सीएम साय का विकास मॉडल आया काम: 'नियद नेल्लानार' योजना के जरिए सुदूर गांवों तक पहुंचीं मूलभूत सुविधाएं, ग्रामीणों का सरकार पर भरोसा हुआ मजबूत

छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही विष्णुदेव साय ने यह ठान लिया था कि, बस्तर को नक्सल दंश से उबारना है। इसके लिए उन्होंने लगातार बस्तर के अंदरूनी इलाकों तक दौरे किए। अब उनकी कोशिशें रंग ला रही हैं।

Updated On 2025-11-28 13:38:00 IST

डबल इंजन सरकार में टूट रही नक्सलवाद की कमर

रायपुर। बस्तर अब नक्सल दंश से लगभग उबर चुका है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की कोशिशें रंग लाने लगी हैं। सीएम बनते ही उन्होंने बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों के दौरे शुरू किए। इस दौरान उन्होंने ना सिर्फ सुरक्षाबलों की हौसला अफजाई की, बल्कि वहां के लोगों की जरूरतों को भी समझा।

बसतरवासियों की जरूरत के मुताबिक विकास के काम और सरकारी योजनाओं का लाभ अंदरूनी इलाके तक के ग्रामीणों तक पहुंचाने की उनकी कोशिशें सफल होती चली गईं और ग्रामीणों का भरोसा सरकार पर मजबूत होता चला गया। सीएम साय की बस्तर के सुदूर गांवों तक विकास पहुंचाने के लिए शुरू की गई 'नियद नेल्लानार' योजना ने कमाल किया। इसी योजना के माध्यम से बस्तर के सुदूर गांवों तक सड़क, बिजली, पानी स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं पहुंचीं।


बस्तर के 100 से स्थानों तक पहुंचे सीएम साय
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा, विकास और पुनर्वास की प्रगति का आकलन करने के लिए लगातार बस्तर संभाग का दौरा करना शुरू किया। सीएम बनने से लेकर अब तक उन्होंने लगभग 100 स्थानों पर जवानों और ग्रामीणों और अफसरों के साथ संवाद किया।

नवंबर 2024 में उन्होंने सेडवा CRPF कैंप में जवानों के साथ रात बिताकर उनके साहस की सराहना की। 15 मई 2025 में दंतेवाड़ा के मूलर गांव में ‘सुशासन तिहार’ के दौरान ग्रामीणों से संवाद किया और स्वास्थ्य केंद्र का आश्वासन दिया। 16 मई 2025 को बीजापुर के गलगम में 'ऑपरेशन कर्रेगुट्टा हिल्स' की सफलता के बाद सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाया।


नक्सलमुक्त गांव घोषित करने की बनी प्रक्रिया
नीति के अंदर कई परतें हैं, जिन्हें मिलाकर पंचायतों को नक्सल-मुक्त घोषित किया जाता है- पंचायत-स्तर पर नक्सल-मुक्त प्रमाणन की नई व्यवस्था इस प्रक्रिया के तहत पहली बार पंचायतों को औपचारिक अधिकार दिए गए हैं कि, वे अपने गांव में सक्रिय माओवादी नेटवर्क की स्थिति का स्व-मूल्यांकन करें।

ग्रामसभा की बैठक में ग्रामीण सामूहिक रूप से 'माओवादी-मुक्त' प्रस्ताव पारित करते हैं, जिसके बाद सुरक्षा बल और जिला प्रशासन उस दावे की जांच कर उसकी पुष्टि करते हैं। यह पूरी व्यवस्था न केवल लोकतांत्रिक भागीदारी को मजबूत करती है, बल्कि स्थानीय नेतृत्व को भी नक्सल-उन्मूलन की प्रक्रिया में सीधे तौर पर शामिल करती है।


सीएम की पहल पर सुरक्षा-प्रशासन-पंचायत का बना संयुक्त मॉडल
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की पहल पर इस नई व्यवस्था में पहली बार सुरक्षा बल, प्रशासन और पंचायत—ये तीनों स्तर एक साथ समन्वयित रूप से काम कर रहे हैं। सुरक्षा बल जंगल क्षेत्रों में अभियान चलाकर परिस्थितियों को सुरक्षित बनाते हैं, प्रशासन पुनर्वास और विकास योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू करता है, जबकि पंचायतें स्थानीय नेतृत्व और भरोसा मजबूत करने की भूमिका निभाती हैं। इसी समन्वित मॉडल ने आत्मसमर्पण की प्रक्रिया को अधिक विश्वसनीय, पारदर्शी और स्थायी बनाया है।


