High Court: 'अगर पीड़िता अपने...,' सौतेली बेटी से दुष्कर्म मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मामले में आरोपी सौतेले पिता की सजा को बरकरार रखते हुए जरूरी दलीलें दी हैं...

Updated On 2025-12-28 11:37:00 IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग सौतेली बेटी से दुष्कर्म के मामले में सुनाया फैसला। 

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने सौतेले पिता द्वारा अपनी नाबालिग बेटी से दुष्कर्म के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। HC ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट की ओर से दी गई 20 साल की कैद की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने साफ कहा है कि POCSO एक्ट के तहत दोषी को केवल इसलिए बरी नहीं किया जा सकता, क्योंकि पीड़िता ट्रायल के दौरान अपने बयान से पलट गई, खासतौर से तब जब वैज्ञानिक और मेडिकल सबूत भी हो।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मामले को लेकर जस्टिस अमित महाजन की बेंच ने आरोपी की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि बच्ची पीड़िताओं का बाद में बयान बदलना अक्सर परिवार के दबाव, आर्थिक निर्भरता और घर टूटने के डर के कारण होता है। कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में बच्चे पर अपराधी को बचाने का बोझ नहीं डाला जा सकता।

क्या है पूरा मामला ?

पूरा मामला साल 2016 मार्च का बताया जा रहा है, उस वक्त पीड़िता की उम्र करीब 12 साल थी। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि रात को सोते समय उसके सौतेले पिता ने उसके साथ दुष्कर्म किया था। इस बारे में पीड़िता ने अपनी मां को बताया, जिसके बाद मामले की शिकायत थाने में दर्ज करवाई गई थी।

पुलिस ने CRPCकी धारा 164 के तहत बयान दर्ज किया था। लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि ट्रायल के दौरान पीड़िता, उसकी मां और बहन ने अपने बयान बदल दिए थे। उस वक्त आरोपी ने दलील देते हुए कहा कि, 'घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह (पीड़िता) ने ही केस का समर्थन नहीं किया, इसलिए उसे बरी किया जाए।'

इस तरह की झूठ बोलने पर करती है मजबूर-कोर्ट

कोर्ट ने आरोपी की दलील को खारिज करते हुए कहा कि, 'एक बच्चा जिसे ऐसे व्यक्ति को दोषी ठहराने की स्थिति का सामना करना पड़ता है जो उसे आश्रय और आर्थिक स्थिरता देता है, वह निस्संदेह एक गंभीर संघर्ष का सामना करता है। बच्चे की जीवित रहने की प्रवृत्ति, समाज से अलग-थलग पड़ने का डर और परिवार को बचाने की इच्छा पीड़िता को सच से पीछे हटने के लिए मजबूर कर सकती है।'

जस्टिस महाजन द्वारा तर्क दिया गया कि पीड़िता केबदले रवैये का पता उसके धारा 164 के बयान से लगाया जा सकता है। कोर्ट ने वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर कहा कि 'फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री (FSL) रिपोर्ट में पता लगा है कि पीड़िता के अंडरगारमेंट से मिला DNA आरोपी से मैच करता है।

ऐसे में POCSO एक्ट की धारा 29 और 30 के तहत दोष की धारणा को हल्के में नहीं लिया जा सकता।' अदालत ने यह भी कहा कि विधायिका ने POCSO एक्ट के तहत स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस इस तरह के अपराध से पीड़ित बच्चों को शेल्टर होम भेजने और जल्द व्यवस्था करने के लिए कहा, ताकि बच्चे दबाव में ना रहें।

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