झीरम हमले की 12 वीं बरसी: पीड़ित परिवारों को अब तक नहीं मिला न्याय, सियासी पेचीदगियों में उलझी सच्चाई
झीरम हमले की रविवार 25 मई को 12 वीं बरसी है। लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी हमले की सच्चाई सामने नहीं आई है। राजनीतिक पेचीदगियों में इस घटना की सच्चाई उलझी हुई है।
झीरम हमले के बाद की तस्वीर
कुश अग्रवाल-बलौदाबाजार। झीरम हमले की रविवार 25 मई को 12 वीं बरसी है। भारत के इतिहास में 25 मई 2013 की तारीख काला दिन बनकर उभरी। इसी दिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की झीरम घाटी में देश ने अपने कई नेताओं और निर्दोष लोगों को नक्सल हिंसा की बलि चढ़ते देखा। उस दिन कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर निकले काफिले पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था। यह हमला सिर्फ गोलियों और विस्फोटों तक सीमित नहीं था, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और राजनीतिक व्यवस्था पर सीधा हमला था।
हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, विधायक उदय मुदलियार, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्या चरण शुक्ल सहित पार्टी के कई अन्य कार्यकर्ता और सुरक्षाबल के जवान शहीद हो गए। कुल मिलाकर 30 से अधिक लोगों की जान इस हमले में चली गई।
हमले की योजना और तरीके
इस हमले को सोची-समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया। झीरम घाटी के जंगलों में पहले से घात लगाए नक्सलियों ने एक सुनसान इलाके में कांग्रेस के काफिले को रोककर अंधाधुंध फायरिंग और विस्फोट किया। यह हमला केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी भयावह था, क्योंकि इसमें जानबूझकर राजनीतिक नेतृत्व को निशाना बनाया गया।
जांच और न्याय की उलझनें
हमले के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को जांच सौंपी गई। प्रारंभिक जांच में कई अहम सुराग मिले लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, मामला राजनीति और कानूनी पेचीदगियों में उलझता चला गया। एक समय ऐसा भी आया जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस मामले में कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले लिया और तब से यह जांच स्थगित पड़ी हुई है। कांग्रेस ने इस मामले में बार-बार न्यायिक जांच की मांग की जबकि भाजपा ने अपने तर्क और दलीलें रखीं। लेकिन सबसे अधिक नुकसान उन परिवारों को हुआ, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया और आज तक न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
राजनीति बनाम न्याय
झीरम हमला सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं थी, यह राजनीति का वह चेहरा भी दिखाता है जहाँ सच्चाई और न्याय, आरोप-प्रत्यारोप के बीच गुम हो जाते हैं। समय-समयपर इस हमले को लेकर राजनीति गरमाई, कभी कांग्रेस ने भाजपा पर पर्दा डालने का आरोप लगाया तो कभी भाजपा ने कांग्रेस पर सुरक्षा में लापरवाही का ठीकरा फोड़ा। लेकिन 12 साल बाद भी कोई अंतिम निष्कर्ष सामने नहीं आया।
एक अनसुलझी पहेली है झीरम कांड
आज जब इस हमले को 12 वर्ष बीत चुके हैं तब भी झीरम घाटी की उस मूक धरती से यही आवाज़ उठती है, क्या कभी सच्चाई सामने आएगी? पीड़ित परिवार आज भी सवाल कर रहे हैं, हमने क्या खोया, क्यों खोया और आखिर इसका जिम्मेदार कौन है?
कांग्रेस नेता सुरेंद्र शर्मा ने बताया कैसे हुआ था हमला
झीरम घाटी हमले में कांग्रेस के काफिले में साथ में रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सुरेंद्र शर्मा से बातचीत की। इस हमले को लेकर उन्होंने बताया कि, पूरी घटना कैसे हुई और उसके बाद की स्थिति क्या रही। उन्होंने कहा कि, झीरम घाटी का हमला भारतीय राजनीति, सुरक्षा तंत्र और न्याय प्रणाली के लिए एक कठिन सवाल बनकर रह गया है। यह घटना सिर्फ अतीत की एक त्रासदी नहीं, बल्कि वर्तमान के लिए भी एक चेतावनी है। झीरम घाटी का सच अभी अधूरा है और जब तक यह अधूरा है, तब तक यह देश के हर जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह सवाल करता रहे- झीरम हमला किसने किया? न्याय कब मिलेगा ?"