छठ महापर्व पर उमड़ा आस्था का सागर: महावीर तालाब के घाट पर व्रती महिलाओं ने डूबते अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य
डोंगरगढ़ के प्राचीन महावीर तालाब के घाटों पर आज हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र हुए। जहां छठ व्रती महिलाओं ने डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया।
सूर्य को अर्घ्य देतीं व्रती महिलाएं
राजा शर्मा- डोंगरगढ़। देश में आज लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। सूर्य उपासना के इस पावन पर्व ने डोंगरगढ़ की धरती पर भी भक्ति का अद्भुत माहौल रचा। धर्म नगरी डोंगरगढ़ के प्राचीन महावीर तालाब के घाटों पर आज हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र हुए। जहां छठ व्रती महिलाओं ने डूबते हुए अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया।
शाम के समय घाटों पर दीपों की जगमगाहट और छठ गीतों की मधुर गूंज से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। तालाब का हर कोना मानो आस्था के रंगों में रंग गया। नगर के विभिन्न इलाकों से व्रती महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सूप और दऊरा में ठेकुआ, फल, नारियल और अन्य प्रसाद सजाकर पहुंचीं। इस दौरान श्रद्धालुओं ने 'उठा सूर्य भगवान, अरघे के बेरिया' जैसे पारंपरिक गीतों से वातावरण गुंजा दिया।
घाटों में की गई थी विशेष तैयारियां
वहीं, नगर पालिका परिषद डोंगरगढ़ और पुलिस विभाग की ओर से पर्व को लेकर विशेष तैयारियां की गईं। घाटों की सफाई, लाइटिंग और सुरक्षा व्यवस्था से लेकर यातायात नियंत्रण तक सभी इंतजामों को सुनिश्चित किया गया था। ताकि, श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। कल सुबह उगते हुए सूर्य देव को अर्घ्य अर्पण के साथ ही चार दिनों तक चलने वाले इस छठ महापर्व का विधिवत समापन होगा।
छठ महापर्व की कथा
लोक मान्यता के अनुसार छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल से माना जाता है। कथा है कि जब कर्ण का जन्म हुआ, तब उन्होंने सूर्य देव की उपासना आरंभ की और सूर्य की कृपा से उन्हें दिव्य कवच और कुण्डल प्राप्त हुए। तभी से सूर्य उपासना की यह परंपरा लोक जीवन में रच-बस गई। एक अन्य कथा के अनुसार, जब पांडव वनवास से लौटे, तब कुंती और द्रौपदी ने संतान और समृद्धि की कामना से सूर्य देव की आराधना की थी। कहा जाता है कि छठी मैया, जिन्हें ऊषा देवी या प्रकृति की छठवीं शक्ति कहा गया है, वे स्वयं सूर्य देव की बहन हैं और उनके आशीर्वाद से संतान सुख, आरोग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।