Delhi Hauz Khas lake: सुल्तान इल्तुतमिश ने यहां खुदवा दी हौज-ए-खास झील, दिल्ली की रही जीवनरेखा

दिल्ली में एक झील है, जिसका नाम हौज-ए-शम्सी है। इस झील को सुल्तान इल्तुतमिश ने बनवाया था। एक समय पर यह झील दिल्ली की जल जीवन रेखा हुआ करती थी। अब इसे संरक्षित विरासत स्थल घोषित कर दिया है।

Updated On 2025-10-17 07:50:00 IST

Hauz Khas lake History

Hauz Khas lake History: दिल्ली की गलियों में हर जगह इतिहास छिपा है। इस इतिहास की अनेक कहानियां भी मौजूद हैं। इनमें से एक कहानी हौज-ए-शम्सी झील की है, जो कि दिल्ली के हौज खास इलाके में स्थित है। यह झील लगभग 800 साल पुरानी है। यह दिल्ली की सबसे पुरानी झील में से एक मानी जाती है। कहते हैं इस झील को इल्तुतमिश ने बनवाया था। 

सपने में मिला था आदेश

ऐसा कहा जाता है कि गुलाम वंश के तीसरे सुल्तान शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को एक रात पैगंबर मुहम्मद ने सपने में दर्शन दिए थे। सपने में पैगंबर ने उन्हें एक खास जगह के बारे में बताया कि इस जगह पर पानी का स्रोत निकलेगा। इल्तुतमिश ने अपने अध्यात्मिक गुरु ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के साथ जाकर उस जगह का पता लगाया। यह जगह महरौली के जंगलों में थी। उन्होंने वहां पर सच में जमीन से पानी निकलता देखा था। सुल्तान ने उसी समय वहां पर एक झील खुदवाने का आदेश दे दिया। इस झील का नाम हौज-ए-शम्सी रखा गया। जिसका अर्थ होता है, सूर्य का झील। शम्सी नाम भी सुल्तान के नाम पर ही रखा गया था। शम्सुद्दीन नाम का मतलब भी सूर्य का धर्म होता है। यह घटना 1230 ईस्वी की थी। इस झील के बीच में आज भी लाल बलुआ पत्थर से बना गुबंद वाला छोटा मंडप खड़ा है। जहां पर पैगंबर के घोड़े के खुर के निशान को पवित्र मानकर संरक्षित रखा गया है।

कभी हुआ करती थी दिल्ली की जीवन रेखा

इल्तुतमिश ने यह झील दिल्ली की जनता के लिए बनवाई थी ताकि बारिश का पानी इसमें जमा हो सके और लोगों को साल भर पीने का पानी मिल सके। शुरू में यह झील लगभग 5 एकड़ में फैली हुई है। उस समय यह दिल्ली की जलापूर्ति का मुख्य स्रोत थी। सुल्तान के रईसों और दरबारियों के लिए यह जगह मनोरंजन का ठिकाना थी। लोग यहां पर नाव चलाते थे और शाम को गीत-संगीत होते थे। 14वीं सदी में यात्री 'इब्न बतूता' ने अपनी डायरी में इस नदी का जिक्र किया कि 'मीठे पानी की नदी दो मील लंबी और एक मील चौड़ी थी।' बाद में लोदी वंश ने झील के किनारे जहाज महल नाम का एक सुंदर भवन बनवाया, जो यात्रियों के आराम के लिए था। मुगल काल में यह झील और भी सुंदर बन गई थी। जहांगीर और शाहजहां ने यहां पर फव्वारे लगाए और बहादुर शाह द्वितीय ने इस मंडप को और अधिक भव्य बनवाया था।

समय के साथ बिगड़ती गई हालत

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद इस झील की हालत खराब होने लगी थी। 18वीं और 19वीं सदी में यहां कचरा जमा होने लगा और झील सूखने लगी। 20वीं सदी तक यह जगह डंपिंग ग्राउंड में बदल गई। परन्तु 2023 में स्थानीय लोगों ने इसे फिर से जीवित करने की ठान ली। उन्होंने प्राइड ऑफ शम्सी नाम का एक समूह बनाया और एएसआई व एनजीए सीड्स के साथ मिलकर झील की सफाई शुरू कर दी। आधुनिक तकनीक से एरेटर्स, बायो-फिल्टर्स और फव्वारे लगाकर पानी को दोबारा साफ किया गया। अब यह झील फिर से सुंदर दिखाई देती है और प्रवासी पक्षियों का घर बन चुकी है। यहां पर किंगफिशर, व्हाइट थ्रोटेड किंगफिशर जैसी कई पक्षी प्रजातियां दिखाई देती हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसे संरक्षित जल विरासत स्थल घोषित कर दिया है। यह झील दिल्ली के इतिहास और विरासत का उदाहरण है।

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