तेलासीपुरी धाम में गुरुदर्शन मेला : सीएम साय का भी कार्यक्रम प्रस्तावित, कलेक्टर-एसपी ने तैयारियों का लिया जायजा

12 अक्टूबर को गुरुदर्शन मेले का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में कई विधायकों और मंत्रियों के पहुंचने की संभावना है।

By :  Ck Shukla
Updated On 2024-10-09 16:35:00 IST
कलेक्टर दीपक सोनी और एसपी ने सभी प्रकार की व्यवस्था किया निरीक्षण

कुश अग्रवाल-  बलौदाबाजार। बाबा गुरु घासीदास की कर्मभूमि तेलासीबाड़ा में आगामी 12 अक्टूबर को गुरुदर्शन मेले का आयोजन किया जाएगा। जिसमें हजारों की संख्या में प्रदेश के विभिन्न जिलों सहित अन्य प्रदेशों से श्रद्धालु यहां जुटते हैं। कलेक्टर-एसपी ने विभिन्न स्थलों को दौरा करके बारीकी से व्यवस्था से संबंधित विषयों पर विचार-विमर्श किया। 

प्रमुख रूप से उन्होंने मंदिर परिसर, बाड़ा, जैतखाम, पार्किंग एरिया, सुरक्षा, लाइटिंग, हाईमास्क, पेयजल की व्यवस्था आदि का स्थल निरीक्षण किया और पुराने अनुभवों के आधार पर इससे और अच्छी व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए। इसके साथ ही विभिन्न विषयों पर मेला प्रबंधन से जुड़े लोगों से भी विचार-विमर्श किया गया। इसके अतिरिक्त वीवीआईपी मूवमेंट को देखते हुए हेलीपैड तैयार करने कहा गया है। सफाई की व्यवस्था को पहले बेहतर करने के निर्देश सीएमओं पलारी एवं जनपद सीईओ पलारी को दिए है इस अवसर पर मेले समिति से जुड़े सदस्य, स्थानीय जनप्रतिनिधि गण, जिला पंचायत सीईओ दिव्या अग्रवाल, एसडीएम सीमा ठाकुर, एसडीपीओ श्री कौशिक, सहित दर्जनभर से अधिक कर्मचारी उपस्थित थे। 

तेलासीपुरी का ऐतिहासिक महत्व

जिला मुख्यालय बलौदाबाजार से लगभग 40 किलोमीटर दूर भैसा से आरंग मार्ग में ग्राम तेलासी स्थित है। जहां पर बाबा गुरू घासीदास की कर्मभूमि एवं सतनामी पंथ के संत अमर दास की तपोभूमि जिसे स्थानीय लोग तेलासी बाड़ा भी कहते हैं। सतनाम पंथ के लोगों के लिए यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। 1840 के लगभग तेलासी बाड़ा का निमार्ण गुरु घासीदास के द्वितीय पुत्र बालक दास द्वारा निर्माण किया गया और उनका तेलासी बाड़ा में जीवन यापन चलता रहा। गुरु बालक दास के मृत्यु के बाद 1911 में तेलासी के साथ 273 एकड़ जमीन गणेशमल के पास गिरवी के द्वारा काबिज किया गया था, जिसे समाज के सर्वोच्च गुरु असकरणदास एवं राजमहंत नैन दास कुर्रे के नेतृत्व 103 समाज के लोग जेल गए थे। इसी नेतृत्व में 27 अप्रैल 1986 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा द्वारा उक्त जमीन समाज को देने की निर्णय लिया गया। जो कि आज भी प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर के रूप में स्थापित हैं।

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