सिरसा में बेटियों ने निभाया बेटों का फर्ज: मां की अर्थी को दिया 4 बेटियों ने कंधा, समाज के लोगों ने सराहा 

सिरसा में 4 बेटियों ने बेटों का फर्ज निभाते हुए अपनी मां की अर्थी को न केवल कंधा दिया, बल्कि शमशान घाट पहुंचकर अंतिम विधियां भी पूरी की।

Updated On 2024-05-31 22:05:00 IST
प्रतीकात्मक तस्वीर। 

Sirsa: वर्तमान समय में समाज में जहां हर कोई बेटों की चाहत रखता है कि हमारे घर लड़का ही हो, जो हमारे बुढ़ापे में सहारा बने। वहीं समाज में मिशाल बन रही बेटियों ने बेटा-बेटी एक समान मुहिम के तहत इस रूढ़ीवादी सोच को बदलते हुए उन तमाम रस्मों को अग्रिम पंक्ति में खडे़ होकर निभाया, जो बेटों द्वारा ही निभाई जाती थी। इसी कड़ी में शहर के पुरानी कोर्ट कॉलोनी निवासी सरोज परनामी के निधन पर उनकी चारों बेटियों ने कंधा देकर समाज को नई दिशा देने का काम किया। यह दृश्य देख हर किसी की आंखें नम हो गई।

बेटियों ने दिया अर्थी को कंधा, शमशान घाट में निभाया रीति रिवाज

मृतक सरोज परनामी की चारों बेटियां न केवल अर्थी को कंधा देते हुए घर से चलीं, बल्कि शमशान घाट पहुंचकर अपनी माता की मुक्ति के लिए हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करवाया। उपस्थित लोगों की भी इस दृश्य देखकर आंखें नम हो गई। स्व. सरोज परनामी की चार बेटियां, जिनमें सपना मदान, डॉ. सीमा पाहवा, नीतू गिरधर व ईशा परनामी हैं और कोई बेटा नहीं है। सरोज परनामी ने अपनी बेटियों को पढ़ा लिखाकर इस काबिल बनाया है कि वह आज बेटों से भी अधिक बेटों का फर्ज निभा सकती हैं। दूसरे देश में होते हुए भी मां के अंतिम संस्कार में पहुंचकर सारे रीति रिवाज बेटियों ने पूरे किए।

पेशे से डॉक्टर बड़ी बेटी रहती है स्विटजरलेंड

स्व. सरोज परनामी की बड़ी बेटी विदेश में रहती है। बड़ी बेटी सपना जो पेशे से डॉक्टर है और स्विटजरलेंड में रहती हैं। अन्य तीन बहनें भी डॉक्टर व इंजीनियर हैं। सपना ने बताया कि वर्तमान समय में बेटियों ने बेटों के बराबर होकर हर उस मुकाम को हासिल किया है, जो कभी सपना लगता था। लोगों को अब अपनी सोच बदलने की जरूरत है और उन्हें अपनी बेटियों को भी बेटों के बराबर अधिकार देने चाहिए, ताकि बेटा-बेटी का फर्क समाप्त हो जाए। अंतिम संस्कार में उमड़ी भीड़ ने बेटियों के हौंसले को सराहा और इसे अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणादायी बताया।

Similar News