बस्तर भी बन रहा धान का कटोरा: छत्तीसगढ़ बनने के बाद डेढ़ लाख से लगभग ढाई लाख हेक्टेयर पहुंचा धान का रकबा
बस्तर में कुल फसल क्षेत्र पिछले पचीस वर्षों में अब बढ़कर 2 लाख 310 हेक्टेयर हो चुका है। इस ऐतिहासिक बदलाव से यहां के किसानों की आय में वृद्धि हो रही है।
बस्तर में कुल फसल क्षेत्र 2025 तक बढ़कर 2 लाख 310 हेक्टेयर पहुंचा
अनिल सामंत- जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में पिछले पचीस वर्षों के भीतर खेती- किसानी ने जिस तरह की प्रगति की है, वह किसी हरित क्रांति से कम नहीं है। वर्ष 2000 में जहां जिले में कुल फसल क्षेत्र केवल 1लाख 58 हजार 919 हेक्टेयर था, वहीं अब 2025 तक यह बढ़कर 2 लाख 310 हेक्टेयर हो चुका है। यह लगभग 26 प्रतिशत की शानदार वृद्धि है,जो बस्तर के दुर्गम और पहाड़ी इलाकों तक पहुंची है। किसानों की लगन, प्रशासनिक सहयोग और तकनीकी सुधारों ने न केवल फसल क्षेत्र में, बल्कि किसानों की आय में भी अभूतपूर्व इजाफा किया है।
बीज वितरण के क्षेत्र में तो बस्तर ने रिकॉर्ड कायम किया है। वर्ष 2000 में जहां केवल 3,109 क्विंटल बीज किसानों को उपलब्ध कराए गए थे,वहीं अब यह आंकड़ा 32 हजार 253 क्विंटल तक पहुंच गया है। यानी करीब दस गुना वृद्धि। बेहतर बीजों की उपलब्धता ने न केवल उपज बढ़ाई बल्कि उत्पादन की गुणवत्ता में भी जबरदस्त सुधार लाया है। सिंचाई के क्षेत्र में भी बस्तर ने उल्लेखनीय छलांग लगाई है।
किसानों की आमदनी भी बढ़ी
वर्ष 2000 में जहां केवल 3,669 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित था,वहीं अब यह बढ़कर 24,280 हेक्टेयर तक पहुंच गया है। यह सात गुना से अधिक की वृद्धि है। नहरों, तालाबों और ड्रिप इरिगेशन जैसी आधुनिक योजनाओं ने बस्तर के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में हरियाली फैला दी है। जल संरक्षण और सिंचाई विस्तार के इन प्रयासों ने किसानों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझने की ताकत दी है। धान उत्पादन में भी बस्तर अब धान का नया कटोरा बनकर उभर रहा है। आधुनिक तकनीकों,उन्नत बीजों और सरकारी समर्थन मूल्य नीति ने किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ाया है।
आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं किसान
वर्ष 2000 में जहां मोटे धान का समर्थन मूल्य 510 रुपये प्रति क्विंटल था, वह अब 3,100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुका है। इसी प्रकार, ग्रेड-ए धान का मूल्य भी 540 रुपये से बढ़कर 3,100 रुपये हो गया है। यह छह गुना से अधिक वृद्धि है जिसने किसानों की आर्थिक स्थिति को सशक्त बना दिया है। आज बस्तर के किसान केवल गुजारा नहीं कर रहे, बल्कि अपने परिवार, बच्चों की पढ़ाई और सामाजिक जीवन में भी आत्मनिर्भरता का परिचय दे रहे हैं। चोन्दीमेटवाड़ा के किसान गुड्डू पोयाम गर्व से कहते हैं अब हम सिर्फ जीवनयापन नहीं करते,बल्कि भविष्य की योजनाएं बनाते हैं। हमारे खेत हमारी ताकत बन गए हैं।
कृषि विभाग की दृष्टि हरित बस्तर की ओर अग्रसर
उप संचालक कृषि राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि, बस्तर में आज जो कृषि की तस्वीर बदली है, उसका श्रेय किसानों की मेहनत, आधुनिक तकनीक, सिंचाई के विस्तार और कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों को जाता है। उच्च गुणवत्ता वाले बीजों ने न केवल उत्पादन बढ़ाया बल्कि रोग प्रतिरोधी फसलों की खेती को भी बल दिया है। उन्होंने आगे कहा कि विभाग का अगला लक्ष्य मिलेट्स, दलहन, तिलहन और जैविक खेती को बढ़ावा देकर बस्तर को हरित क्रांति का प्रतीक बनाना है। हम चाहते हैं कि बस्तर की हर मिट्टी की खुशबू हरियाली और समृद्धि से जुड़ी हो, ताकि आने वाले समय में यह क्षेत्र पूरे प्रदेश के लिए कृषि नवाचार का केंद्र बन सके।
तकनीकी प्रगति और सरकारी दूरदृष्टि की जीवंत कहानी
पिछले 25 वर्षों में बस्तर की मिट्टी ने जो परिवर्तन देखा है,वह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं,बल्कि किसानों की मेहनत, तकनीकी प्रगति और सरकारी दूरदृष्टि की जीवंत कहानी है। बस्तर अब केवल परंपरागत खेती का प्रतीक नहीं,बल्कि हरित समृद्धि का केंद्र बन चुका है,जहां खेतों में मेहनत के साथ भविष्य भी अंकुरित हो रहा है।