बंग समाज की महिलाओं ने खेला सिंदूर खेल: ढाक के ताल पर नाच- गाने के साथ मां दुर्गा को किया विदा
दंतेवाड़ा जिले के लौह नगरी किरंदुल के बंगाली कालोनी में बंग सोशल एंड कल्चर एसोसिएशन ने सार्वजनिक शारदीय दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया।
बंग समाज की महिलाओं ने खेला सिंदूर खेल
बिप्लव मल्लिक- दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के लौह नगरी किरंदुल के बंगाली कालोनी में बंग सोशल एंड कल्चर एसोसिएशन ने सार्वजनिक शारदीय दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया। बंग समुदाय, दुर्गा पूजा के पाँच दिन, षष्ठी से दशमी तक माँ दुर्गा को मायके आई हुई बेटी के रूप में पूजा जाता है। दशमी के दिन माना जाता है कि माँ दुर्गा अपने पति भगवान शिव के पास कैलाश लौट जाती हैं। इसलिए यह दिन एक ओर खुशी का होता है कि बुराई पर अच्छाई की विजय हुई तो दूसरी ओर वियोग का भी होता है क्योंकि माँ अपने भक्तों को छोड़कर चली जाती हैं।
माँ दुर्गा की प्रतिमा को डोल- नगाड़ों, ढाक और शंख की गूँज के साथ शोभायात्रा में ले जाया जाता है। जयघोष और नृत्य के बीच भक्त माँ को विदाई देते हैं। जल में विसर्जन से पहले हर कोई देवी के चरणों में प्रणाम कर आशीर्वाद मांगता है। विसर्जन के उस क्षण में भक्तों की आँखें नम हो जाती हैं, मानो अपनी ही बेटी को ससुराल विदा कर रहे हों। यह क्षण बंगाली समाज की गहरी भावनाओं और आस्था का जीवंत चित्र है।
सिंदूर खेला की रस्म निभाकर माँ दुर्गा की विदाई
बंगाली समुदाय की महिलाओं द्वारा दुर्गा पूजा के विजयदशमी के दिन सिंदूर खेला की रस्म निभाकर माँ दुर्गा को नम आंखों से विदा दी। यहां परंपरा 400वर्षों से भी पुरानी है। शादीशुदा महिलाएँ माँ को सिंदूर अर्पित करती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने परिवार के लिए सौभाग्य, सुख और समृद्धि की कामना करती हैं। यह रस्म माँ के मायके से ससुराल लौटने के रूप में देखी जाती है और यह पति के लंबी आयु के आशीर्वाद के लिए की जाती है।