दिल्ली का भूतिया दरवाजा: सूरज ढलते ही परिंदा भी नहीं मारता पर, इतिहास जान रह जाएंगे दंग

दिल्ली में एक ऐसी इमारत मौजूद है, जिसको लेकर कहा जाता है कि रात होते ही यहां से भूतिया आवाजें आती हैं। लोगों का कहना है कि रात के अंधेरे में इस जगह पर आत्माएं भटकती हैं।

Updated On 2025-08-08 09:26:00 IST
दिल्ली का खूनी दरवाजा

Delhi Haunted Place: राजधानी दिल्ली के इतिहास में अनेकों कहानी और किस्से दफन है। दिल्ली की हर गली, सड़क और पुरानी इमारत से कोई ना कोई किस्सा जुड़ा हुआ है। आज हम एक पुरानी इमारत के एक दरवाजे से जुड़ी कहानी बता रहे हैं। इस दरवाजे की कहानी इसके नाम की तरह बेहद रोमांचक और डरावनी है। ये जगह बहादुरशाह मार्ग पर दिल्ली गेट के पास स्थित है।

दरवाजे का इतिहास बेहद रोचक और रहस्यमयी है। कहा जाता है कि इस दरवाजे का निर्माण सूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल (1540-1545) में करवाया था। फिरोजाबाद के लिए बनवाए गए इस दरवाजे को आज फिरोज शाह कोटला कहा जाता है। यह 15.5 मीटर ऊंचा है, जिसे दिल्ली के क्वार्टजाइट पत्थर से तीन मंजिला बनाया गया है। इस दरवाजे में जालीदार खिड़कियां, सुरंगनुमा गलियारे और सीढ़ियां बनाई गई है। इसे मजबूत और भव्य तरीके से खास डिजाइन किया गया है।

क्यों कहा जाता है खूनी दरवाजा?

इस दरवाजे की कहानी 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी है। इस दौरान एक बेहद क्रूर घटना को अंजाम दिया गया था। इतिहासकार आरवी स्मिथ ने अपनी किताब 'Delhi: Unknown Tales of City' में लिखा है कि इस दरवाजे के नजदीक आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दोनों बेटों मिर्जा मुगल और मिर्जा सुल्तान को ही नहीं बल्कि उनके पोते मिर्जा अबू बकर की हत्या कर दी गई थी। एक ब्रिटिश अधिकारी विलियम हॉडसन ने इन लोगों को गोली मारकर इनकी हत्या की थी।

इन सभी को 22 सितंबर 1857 के दिन हुमायूं के मकबरे से लाल किले ले जाते समय जमा भीड़ की आंखों के सामने ही मौत के घाट उतार दिया गया था। इस कारण इस दरवाजे का नाम खूनी दरवाजा पड़ गया था। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि 1739 में ईरानी शासक नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया था। इसी दौरान इस दरवाजे के पास भयंकर नरसंहार हुआ था। परन्तु कुछ लोगों का मानना है कि यह नरसंहार चांदनी चौक के दरीबा मोहल्ले के काबुली दरवाजे के पास हुआ था।

मुगल काल की कहानी

इस दरवाजे का इतिहास केवल 1857 तक सीमित नहीं है। खूनी दरवाजा मुगल काल की क्रूर घटनाओं का भी गवाह है। जहांगीर सम्राट ने अपने पिता के नवरत्नों में शामिल अब्दुल रहीम खानखाना (रहीम दास) के दो बेटों को मरवा कर उनके शवों को इसी दरवाजे के पास छोड़ दिया था। इतना ही नहीं औरंगजेब ने गद्दी के लिए अपने ही भाई दारा शिकोह का सिर काटकर इसी दरवाजे पर लटकवा दिया था। हालांकि ये बात कितनी सच है, ये तो कह पाना बेहद मुश्किल है क्योंकि अब तक इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं। 


भारत-पाकिस्तान विभाजन

कहा जाता है कि 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय हुए दंगों में यहीं पर सैकड़ों शरणार्थियों की हत्या कर दी गई थी। मरे हुए लोगों की दर्द और चीखें आज भी यहां की हवा में गूंजती हैं। कुछ ऐसी कहानियां भी फैली हुई हैं कि मानसून के मौसम में इस दरवाजे की छत से खून की बूंदे टपकती हैं। हालांकि इन सब कहानियों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है।


साल 2002 की घटना

साल 2002 में इसी दरवाजे के पास दुष्कर्म की एक घटना घटित हुई थी। यहां पर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की एक छात्रा के साथ दुष्कर्म की घटना घटित हुई थी। इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस स्मारक को आम जनता के लिए बंद कर ताला लगा दिया था, जो अब तक लगा हुआ है। हालांकि अभी भी पर्यटक यहां आते हैं और इसे बाहर से निहारते हैं।

जरूर देखना चाहिए खूनी दरवाजा

खूनी दरवाजा दिल्ली के 13 ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यह शेरशाह सूरी की स्थापत्य कला का अनोखा उदाहरण है। यह दरवाजा मुगल काल, 1857 के विद्रोह और 1947 भारत-पाकिस्तान के विभाजन की कहानियों का गवाह रहा है। इतिहास प्रेमी लोगों को इस दरवाजे को जरुर देखना चाहिए, ताकि इसके सामने खड़े होकर खेल, बलिदान, और सत्ता के खेल से रंगे इतिहास को महसूस कर सकें।

कैसे जाएं इस दरवाजे तक?

अगर आप भी इस दरवाजे को देखने का मन बना चुके हैं, तो बता दें कियह दरवाजा दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर फिरोज शाह कोटला मैदान के सामने, दिल्ली गेट के पास स्थित है। यहा जाने का सबसे अच्छा साधन मेट्रो है। आप दिल्ली गेट मेट्रो स्टेशन से उतरकर इस दरवाजे के पास पहुंच सकते है। आप ऑटो, रिक्शा या फिर टैक्सी लेकर भी यहां पहुंच सकते हैं।

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