बेटे का छलका दर्द: पत्र लिखकर पूर्व कांग्रेस के पूर्व सांसद स्व. परस राम भारद्वाज को सम्मान देने की लगाई गुहार

सारंगढ़ लोकसभा के पूर्व सांसद स्व. परस राम भारद्वाज के छोटे पुत्र संजय भारद्वाज ने पत्र लिखकर उनके पिता को सम्मान देने की गुहार लगाई है।

Updated On 2025-10-04 17:31:00 IST

छोटे पुत्र संजय भारद्वाज ने लिखा पत्र 

दिनेश थवाईत- पामगढ़। छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ लोकसभा के पूर्व सांसद स्व. परस राम भारद्वाज के छोटे पुत्र संजय भारद्वाज का दर्द छलक आया है। उन्होंने अपने पिता की हो रही उपेक्षा पर एक खुला पत्र लिखा जो कि, सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।

उन्होंने लिखा कि, मैं यह पत्र किसी राजनीतिक रस्म अदायगी के लिए नहीं लिख रहा हूं। एक ऐसे बेटे की ओर से, जिसका पिता जीवनभर दूसरों के लिए जिया।लेकिन आज जब सम्मान देने की बारी आई, तो उसे भुला दिया गया। स्वर्गीय परसराम भारद्वाज, मेरे पिता, आपके और इस प्रदेश के भी जननेता थे। उन्होंने 1980 से 1999 तक लगातार सारंगढ़ लोकसभा (SC आरक्षित) क्षेत्र से 6 बार सांसद रहकर छत्तीसगढ़ की जनता की आवाज़ संसद तक पहुँचाई। वे अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण समिति के अध्यक्ष, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, और कई संसदीय समितियों के सदस्य रहे। लेकिन उनकी असली पहचान उनकी सादगी, ईमानदारी और कर्मनिष्ठा थी।

उनके नाम पर हो कोई योजना
संजय भारद्वाज ने आगे लिखा कि, वे कभी मंचों के शोर का हिस्सा नहीं बने, लेकिन गाँवों की गलियों से लेकर दिल्ली के संसद भवन तक, एक-एक नागरिक की उम्मीद का नाम बने। सड़क हो या पुल, स्कूल हो या पानी उन्होंने सारंगढ़ क्षेत्र को विकास की रोशनी दी, बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी प्रचार के उन्होंने 20 वर्षों तक पूरी निष्ठा से जनता की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया और बदले में माँगा क्या? सिर्फ जनविश्वास। मगर आज यह सच कचोटता है कि, उनके जाने के वर्षों बाद भी न कोई योजना, न कोई कॉलेज, न कोई स्मारक उनके नाम पर है।

कांग्रेस सरकार के दौरान भी नहीं दिया गया ध्यान
उन्होंने आगे कहा कि, इससे भी ज़्यादा पीड़ा तब होती है जब यह जानता हूँ कि, पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान, जब बिलासपुर संभाग के एक वरिष्ठ नेता विधानसभा अध्यक्ष थे (जो आज नेता प्रतिपक्ष हैं), तब जानबूझकर इस विषय को दबा दिया गया। क्यों? क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि जिले में उनके परिवार के अलावा किसी और का नाम सम्मान से लिया जाए। क्या इतनी महान सेवा का मूल्य राजनीतिक अहंकार से तौला जाएगा? क्या अब सच्चे लोग इसलिए पीछे रहेंगे क्योंकि उन्होंने प्रचार नहीं किया? कभी-कभी मन में आता है कि, काश मेरे पिताजी भी किसी दुर्घटना में शहीद हो गए होते, तो शायद दीवारों पर तस्वीरें होतीं, योजनाओं में नाम होता। लेकिन उन्होंने जीते जी खुद को देश और समाज को समर्पित कर दिया था। क्या वही उनकी सबसे बड़ी गलती थी?

सम्मान देने की लगाई गुहार
श्री भारद्वाज ने आगे लिखा कि, आज मैं आपसे हाथ जोड़कर नहीं, एक बेटे के आँसुओं की भाषा में गुहार करता हूँ कि, कृपया उन्हें उस सम्मान से नवाज़िए जिसके वे सच में हकदार हैं। कोई मेडिकल कॉलेज, कोई विश्वविद्यालय, कोई स्मारक, कोई योजना कुछ तो हो उनके नाम पर, ताकि छत्तीसगढ़ की अगली पीढ़ी यह समझ सके कि राजनीति सिर्फ सत्ता नहीं, सेवा भी होती है। ये सिर्फ राजनीति का निर्णय नहीं, छत्तीसगढ़ के आत्मसम्मान का प्रश्न है। आपसे बस इतना आग्रह है कि, उनके नाम को जीवित रखिए। क्योंकि कुछ लोग सिर्फ ज़िंदा रहते हुए नहीं, चले जाने के बाद भी जीते हैं।

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