यहां प्रकट हुई थीं मां दुर्गा: दिल्ली में 3000 साल पुराना मंदिर, महाभारत युद्ध से पहले दिए थे पांडवों को दर्शन

History of Kalkaji Temple: दिल्ली में मां काली का 3000 साल पुराना मंदिर है, जिसे कालकाजी मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने मां काली की पूजा की थी।

Updated On 2025-05-12 07:00:00 IST

History of Kalkaji Temple: दिल्ली में मां काली का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां दूर-दूर से लोग मां काली का आशीर्वाद लेने आते हैं। माता काली का मंदिर दक्षिण दिल्ली में स्थित है, जो अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्य कूट पर्वत पर है। काली मां का ये मंदिर सिद्धपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान बड़ी तादाद में भीड़ लगती है।


कहा जाता है कि मां काली का ये मंदिर 3000 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस मंदिर में मां का स्वरूप हर काल में बदलता रहता है। मां काली का कालकाजी मंदिर प्राचीनतम सिद्धपीठों में एक है, जो आद्यशक्ति मां भगवती के रूप में प्रकट हुई थीं। मान्यता है कि मां दुर्गा ने यहीं पर महाकाली के रूप में प्रकट होकर राक्षसों का संहार किया था। जानकारी के अनुसार, मौजूदा कालकाजी मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। कहा जाता है कि इस मंदिर के पुराने हिस्से का निर्माण 1764 में मराठाओं द्वारा कराया गया था।


हालांकि साल 1816 में अकबर टू ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद बीसवीं शताब्दी में दिल्ली के हिंदुओं ने मंदिर के आसपास मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया। उसी समय पर इस मंदिर को वर्तमान वाला रूप दिया गया था। मान्यता है कि महाभारत काल में युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ यहां पर मां भगवती की आराधना की थी। इसके बाद यहां बाबा बालकनाथ ने तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर मां ने उन्हें दर्शन दिए थे।



बता दें कि दिल्ली में बना कालकाजी मंदिर पिरामिडनुमा आकार में है। इसका सेंट्रल चैंबर पूरी तरह से संगमरमर का है। मुख्य मंदिर में 12 दरवाजे हैं, जो 12 महीनों का इशारा देते हैं। हर द्वार के पास माता के अलग-अलग रूपों की छवि है। दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के समय पर बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन मां काली का ये इकलौता मंदिर है, जो ग्रहण के समय भी खुला रहता है।


इस मंदिर में 84 घंटे हैं, जिन्हें अकबर-2 ने लगवाया था। कहा जाता है कि इसमें हर घंटे की अलग आवाज होती है। इसके अलावा यहां 300 साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड है, जहां आज भी हवम किए जाते हैं। यहां मां काली की एक पत्थर की मूर्ति है, जिसका दिन में दो बार श्रृंगार बदला जाता है। मां को रोजाना 150 किलो फूलों से सजाया जाता है। मां के श्रृंगार में इस्तेमाल किए गए फूल अगले दिन श्रद्धालुओं को प्रसाद में बांटे जाते हैं।

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