भूना में प्राचीन धरोहर बचाने का प्रयास: नहला गांव में कुएं के जीर्णोद्धार के साथ बदला स्वरूप, सेल्फी लेने के लिए उमड़ रहा सैलाब 

भूना में गांव नहला के सरपंच कृष्ण कुमार ढिल्लों ने तीर्थनाथ कालीन कुआं एवं धरोहर के जीर्णोद्धार व सौंदर्यकरण के बाद पर्यटन स्थल के रूप में बदल दिया।

Updated On 2024-06-23 19:41:00 IST
जीर्णोद्धार व सौंदर्यकरण के बाद पर्यटन स्थल के रूप में बदला कुआं।

दलबीर सिंह, भूना: उप तहसील क्षेत्र में धीरे-धीरे कुओं व प्राचीन धरोहर का अस्तित्व खत्म होता जा रहा हैं। उपतहसील के अभिलेखों में दर्जनों कुएं दर्ज हैं, लेकिन कुओं पर अवैध अतिक्रमण एवं कब्जे होने पर कुएं दिखाई नहीं देते। ग्राम पंचायत नहला के सरपंच कृष्ण कुमार ढिल्लों ने तीर्थनाथ कालीन कुआं एवं धरोहर के जीर्णोद्धार और सौंदर्यकरण के बाद पर्यटन स्थल के रूप में बदल दिया। जो धरोहर एवं कुएं नहला गांव में कुछ महीनों पहले खंडहर एवं बदहाल दिखाई दे रहे थे। वहां पर अब वर्षों पहले पनघट पर जैसे जमघट लगता था, वैसे अब सेल्फी लेने वाले युवाओं की भीड़ उमड़ रही है। क्योंकि प्राचीन धरोहर एवं बावली-कुएं चकाचक होने से उनकी कायापलट की गई है।

जीर्णोद्धार के बाद कुओं का बदला स्वरूप

हिंदू धर्म में विवाह-शादी व बच्चे के जन्म के समय कुआं पूजन की धार्मिक क्रिया की जाती है। कुओं की भूमि पर अवैध कब्जे या अतिक्रमण होने के कारण कुआं पूजन के लिए भी हिंदू धर्म के लोगों को खासी परेशानी होती हैं। गांव नहला में तीर्थनाथ कालीन कुआं के जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यकरण के बाद सही सलामत है। इसी को लेकर नहला के लोगों के साथ ही हिंदू संगठन के लोगों ने सरपंच का कुएं के जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यकरण के बाद ऐतिहासिक यादगार को बचाकर रखने पर आभार व्यक्त किया।

नहला गांव 550 वर्ष की ऐतिहासिक धरोहर एवं बावली कुएं की पुरानी यादें समेटे हुए

नहला गांव के बुजुर्गों के मुताबिक करीब 550 वर्ष पहले इस क्षेत्र में घना जंगल होता था। लोग पीने के पानी के लिए तरसते थे और एक दिन झोटा पानी से भीगा हुआ ढंढूर खेड़ा में पशुओं के पास आया, जिसको देखकर बुजुर्ग उसी दिशा में पैदल चल पड़े। ढंढूर खेड़ा से मात्र 7 किलोमीटर दूर उन्हें एक बरसाती पानी का छोटा जोहड़ दिखाई दिया। जोहड़ के किनारे पर एक झोपड़ी में एक संत डेरा लगाकर बैठा था। बुजुर्गों ने संत तीर्थनाथ महाराज को अपनी समस्या बताई। बाबा तीर्थनाथ महाराज ने बुजुर्गों को कहा कि आप यहां पर अपना डेरा लगा लो, यहां आबादी बसने के बाद कभी गांव ना हिलेगा। वहीं से गांव का नाम ना हिलेगा रखा गया। धीरे-धीरे गांव का नाम ना हिलेगा से बदलकर नहला हो गया। बुजुर्गों ने उन दिनों में जोहड़ पर अलग-अलग कुएं पानी के लिए बनाए और कई बुजुर्गों ने यादगार रूपी धरोहर तैयार करवाई थी।

नहला गांव में 18 हजार से अधिक की आबादी

नहला गांव राजनीतिक व प्रशासनिक स्तर पर भी हरियाणा में चर्चित रहा। यहां के विधायक से लेकर मुख्य प्रधान सचिव पद तक नेता और युवा पहुंच चुके हैं। कई अन्य बड़े-बड़े पदों पर सेवाएं दे रहे हैं और सेवानिवृत हो चुके हैं। नहला गांव की जनसंख्या 18000 से अधिक है और 7700 के करीब मतदाता है। गांव में 20 जातियों के लोग भाईचारे के साथ रहते हैं और 1400 बीघा जमीन है। बाबा तीर्थनाथ महाराज ने गांव बसने से पहले जो बुजुर्गों को बात कही थी, वह आज भी सच साबित हो रही है। क्योंकि गांव में गिल गोत्र के बुजुर्ग पहले आए थे, इसलिए उनके परिवार आज भी करीब 130 के लगभग है, जबकि ढिल्लों गोत्र के परिवार 700 से अधिक हैं।

प्राचीन धरोहरों का अस्तित्व हो रहा खत्म

ग्राम पंचायत नहला के सरपंच कृष्ण कुमार ढिल्लों ने कहा कि प्राचीन धरोहर एवं कुओं का अस्तित्व खत्म होता जा रहा हैं। उप तहसील के कई गांवों में कुओं पर अवैध अतिक्रमण एवं कब्जे होने पर कुएं दिखाई नहीं देते, लेकिन नहला ग्राम पंचायत ने मात्र 8 लाख के लगभग खर्च करके तीर्थनाथ कालीन डिग्गी वाला कुआं व कई प्राचीन धरोहर, जिसके जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यकरण द्वारा नया रूप दिया है। जो युवा पीढ़ी के लिए प्राचीन व ऐतिहासिक धरोहर बचाकर रखना हमारी सोच है।

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