Punjab Haryana High Court: डॉक्टरों की लिखावट समझने में अब नहीं होगी परेशानी, हाईकोर्ट का आदेश- चंडीगढ़ PGI बनाएगा फॉर्मूला
Punjab Haryana High Court: डॉक्टरों की लिखावट को पढ़ने योग्य बनाने के लिए चंडीगढ़ PGIMER बैठक करेगा। हाईकोर्ट ने इसे लेकर अधिकारियों से चर्चा करने के लिए कहा है, ताकि जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान किया जा सके।
Punjab Haryana High Court: डॉक्टरों की लिखावट को पढ़ने योग्य बनाने के लिए पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च (PGIMER) प्रशासन जल्द ही अपने विभाग के साथ बैठक करेगा। सुनवाई के दौरान इस बारे में पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट को भी बता दिया गया है। जिसके बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ प्रशासन और अन्य संबंधित पक्ष इस समस्या से निपटने के लिए बैठक करके इसके उपाय पर चर्चा करें।
NMC को हाईकोर्ट में पेश करना होगा एफिडेविट
सुनवाई के दौरान PGIMER चंडीगढ़ के काउंसिल ने कोर्ट से एक हफ्ते का समय मांगा है। उन्होंने कहा है कि फैकल्टी के साथ बैठक करके इस समस्या के समाधान के लिए एक ठोस फॉर्मूला तैयार किया जाएगा। इस मामले में अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी। अगली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में एफिडेविट भी पेश किया जाएगा।
नेशनल मेडिकल कमीशन काउंसिल (NMC) ने एफिडेविट पेश करने के लिए एक हफ्ते के समय की मांग की है। दूसरी तरफ हरियाणा सरकार ने भी इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय की मांग की है। पंजाब सरकार ने कोर्ट से कहा है कि डॉक्टरों को इस संबंध में कुछ निर्देश जारी किए हैं। इस पर अगली सुनवाई में हलफनामा पेश किया जाएगा।
एडवोकेट तनु बेदी ने IMA के अध्यक्ष से की बात
बता दें कि पिछले महीने हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मरीज और उनके परिजनों को डॉक्टर की लिखावट समझ नहीं आती है। हाईकोर्ट का कहना था कि मरीज और उनके परिजनों को डॉक्टर की लिखी दवाओं और मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानने का पूरा अधिकार है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) का पक्ष जानने के लिए एडवोकेट तनु बेदी ने IMA के अध्यक्ष से बात भी की थी। अध्यक्ष ने कहा है कि वह कोर्ट की सहायता व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये करेंगे। जिसके बाद हाईकोर्ट ने IMA अध्यक्ष को ईमेल के जरिए नोटिस जारी किया है।
व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य और इलाज की जानकारी होना जरूरी- हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य और इलाज की जानकारी होना उसके मौलिक अधिकारों में आता है। इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा माना जा सकता है। जस्टिस जस गुरप्रीत सिंह पुरी ने यह आदेश तब दिया था जब उन्होंने डॉक्टर द्वारा लिखे गए मेडिको लीगल रिपोर्ट (MLR) की लिखावट को देखा था।
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