हड़ताली NHM कर्मी की हार्ट अटैक से मौत: 12 दिन से कर रहे आंदोलन, धरनास्थल पर शोक की लहर
जगदलपुर में हड़ताल में बैठे एनएचएम ब्लॉक अकाउंट बीएस मरकाम की हार्ट अटैक से मौत हो गई। वे 12 दिनों से लगातार अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे थे।
ब्लॉक अकाउंटेंट को श्रद्धांजलि देते NHM कर्मी
जीवानंद हलधर- जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में हड़ताल में बैठे एनएचएम ब्लॉक अकाउंट बीएस मरकाम की हार्ट अटैक से मौत हो गई। वे 12 दिनों से लगातार अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे थे। उनके देहावसान से वहां मौजूद साथियों में शोक की लहर दौड़ गई। जिसके बाद वहां मौजूद एनएचएम कर्मियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
मितानिन दीदियों और एनएचएम कर्मियों ने सीएम हॉउस घेराव की दी चेतावनी
राजधानी रायपुर में सोमवार को मितानिन दीदियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार को चेतावनी दी कि यदि उनकी तीन सूत्रीय मांगों को पूरा नहीं किया गया तो आगामी 4 सितंबर को 75 हजार से अधिक मितानिनें राजधानी में जुटकर मुख्यमंत्री निवास का घेराव करेंगी। मितानिन दीदियां लंबे समय से मानदेय वृद्धि, नियमितीकरण और सामाजिक सुरक्षा जैसी मूलभूत मांगों को लेकर संघर्ष कर रही हैं। उनका कहना है कि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली मितानिनें गांव-गांव में 24 घंटे सेवाएं देती हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें सम्मानजनक पारिश्रमिक और सुरक्षा नहीं मिल पा रही है। हड़ताल के चलते ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यापक असर पड़ रहा है। टीकाकरण, पोषण, प्राथमिक उपचार और गर्भवती महिलाओं की देखरेख जैसी सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। कई गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव गहराता जा रहा है। मितानिन संगठन ने कहा कि सरकार यदि जल्द उनकी समस्याओं का समाधान नहीं करती, तो आंदोलन और उग्र रूप लेगा।
मितानिनों की प्रमुख मांगें
1. मानदेय में वृद्धि और नियमित वेतनमान की व्यवस्था।
2. नौकरी में स्थायीकरण (नियमितीकरण) की गारंटी।
3. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं (पेंशन, बीमा आदि) का लाभ।
मितानिन संगठन का कहना है कि राज्यभर में 75 हजार से अधिक मितानिनें दिन-रात स्वास्थ्य सेवाओं में लगी रहती हैं, लेकिन उन्हें आज भी केवल प्रोत्साहन राशि (इंसेंटिव) के सहारे काम करना पड़ रहा है।
वर्ष 2002 में हुई थी मितानिन कार्यक्रम की शुरुआत
छत्तीसगढ़ राज्य गठन (साल 2000) के बाद ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के लिए वर्ष 2002 में मितानिन कार्यक्रम की शुरुआत हुई। यह योजना छत्तीसगढ़ की अपनी मौलिक पहल थी। प्रत्येक गांव से एक महिला को चुनकर उसे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं, बच्चों व महिलाओं के पोषण, टीकाकरण, मातृत्व देखभाल और रोग-निवारण की बुनियादी ट्रेनिंग दी गई। यह मॉडल इतना सफल रहा कि बाद में केंद्र सरकार ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के अंतर्गत आशा कार्यकर्ता योजना को पूरे देश में लागू किया। इस प्रकार मितानिन योजना ने देशभर में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए एक मिसाल पेश की।
वर्तमान स्थिति और असर
मितानिनें बीते दो दशकों से गांव-गांव में टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की देखरेख, कुपोषण उन्मूलन, स्वास्थ्य जागरूकता, प्राथमिक उपचार, मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों की रोकथाम में अहम भूमिका निभाती रही हैं। लेकिन वर्तमान हड़ताल के कारण ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरा असर पड़ा है। कई गांवों में प्रसव पूर्व देखभाल, पोषण कार्य और दवा वितरण प्रभावित हो गया है।
यह है मितानिन दीदियों का आरोप
मितानिन दीदियों का आरोप है कि वे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं, लेकिन उन्हें न तो स्थायी नौकरी का दर्जा मिला और न ही न्यूनतम मजदूरी जितना वेतन। वे कहती हैं कि अब जब तक उनकी तीन सूत्रीय मांगें पूरी नहीं होतीं, आंदोलन जारी रहेगा।
सरकार की ओर से स्थिति
स्वास्थ्य विभाग की ओर से बातचीत की कोशिशें हुई हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस आश्वासन सामने नहीं आया है। प्रशासन को आशंका है कि यदि 4 सितंबर को हजारों की संख्या में मितानिनें राजधानी में जुटीं तो हालात बिगड़ सकते हैं।