'सुआ नाच' की अनूठी परंपरा: तोते की जोड़ी को माना जाता है शिव-पार्वती का रूप, लोकगीतों के माध्यम से कही जाती है मन की बात

बेमेतरा जिले में दीपावली के अवसर पर महिलाएं सुवा गीत गाती हैं। जिसे एक महिला प्रधान लोकगीत और नृत्य कहते हैं। जिसमें तोते की जोड़ी कोशिव-पार्वती का रूप माना जाता है।

Updated On 2025-10-22 16:54:00 IST

महिलाओं और युवतियों ने किया सुवा नाच 

बेमेतरा। छत्तीसगढ़ का सुवा गीत एक महिला प्रधान लोकगीत और नृत्य है, जो दीपावली के दौरान गाया जाता है। इसमें महिलाएं तोते (सुवा) को माध्यम बनाकर अपने मन की बात कहती हैं। यह विश्वास रखते हुए कि, तोता उनके संदेश को उनके प्रिय तक पहुँचाएगा।

इस परंपरा में एक बाँस की टोकरी में धान भरकर उसके ऊपर मिट्टी का सुवा (तोता) रखा जाता है और महिलाएं उसके चारों ओर घूमकर ताली बजाते हुए गाती हैं। जो 'सुवा गीत' या 'सुवा नृत्य' कहलाता है। छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति का विकास प्रशिक्षण के जिला नोडल अधिकारी व डाइट बेमेतरा के व्याख्याता थलज कुमार साहू ने बताया कि, सुवा नृत्य गीत कुमारी कन्याओं तथा विवाहित स्त्रियों द्वारा समूह में गाया और नाचा जाता है।

टोकरी में विराजित सुवा की जोड़ी शंकर और पार्वती के प्रतीक
इस नृत्य गीत के परंपरा के अनुसार बाँस की बनी टोकरी में धान रखकर उस पर मिट्टी का बना, सजाया हुआ सुवा रखा जाता है। लोक मान्यता है कि, टोकरी में विराजित यह सुवा की जोड़ी शंकर और पार्वती के प्रतीक होते हैं। सुवा गीत की मुख्य विशेषताएँ हैं कि, यह धान कटाई के समय और दीवाली पर महिलाओं द्वारा गाया जाता है, जिसमें वे तोते (सुवा) के माध्यम से अपने मन की बात और व्यथा व्यक्त करती हैं। यह वियोगी गीत के रूप में भी जाना जाता है और इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है। सुवा गीत की कुछ प्रमुख विशेषताएँ भी होती है।

चारों ओर वृत्ताकार में नाचती और गाती हैं महिलाएं
इस लोकगीत में महिलाएं तोते (सुवा) को एक माध्यम मानती हैं, जिसके द्वारा वे अपनी व्यथा और संदेश अपने प्रिय तक पहुँचाने का विश्वास रखती हैं। यह गीत अक्सर वियोग या विरह के वर्णन से संबंधित होता है और इसमें श्रृंगार रस प्रमुख होता है। दीवाली के दौरान इस गीत का विशेष महत्व है, जहाँ शिव-पार्वती (गौरा-गौरी) के विवाह का उत्सव मनाया जाता है। महिलाएं मिट्टी या लकड़ी के तोते (सुवा) को बाँस की टोकरी में रखे धान के ऊपर रखकर उसके चारों ओर वृत्ताकार में नाचती और गाती हैं।


पीढ़ियों से चली आ रही है प्रथा
यह गीत एक मौखिक परंपरा का हिस्सा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। गीत की धुन लयबद्ध होती है और अक्सर ताली की थाप पर गाया जाता है। इसमें पारंपरिक वाद्ययंत्रों का भी प्रयोग हो सकता है। गीतों में प्रेम, विरह, पारिवारिक जीवन, प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक मान्यताओं सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन होता है। गांव की नन्हीं-नन्हीं बालिकाएं और महिलाएं एक सप्ताह पहले ही सुवा गीत और नृत्य शुरू कर देती है। इस गीत और नृत्य को सभी वर्ग के और समुदाय के लोग खूब पसंद करते हैं।

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