रेत- ईंट कारोबारियों ने मचाई लूट: मनमाने दाम से जनता की जेब पर असर, पीएम आवास के निर्माण रुके
सारंगढ़/ बिलाईगढ़ जिले के ग्रामीण इलाकों में बालू और ईंट कारोबारी खुलेआम लूट मचा रहे हैं। असमान छूते दामों के कारण पीएम आवास तक का निर्माण रुक गया है।
बढ़ते दामों के कारण निर्माण रुका
देवराज दीपक- सारंगढ़/बिलाईगढ़। छत्तीसगढ़ के सारंगढ़/ बिलाईगढ़ जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना का सपना अब गरीब हितग्राहियों के लिए एक मुसीबत का सबब बन चुका है। जिस योजना का उद्देश्य था गरीबों को पक्की छत देना, वही अब माफियाओं, दलालों और लापरवाह अधिकारियों के शिकंजे में जकड़ चुकी है। जिले के विभिन्न ग्राम पंचायतों में बालू और लाल ईंट के दामों ने रफ्तार ऐसी पकड़ी है जिसने आम जनता की जेब पर बड़ा असर पड़ेगा।
ग्रामीण इलाकों में बालू और ईंट कारोबारी खुलेआम लूट मचा रहे हैं। बालू का एक ट्रैक्टर 2200 से 2500 रुपए में बेचा जा रहा है, जबकि लाल ईंट की दर 1 हजार ईंट के लिए 6 हजार से 7 हजार रुपए तक पहुंच गई है। ये दरें किसी भी सरकारी नियंत्रण या मानक के अनुरूप नहीं हैं। बालू माफिया खुद ही दर तय कर रहे हैं, खुद ही वसूली कर रहे हैं, और सरकार को रॉयल्टी देना तो दूर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। बालू- ईंट माफियाओं की दबंगई ने निर्माण कार्य ठप करवा दिया है।
माफियाओं का बोलबाला, प्रशासन मौन
जिले में अवैध बालू खनन इतनी बेखौफी से चल रहा है कि न दिन देखा जा रहा है, न कानून। नदी- नालों से बालू की ट्रॉली भरकर डंप कर दी जाती है और बाद में मनमाने दाम पर बेचा जाता है।कई ग्राम पंचायतों में ग्रामीण बताते हैं कि रात के अंधेरे में दर्जनों ट्रैक्टर बिना किसी अनुमति के बालू भरकर निकलते हैं, लेकिन खनिज विभाग और पुलिस प्रशासन आंखें मूंदे बैठे हैं। सवाल उठता है क्या प्रशासन की चुप्पी किसी मिलीभगत का नतीजा है?
बढ़ते दामों के कारण रुका निर्माण
एक हितग्राही ने बताया कि, हमारा घर आधा बन गया है, अब ईंट- बालू के दाम इतने बढ़ गए कि आगे काम रुक गया। सरकार ने जो राशि दी, वो तो कच्चा मकान तक पूरा नहीं कर पा रही। ऐसी ही स्थिति सैकड़ों हितग्राहियों की है। बालू–ईंट के बढ़ते दामों ने पीएम आवास योजना को सिर्फ कागजों तक सीमित कर दिया है।
सरकार की योजनाओं पर माफियाओं का कब्ज़ा
यह केवल बालू–ईंट की लूट नहीं है, बल्कि ये सीधे-सीधे गरीबों के हक पर डाका है। सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है ताकि गरीब को छत मिले, लेकिन माफिया और भ्रष्ट सिस्टम उस पैसे को निचोड़कर अपनी जेबें भर रहे हैं। ना रॉयल्टी का हिसाब, ना खनन की अनुमति, ना किसी का नियंत्रण ये पूरा खेल प्रशासन की नाक के नीचे चल रहा है।