Delhi Pollution: दिल्ली प्रदूषण पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, 22 लाख बच्चों के फेफड़ों को नुकसान

Delhi Pollution: दिल्ली प्रदूषण से बढ़ रहे खतरे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। इसमें कहा गया है कि 22 लाख बच्चों के फेफड़ों को नुकसान पहुंच रहा है।

Updated On 2025-11-18 18:35:00 IST

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली प्रदूषण पर याचिका खारिज की।

Delhi Pollution: एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रदूषण के कारण बच्चों पर पड़ने वाले असर को लेकर जनहित याचिका दायर की। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस सुनवाई में देश में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर का समाधान निकालने के लिए कहा गया है। इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से लगातार और व्यवस्थागत विफलता से निपटने के लिए तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप का अनुरोध किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने समग्र स्वास्थ्य प्रशिक्षक ल्यूक क्रिस्टोफर कॉउटिन्हो को जनहित याचिका वापस लेने और पर्यावरणविद एम सी मेहता द्वारा प्रदूषण पर दायर एक लंबित मामले में हस्तक्षेप याचिका दायर करने की अनुमति दे दी। मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने इस याचिका पर कहा, 'याचिकाकर्ता एम सी मेहता मामले में लंबित कार्यवाही में हस्तक्षेप याचिका दायर करने के लिए याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता चाहते हैं।' इस मामले में अब बुधवार को सुनवाई की जाएगी।

कॉउटिन्हो ने 24 अक्टूबर को याचिका दायर की थी। केंद्र, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग, कई केंद्रीय मंत्रालयों, नीति आयोग, दिल्ली सरकार, पंजाब सरकार, हरियाणा सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार, बिहार सरकार और महाराष्ट्र सरकार को अपना पक्षकार बनाया था।

याचिका में कहा गया है कि वर्तमान समय में वायु प्रदूषण संकट सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के स्तर पर पहुंच गया है। ये संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। याचिका में वायु प्रदूषण को एक राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने और इसके लिए राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार करने का अनुरोध किया गया था।

याचिका में कहा गया है कि दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण दिल्ली में 22 लाख स्कूली बच्चों के फेफड़ों को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंच चुकी है। सरकारी और चिकित्सा अध्ययनों से इसकी पुष्टि होती है। कहा गया है कि वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियां अपर्याप्त हैं।

याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को 2019 में वर्ष 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर को 20-30 प्रतिशत तक कम करने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था। बाद में इसे 2026 तक 40 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया था। हालांकि इससे सामान्य उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। जुलाई 2025 तक आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि 130 निर्दिष्ट शहरों में से केवल 25 ने साल 2017 के मुकाबले पीएम10 के स्तर में 40 प्रतिशत की कमी हासिल की है। वहीं 25 अन्य शहरों में वास्तव में वृद्धि देखी गई है।

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