सीएम साय के नेतृत्व में योजनाओं का ठोस और तेज़ क्रियान्वयन
राज्य सरकार ने नक्सल उन्मूलन को प्रभावी बनाने के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए। पहली बार पंचायत आधारित 'नक्सल-मुक्त' मानक तैयार किए गए, समर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास बजट को बढ़ाया गया और विकास योजनाओं को मिशन मोड में लागू किया गया। डीएम, एसपी और पंचायत प्रतिनिधियों को एक ही प्लेटफॉर्म पर समन्वित रूप से काम करने की संरचना मिली, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज़ हुई और विकास तथा पुनर्वास के परिणाम गांवों में जल्दी दिखाई देने लगे।


बस्तर का पहला नक्सल-मुक्त गांव- बडेसट्टी पंचायत
बडेसट्टी पंचायत ने इतिहास रचते हुए बस्तर का पहला पंचायत-स्तर पर घोषित नक्सल-मुक्त गांव बनने का गौरव हासिल किया। यहां 11 सक्रिय माओवादी कार्यकर्ताओं ने आत्मसमर्पण किया, जबकि वर्षों तक गांव पूरी तरह माओवादी दबदबे में रहा था। पहली बार ग्रामसभा ने सार्वजनिक रूप से आत्मविश्वास के साथ घोषणा की- 'हम अब नक्सल-मुक्त हैं।

गांव को ₹1 करोड़ की विकास निधि प्राप्त हुई, जिसके तहत पंचायत भवन का नवीनीकरण, सड़क और पुलिया निर्माण कार्यों की मंजूरी, नेटवर्क टावर की स्थापना प्रक्रिया, तथा आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य केंद्र के प्रस्ताव तेजी से आगे बढ़े। ग्रामवासियों ने उत्साह व्यक्त करते हुए कहा कि 'पहली बार हम बिना डर बैठकों में शामिल हो रहे हैं।' यह बदलाव न केवल सुरक्षा वातावरण में सुधार दर्शाता है, बल्कि ग्रामीणों के भीतर लौटते आत्मविश्वास और लोकतांत्रिक भागीदारी का भी प्रतीक है।


सीएम साय का विकास मॉडल बना सबसे बड़ा आधार
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में नक्सल-मुक्ति प्रक्रिया ने विकास को नई गति दी है। दशकों बाद गांवों में तेज़ी से बिजली पहुंच रही है और मोबाइल नेटवर्क टावर खड़े होने से संचार बाधामुक्त हुआ है। बेहतर सड़कों के कारण मरीजों को अस्पताल ले जाना अब संभव और आसान हो गया है। स्कूलों, आंगनबाड़ी केंद्रों और सरकारी सेवाओं की संख्या बढ़ने से ग्रामीणों तक योजनाओं की सीधी पहुंच बनी है, जिससे जीवन स्तर में व्यापक सुधार दिख रहा है।


सिर्फ हथियार नहीं डलवाना, सीएम साय ने दिलाया सम्मानजनक पुनर्वास भी
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की ओर से यह स्पष्ट किया गया था कि, इस नीति का उद्देश्य केवल हथियार डलवाना नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सुरक्षित और सम्मानजनक रूप से मुख्यधारा से जोड़ना है। इसके लिए उन्हें ₹50,000 की तत्काल आर्थिक सहायता समेत अन्य राहत प्रदान की जाती है, सुरक्षित आवास और परिवार सहित संरक्षण दिया जाता है।

पुनर्वास पैकेज में ड्राइविंग, प्लंबिंग, इलेक्ट्रीशियन, कृषि जैसे कौशल प्रशिक्षण शामिल हैं, जिनसे वे आत्मनिर्भर बन सकें। साथ ही राज्य के विभिन्न विभागों में रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जाते हैं, जिससे जंगल में सक्रिय युवाओं को हिंसा छोड़कर विकास की राह चुनने का वास्तविक विकल्प मिलता है।


केंद्रीय गृहमंत्री की भूमिका : केंद्रीय नेतृत्व का स्पष्ट लक्ष्य
केंद्रीय और राज्य स्तर पर समन्वित नेतृत्व ने नक्सल उन्मूलन को नई गति दी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करते हुए कई बार कहा कि, मार्च 2026 तक देश नक्सलवाद से मुक्त होगा। इसी दिशा में केंद्र ने वामपंथी उग्रवाद की निरंतर निगरानी, बेहतर तकनीकी सहायता, फंडिंग और ऑपरेशनल सपोर्ट को मजबूत किया। CRPF, COBRA और BSF जैसी केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती को रणनीतिक रूप से बढ़ाया गया, जिससे राज्यों में चल रहे अभियानों को निर्णायक बढ़त मिली।

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