पंचकूला का माता मनसा देवी मंदिर: यहां होता है आस्था, इतिहास और चमत्कारों का संगम, जानें क्यों है अटूट आस्था का केंद्र

मंदिर का निर्माण मनीमाजरा के महाराजा गोपाल सिंह ने करवाया था, लेकिन शाही संरक्षण समाप्त होने के बाद यह उपेक्षित हो गया। बाद में हरियाणा सरकार ने इसे एक धरोहर स्थल के रूप में अपने नियंत्रण में लेकर इसका जीर्णोद्धार किया।

Updated On 2025-09-10 08:10:00 IST

पंचकूला का माता मनसा देवी मंदिर। 

शिवालिक पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा माता मनसा देवी मंदिर हरियाणा के पंचकूला जिले में एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में पूजनीय है। यह मंदिर केवल एक धार्मिक केंद्र नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और किंवदंतियों का एक अद्भुत संगम है। लगभग 100 एकड़ क्षेत्र में फैले इस विशाल परिसर की कहानी सदियों पुरानी है, जो एक गाय की श्रद्धा से शुरू होकर राजशाही संरक्षण और फिर सरकारी देखरेख तक का एक लंबा सफर तय करती है। यह मंदिर, जिसे देवी सती के मस्तिष्क का अग्रभाग गिरने का स्थान माना जाता है, आज भी भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है।

एक गाय की श्रद्धा से हुआ जन्म

मंदिर के उद्गम से जुड़ी एक प्राचीन कथा है। माना जाता है कि शिवालिक की पहाड़ियों में एक गाय प्रतिदिन एक पहाड़ी की चोटी पर आती थी और वहां स्थित तीन पवित्र पत्थरों पर अपना दूध अर्पित करती थी। स्थानीय निवासियों ने जब यह रहस्यमयी घटना देखी तो उन्होंने उस स्थान पर खुदाई की, और वहां से तीन दिव्य शिलाएं (पिंडियां) प्रकट हुईं। बाद में इन पवित्र शिलाओं को देवी सती के मस्तक का प्रतीक माना गया, जिसके बाद उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण हुआ। इस घटना ने मंदिर को एक गहरा पौराणिक आधार प्रदान किया और इसे माता सती के मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।

मंदिर का शाही संरक्षण से सरकारी धरोहर बनने तक का सफर

मंदिर के इतिहास में राजशाही का गहरा प्रभाव रहा है। मुख्य मंदिर का निर्माण मनीमाजरा रियासत के महाराजा गोपाल सिंह ने वर्ष 1811 से 1815 के बीच करवाया था। इसके बाद, मुख्य मंदिर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर पटियाला मंदिर का निर्माण वर्ष 1840 में महाराजा पटियाला श्री करम सिंह द्वारा करवाया गया। मनीमाजरा रियासत के अधीन यह मंदिर कई वर्षों तक संरक्षित रहा, लेकिन जब रियासतों का विलय पेप्सू में हुआ, तो इसका शाही संरक्षण समाप्त हो गया।

मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी (जिन्हें 'खिदमतज़ार' कहा जाता था) नियंत्रण में स्वतंत्र तो हो गए, लेकिन उनके पास मंदिर के रखरखाव या श्रद्धालुओं के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे। नतीजतन, मंदिर की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती गई, जिससे तीर्थयात्रियों को भारी असुविधा होने लगी। आखिरकार, स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, हरियाणा सरकार ने इस मंदिर को एक धरोहर स्थल के रूप में अपने नियंत्रण में ले लिया, और तब से इसका समुचित रखरखाव हो रहा है।

रहस्यमयी गुफा और जीवंत आस्था

इस मंदिर से जुड़ी कई दिलचस्प किंवदंतियां भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि मनीमाजरा के राजा गोपाल दास ने अपने किले से मंदिर तक लगभग 3 किलोमीटर लंबी एक सुरंग (गुफा) बनवाई थी। वे प्रतिदिन अपनी रानी के साथ इसी गुफा से देवी के दर्शन करने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि जब तक राजा दर्शन के लिए नहीं पहुंचते थे, तब तक मंदिर के कपाट नहीं खुलते थे। इन कहानियों ने मंदिर की रहस्यमयता को और बढ़ा दिया है। आज भी, मंदिर परिसर में एक ऐसा वृक्ष है जिसके चारों ओर भक्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए पवित्र धागे बांधते हैं। यह परंपरा यहां की जीवंत आस्था और चमत्कारों में लोगों के गहरे विश्वास को दर्शाती है।

मनसा देवी दिव्य ऊर्जा का प्रतीक

आज, यह मंदिर 100 एकड़ के भव्य परिसर में फैला हुआ है। इसे शक्ति (मनसा देवी) की पूजा का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। हिंदू धर्म में मनसा देवी को ब्रह्मांड की दिव्य स्त्री ऊर्जा और शक्तियों का प्रतीक माना जाता है। मंदिर की स्थापत्य कला भी बेहद आकर्षक है। मुख्य मंदिर में दीवारों पर 38 सुंदर भित्ति चित्र (वॉल पेंटिंग्स) और पुष्प डिज़ाइन बनाए गए हैं, जो 19वीं शताब्दी की कला का बेहतरीन नमूना हैं। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह उत्तर भारत में शक्तिवाद के सबसे प्रमुख स्थलों में से एक भी है। किंवदंतियों और जीवंत परंपराओं से सराबोर यहां का वातावरण हर भक्त को एक अनूठा आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, जो उन्हें बार-बार इस पवित्र भूमि पर आने के लिए प्रेरित करता है। 

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