नाग पंचमी: त्रियोग में रात्रि 12:23 बजे तक पूजे जाएंगे नाग देव

श्रावण मास में मनाई जाने वाली नाग पंचमी तिथि का प्रारंभ सोमवार रात्रि 11 बजकर 28 मिनट से हो गया है।

Updated On 2025-07-29 15:53:00 IST

File Photo 

रायपुर। विशेष योग में नाग देवता आज पूजे जाएंगे। श्रावण मास में मनाई जाने वाली नाग पंचमी तिथि का प्रारंभ सोमवार रात्रि 11 बजकर 28 मिनट से हो गया है, लेकिन उदया तिथि के आधार पर मंगलवार को नाग पंचमी मनाई जाएगी। मंगलवार मध्यरात्रि पश्चात 12 बजकर 23 मिनट तक पंचमी तिथि व्याप्त रहेगी। ज्योतिष गणना के अनुसार इस बार नाग पंचमी पर कई दुर्लभ संयोग बन रहे हैं। इस दिन शिव योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और सिद्धि योग का संयोग बन रहा है, जिसमें नागदेव की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होगा।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, पूरे दिन पूजा-अर्चना की जा सकती है, लेकिन नाग पंचमी के दिन पूजा का विशेष मुहूर्त सुबह 4:32 बजे से लेकर दोपहर 1:25 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजन करना अधिक फलदायी रहेगा। भगवान शंकर को समर्पित श्रावण मास में श्रद्धालु व्रत, उपवास और शिव पूजन के माध्यम से भगवान शंकर को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। नाग पंचमी पर आज शिव के साथ नाग देव की पूजा की जाएगी। शिव मंदिरों में श्रृंगार, भोग, प्रसादी सहित अन्य तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं।

दोष मुक्ति के लिए होगा पूजन
छत्तीगसढ़ के प्राचीन भोरमदेव मंदिर में प्रातःकाल से पूरे दिन विशेष अभिषेक का क्रम जारी रहेगा। दोष निवारण के लिए विशेष पूजन किया जाएगा। मंदिर प्रबंधन ने इसके लिए तैयारी सोमवार को ही पूर्ण कर ली है। रायपुर के नरहरेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी देवशरण शर्मा के मुताबिक, यदि नाग मंदिर समीपस्थ नहीं है तो शिवलिंग पर दूध अर्पित करके नाग देवता की पूजा करनी चाहिए। इस दिन व्रत रखने और ब्राहमण अथवा गरीब को खीर का भोग खिलाने से पुण्य की प्राप्ति होती है और ग्रह दोष भी शांत होते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग अथवा राहु-केतु दोष हैं तो इस पूरे दिन विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से नाग देवता की विशेष कृपा प्राप्त होगी और सभी तरह के दोष से मुक्ति मिलेगी। मंदिरों में भी दोष निवारण के लिए भक्तगण आज विशेष पूजन करेंगे।

नाग पंचमी पर क्यों की जाती है नागों की पूजा
नाग पंचमी के दिन नागों की विशेष पूजा अर्चना करना चाहिए। पूजा के लिए घी, खीर और गुग्गल का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस अपने परिवार के साथ भोजन करना चाहिए। प्रथम मीठा भोजन करना चाहिए और उसके बाद अपने हिसाब से भोजन कर सकते हैं। नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है, नागों का इस तिथि से क्यों खास नाता है, यह जानने के लिए आपको नागों से जुड़ी यह कथा पढ़नी चाहिए। इस कथा का वर्णन अग्नि पुराणों में मिलता है। एक बार राक्षसों और देवताओं ने मिलकर समुद्र का मंथन किया। उस समय समुद्र से अतिशय शेत उच्चैःश्रवा नामका एव अश्च निकला। उसे देखकर नागमाता कढू ने अपनी सौत से कहा कि देखो, यह अशेत वर्ण का है, लेकिन इसके बाल काले दिख रहे हे। तब विनता ने कहा कि न तो यह अश्च श्वेत है, न काला है ओर न लाल। यह सुनकर कढूः कहा कि मेरे साथ शर्त लगाओ कि अगर मैं इस अश्ववे बालों को कृष्ण वर्ण का दिखा दूं तो तुम मेरी दास हो जाओगी और अगर नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊंगी। विनता ने यह शर्त स्वीकार कर ली। इसके बाद कढू ने अपने पुत्र नागों को बुलाकर सारी कहानी सुनाई और पुत्रों से कहा कि तुम अश्च के बाल के समान छोटे हो जाए और उच्चैःश्रवा के शरीर में लिपट जाओ, जिससे यह काले रंग का दिखाई देने लगे और मैं अपनी सोत विनता को जीतकर उसे अपनी दासी बना लूंगी।

आस्तीक मुनि ने नागों की रक्षा पंचमी में की थी
माता की इन बातों को सुनकर नागों ने कहा-यह छल तो हम लोग नहीं करेंगे, चाहे तुम्हारी जीत हो या हार। यह सुनकर कद्दू कुद्ध होकर कहा-तुमलोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिए मैं तुम्हें शाप देती हू कि पाण्डवों के वंश में पैदा हुआ राजा जनमेजय जब सर्प-यज्ञ करेंगे, तब उस यज्ञ में तुम सभी अग्रि में जल जाओगे। घबराकर नाग वासुकि को साथ में लेकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और ब्रहमाजी को अपना सारी कहानी सुनाई। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि आस्तीक नाम का विख्यात ब्राह्मण होगा, वह जनमेजय के सर्पयज्ञ को रोकेगा ओर तुम लोगों की रक्षा करेगा। यही बात श्रीकृष्ण भगवान ने भी युधिष्ठिर से कही थी कि आज से सौ वर्ष के बाद सर्पयज्ञ होगा, जिसमें बड़े-बड़े विषधर ओर दुष्ट नाग नष्ट हो जाएंगे। करोड़ों नाग जब अग्रि में दग्ध होने लगेगे, तब आस्तीक नामक ब्राह्मण सर्पयज्ञ रोककर नागों की रक्षा करेगा। ब्रह्माजी ने पंचमी के दिन वर दिया था ओर आस्तीक मुनि ने पंचमी को ही नागों को रक्षा की थी, अतः पंचमी तिथि नागों को बहुत प्रिय है।

कड़ चीजों का भोग लगाएं
भोरमदेव मंदिर के पं. आशीष शास्त्री ने बताया कि, नाग देव को करेला सहित अन्य कड़ चीजों का भोग लगाकर स्वयं भी ग्रहण करें। इससे विष का भय नहीं होता है। दूध, दही, मधुरस अथवा पंचामृत से विशेष अभिषेक करें।

Tags:    

Similar News