSL) पर विचार होना चाहिए। उन्होंने पुराने समझौतों की वैधता पर भी सवाल उठाए।

हरियाणा का दावा : 19,500 करोड़ का नुकसान, खेती बर्बाद

हरियाणा सरकार के मुताबिक SYL नहर के निर्माण में देरी से अब तक राज्य को करीब 19,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। दक्षिण हरियाणा की 10 लाख एकड़ भूमि सिंचाई न मिलने के कारण लगभग बंजर हो चुकी है। राज्य को हर साल 42 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन में घाटा उठाना पड़ रहा है। अधिकारियों के अनुसार अगर यह नहर 1983 में बन जाती तो हरियाणा अब तक 130 लाख टन अतिरिक्त उत्पादन कर चुका होता।

1976 से चला आ रहा मुद्दा अब भी अधूरा

SYL परियोजना की शुरुआत 1976 में हुई। इसका निर्माण 1982 में पंजाब और हरियाणा के बीच हुए जल समझौते के तहत शुरू हुआ। 214 किलोमीटर लंबी इस नहर में से 92 किलोमीटर हरियाणा ने समय पर पूरी कर ली, लेकिन पंजाब ने बीच में ही काम रोक दिया। जितना हिस्सा पंजाब में बना था, उस भी पाट दिया गया। 2024 में पंजाब विधानसभा ने उस समझौते को समाप्त करने वाला कानून पास किया, जिसे 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया था। लेकिन इसके बावजूद अब तक नहर का निर्माण अधूरा है और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अगली सुनवाई 13 अगस्त को तय है।

9 जुलाई को कुछ समाधान की आस

9 जुलाई की बैठक को लेकर उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार की मध्यस्थता में दोनों राज्यों के बीच कोई समाधान निकल सकेगा। हालांकि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के तेवर और अब तक की स्थिति को देखते हुए सहमति बनना आसान नहीं दिख रहा। SYL नहर अब न केवल जल बंटवारे का बल्कि राजनीतिक जिद और संवैधानिक जिम्मेदारियों के टकराव का मुद्दा बन चुकी है। इस अहम बैठक से पहले हरियाणा सरकार पूरी तैयारी के साथ मैदान में है। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि दिल्ली में होने वाली यह बातचीत 46 साल पुराने इस विवाद को किसी ठोस नतीजे तक पहुंचा पाएगी या नहीं।

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