विकास में सहायक छत्तीसगढ़ के वन: पिछले 25 सालों में खनिज से बढ़ी डेवलपमेंट की रफ़्तार, लोगों को मिले रोजगार

छत्तीसगढ़ के वनों से पिछले 25 सालों में कई लाभ हुए हैं। वन क्षेत्र में वृद्धि, ग्रामीण आजीविका के अवसर, जैव विविधता का संरक्षण और पर्यावरण सुधार शामिल हैं।

Updated On 2025-08-23 16:42:00 IST

वन और खनिज संपदा से भरपूर बस्तर के घने जंगल और पहाड़

रायपुर। छत्तीसगढ़ के वनों से पिछले 25 सालों में कई लाभ हुए हैं, जिनमें वन क्षेत्र में वृद्धि, ग्रामीण आजीविका के अवसर, जैव विविधता का संरक्षण और पर्यावरण सुधार शामिल हैं। राज्य ने 'हरियर छत्तीसगढ़' जैसी योजनाओं के तहत वृक्षारोपण किया है, वन अधिकार के प्रभावी क्रियान्वयन से लघु वनोपज संग्रहण में वृद्धि हुई है, और 'हरित सकल घरेलू उत्पाद' से वनों के आर्थिक व पारिस्थितिक मूल्य को महत्व दिया जा रहा है।

वनों को लेकर सीएम विष्णुदेव साय ने कहा था कि, हमारा छत्तीसगढ़ खनिज संसाधनों से भरपूर है। यहां का 44% भू-भाग वनों से आच्छादित है। सैकड़ों तरह के वनोपज हैं और यहां की जमीन उर्वरा शक्ति से भरपूर है, जो राज्य की तरक्की में सहयोगी हैं और इसके लिए विज़न डॉक्यूमेंट निश्चित ही राज्य के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। 


राज्य के वन क्षेत्र में हुई वृद्धि
भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा हर दो साल में प्रकाशित की जाती है, जो देश भर के विभिन्न राज्यों में वनों की स्थिति बताती है। वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार- छत्तीसगढ़ का कुल वन क्षेत्र 2019 में 55611 वर्ग किमी से बढ़कर 2021 में 55717 वर्ग किमी हो गया है। इस प्रकार, वन क्षेत्र में 106 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। वृक्षारोपण में वृद्धि (अभिलिखित वन क्षेत्र के बाहर 1.0 हेक्टेयर और उससे अधिक के सभी वृक्ष क्षेत्र)- दो वर्षों में 1107 वर्ग किमी हुई है। वहीं वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार- छत्तीसगढ़ का कुल वन क्षेत्र 2021 में 55717 वर्ग किमी से बढ़कर 2023 में 55811.75 वर्ग किमी हो गया है। इस प्रकार, वन क्षेत्र में वृद्धि हुई है। 94.75 वर्ग किमी वृक्षावरण में वृद्धि (अभिलिखित वन क्षेत्र के बाहर 1.0 हेक्टेयर और उससे अधिक क्षेत्रफल वाले सभी वृक्ष क्षेत्र)- दो वर्षों में 702.75 वर्ग किमी है। 


लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मिले रोजगार
रोजगार सृजन में खनन की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह लगभग 2,00,000 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है और संबद्ध गतिविधियों के माध्यम से लगभग 20 लाख रोज़गारों को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देता है। यह इस्पात, बिजली, सीमेंट और एल्युमीनियम जैसे प्रमुख क्षेत्रों को ऊर्जा प्रदान करता है, जो राज्य के कोयला, लौह अयस्क और बॉक्साइट के समृद्ध भंडारों पर निर्भर हैं। ये उद्योग बदले में, विनिर्माण, रसद और बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त रोज़गार के अवसर पैदा करते हैं।


राजस्व सृजन से चल रही जनकल्याणकारी योजनाएं
राज्य को लाभार्थी- आधारित योजनाओं और बुनियादी ढांचे के विकास दोनों के लिए धन की आवश्यकता है। जैसे- महतारी वंदन योजना, कृषक उन्नत योजना, तेंदू पत्ता योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन, विभागीय भर्तियाँ, दीनदयाल उपाध्याय भूमिहीन कृषि मजदूर कल्याण योजना और बिजली सब्सिडी, आदि। सिंचाई के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को भी समर्थन देना आवश्यक है। जैसे बोधघाट बहुउद्देशीय बाँध- जो आठ लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करने में सक्षम है। 


