मैनपुर कला की अनूठी परंपरा: देव सवार सिरहा को सैकड़ों गौवंश ने रौंदा, शरीर में खरोंच तक नहीं आई
गरियाबंद जिले के मैनपुर कला ग्राम में गोवर्धन पूजा के दिन एक अद्भुत और सैकड़ों साल पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है।
मैनपुर। गरियाबंद जिले के मैनपुर कला ग्राम में गोवर्धन पूजा के दिन एक अद्भुत और सैकड़ों साल पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है। इस अनूठी परंपरा में, गाय के गोबर से बने गोवर्धन पर्वत के सामने बिठाए गए देव सवार सिरहा याने झाँकर को गांवभर के गौवंश रौंदते हुए निकलते हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इस दौरान सिरहा को एक खरोंच तक नहीं आती है, जिसे ग्रामीण दैवीय शक्ति का चमत्कार मानते हैं।
गोवर्धन पूजा के दिन बुधवार को गांव में गोबर से भव्य गोवर्धन पर्वत तैयार किया गया। इसके बाद, गांव के दो सिरहा कुंदरू यादव और जीवन यादव जिनके ऊपर सिद्धगुरु अथवा काछनदेवी सवार होते हैं, उन्हें इस पर्वत के सामने बिठाया गया। यह परंपरा उनके दादा-परदादा के समय से चली आ रही है। इस बार भी गौवंश का दल सिरहा के ऊपर से रौंदते हुए निकला। गांव के झाखर डोमार सिंह नागेश और वरिष्ठ भुवनेश्वर नागेश ने बताया कि, देखने में भले यह खतरनाक लगता है, पर दैवीय शक्ति के चलते रौंदे गए देव सवार सिरहा को एक खरोंच तक नहीं आती।
सैकड़ों साल पुरानी है परम्परा
वरिष्ठ ग्रामीणों ने बताया कि, राजस्व रिकॉर्ड में गाँव का उल्लेख 1921 से है, लेकिन यह परंपरा उससे भी पहले सैकड़ों सालों से निभाई जा रही है। पहले गौवंश की संख्या 200 से अधिक हुआ करते थे, जो अब धीरे-धीरे कम हो गई है। इस मौके पर प्रमुख रूप से ग्राम के झांकर रत्न नागेश, बैगा भगवानी ध्रुव, सरपंच गजेंद्र नेगी, उपसरपंच सुधीर राजपूत, घनश्याम नेताम, हेमलाल पटेल, निहाल सिंह नेगी, नीरज ठाकुर, सियाराम ठाकुर, सुंदर कश्यप, रिखी राम कश्यप, सज्जन देवांशी सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण और क्षेत्रभर से हजारों लोग उपस्थित थे। इस दौरान मेला का आयोजन भी किया गया था।
रोग-व्याधि दूर करने वाला गोबर
ग्रामीणों का इस वर्षों पुरानी अनूठी परंपरा पर अटूट विश्वास है। गौवंश द्वारा सिरहा और गोवर्धन पर्वत को रौंदने के बाद, ग्रामीण उस गोबर को अपने घरों में ले जाते हैं। इसे खेतों में छिड़का जाता है, घर के मुख्य द्वार पर लगाया जाता है और परिवार सहित माथे पर तिलक भी लगाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से फसल अच्छी होती है और गाँव रोग-व्याधि से दूर रहता है। ग्रामीणों ने बताया कि पहले यह भी माना जाता था कि इससे चेचक जैसी बीमारियां भी गाँव में नहीं आती थीं।