रणबोर मेले में उमड़ा आस्था का सैलाब : अनोखे कुंड के लिए है प्रसिद्ध, इस गांव से लाए गए दूध से ही यह भरता है

लोक परम्परा में मड़ई मेला काफी फैमस मेला है। पूरे छत्तीसगढ़ में यह मेला आस्था और विश्वास से जुड़ा है।

Updated On 2024-01-19 13:03:00 IST
छत्तीसगढ़ में यह मेला आस्था और विश्वास से जुड़ा है।

कुश अग्रवाल/पलारी- छत्तीसगढ़ की लोक परम्परा में मड़ई मेला काफी फैमस मेला है। पूरे छत्तीसगढ़ में यह मेला आस्था और विश्वास से जुड़ा है। ऐसा ही एक मेला बलौदा बाजार जिले के 16 किलोमीटर दूर पलारी विकासखंड के ग्राम गातापार में होता है। जो पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। इस बार यह मेला तीन दिन से चल रहा है। यानी 18 जनवरी से शुरू होकर 20 जनवरी तक चलेगा। मेले में प्रदेशभर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। 

मेले के पीछे की कहानी क्या है...

इस मेले की खासियत भाई-बहन के प्यार और बलिदान को लेकर है। इसके पीछे की कहानी बुजुर्गों ने बताई कि, पहले रन बोर्ड क्षेत्र घना जंगल था। पलारी विकासखंड के ग्राम सकरी दतान का रहने वाला एक भाई अपनी बहन को तीजा पोला त्यौहार में लेकर अपने गांव सकरी जा रहा था।  तभी दोनों भाई-बहन पानी पीने के लिए ग्राम गतापार के बाहर बने छोटे से सरोवर में रुके और सरोवर के पास झाड़ियां में छिपा शेर ने उसकी बहन पर हमला कर दिया और अपनी बहन को बचाते हुए भाई भी शेर के हमले से घायल हो गया था। कुछ दूर के पास उसकी मौत हो गई थी। जिस स्थान पर बहन की मौत हुई, उस जगह पर एक जमीन में कुंड बना हुआ है। उसी वक्त भाई भी कुछ ही दूरी पर पत्थर में तब्दील हो गया ,जिसे आज भी देख सकते हैं। इस कुंड की खासियत यह है कि, इसमें कितना भी पानी डालो यह नहीं भरता, लेकिन बहन के मायके ग्राम सकरी से लाया गया दूध डालने से यह कुंड तुरंत भर जाता है और यह कुंड सिर्फ भरता ही नहीं, इसका पानी छलकने भी लगता है।

इसका प्रमाण देखा जा सकता है...

समय के साथ इस जगह पर जहां पर कुंड है, वहां पर शक्ति का प्रतीक माता दुर्गा का मंदिर भी बना हुआ है। जिसे रणबौर दाई के नाम से पूजा जाता है। अमूमन ये मेला तीन ही दिन का होता है। जो हर बार पुस महीने के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाले, अंतिम गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को लगता है। इस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु आते हैं। 
 

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