संसाधनों के उपयोग से विकास को मिली रफ्तार
राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता उनके आर्थिक विकास को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। संसाधन संपन्न राज्यों के पास अन्य राज्यों की तुलना में तेजी से तरक्की के अवसर होते हैं। छत्तीसगढ़ देश के सर्वाधिक खनिज और वन संसाधन संपन्न राज्यों में से एक है। लेकिन पूर्वकालिक परिस्थितियों में संसाधनों का समुचित सदुपयोग ना हो पाने के चलते आर्थिक और सामाजिक तरक्की के रास्ते प्रभावित हुए। यहां कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर, बॉक्साइट, सोना, निकल, क्रोमियम आदि कुल 28 खनिजों के भंडार मौजूद हैं। 


राज्य के गठन के बाद राजस्व में हुई 30 गुना की वृद्धि
वहीं दूसरी तरफ लगभग 50% वन क्षेत्र वाले छत्तीसगढ़ के पास हरियाली का अथाह भंडार है। राज्य के खनिज राजस्व में राज्य के गठन के बाद 30 गुना वृद्धि हुई है, जो कि वित्त वर्ष 2023‑24 में 13,000 करोड़ रुपये और अप्रैल 2024‑फरवरी 2025 के दौरान 11,581 करोड़ रुपये रहा। खनिज राजस्व ने राज्य की कुल आय में लगभग 23% का योगदान दिया, जीएसडीपी में लगभग 11% योगदान प्रदान किया। खनिज राजस्व में बढ़ोतरी से जनकल्याणकारी योजनाओं पर राज्य सरकार ज्यादा से ज्यादा खर्च कर सकेगी और आम जनता का जीवन स्तर बेहतर होगा। इस दृष्टिकोण से खनन आम जनता, जंगलों और प्रदेश की समृद्धि के लिए जरूरी है। 


वन्यजीव प्रबंधन योजना के लिए धनराशि आवंटित
प्रतिपूरक वनरोपण के अलावा, कैम्पा कोष में प्रति हेक्टेयर 11 से 16 लाख रुपये जमा किए जाते हैं। इसका उपयोग वन क्षेत्रों में विभिन्न कार्यों, जैसे कि क्षरित वनों में वृक्षारोपण और मृदा संरक्षण प्रयासों के लिए किया जाता है। खनन क्षेत्र के आसपास वन्यजीव प्रबंधन योजना (परियोजना लागत का औसतन 2%) के लिए भी धनराशि आवंटित की जाती है, और मृदा नमी संरक्षण योजना का क्रियान्वयन किया जाता है। प्रभावी रूप से, प्रति हेक्टेयर 40-50 लाख रुपये जमा किए जाते हैं। 


अब तक 44 खनिज ब्लॉक की हुई ई‑नीलामी
अब तक 44 खनिज ब्लॉक की ई‑ नीलामी हो चुकी है। जिनमें चूना पत्थर, लौह अयस्क, बॉक्साइट, सोना, निकल‑ क्रोमियम, ग्रेफाइट, ग्लूकोनाइट और लिथियम शामिल हैं। भारत का पहला लिथियम ब्लॉक (कोरबा, कटघोरा) छत्तीसगढ़ में नीलामी के माध्यम से सफलतापूर्वक आवंटित हुआ। 2025 में लौह अयस्क के नए ब्लॉकों की नीलामी की प्रक्रिया तेज है, खासकर बैलाडीला क्षेत्र में। 


चरणबद्ध तरीके से की जाती है पेड़ों की कटाई
किसी भी खनन मामले में एफसीए की मंजूरी के अनुसार, पेड़ों की कटाई हमेशा चरणबद्ध तरीके से की जाती है। उदाहरण के लिए, आरवीवीएनएल के मामले में, पीईकेबी खदान ने 1,900 हेक्टेयर क्षेत्र को डायवर्ट किया, और औसतन 80 से 90 हेक्टेयर प्रति वर्ष पेड़ों की कटाई की जाती है। चूँकि, खनन 40 से 50 वर्षों तक चलता है। इसलिए खनन क्षेत्र में प्रभावित कुल पेड़ों में से केवल 5 से 6% पेड़ ही हर साल काटे जाते हैं। 

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