बिहार चुनाव 2025: वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछे 5 सवाल; जानें ECI का जवाब
बिहार चुनाव 2025 से पहले चुनाव आयोग के वोटर लिस्ट विशेष पुनरीक्षण के फैसले पर विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाए हैं। तेजस्वी, राहुल समेत विपक्षी नेता सड़कों पर, ADR समेत 9 दलों की याचिकाओं पर सुनवाई शुरू।
बिहार चुनाव 2025: वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई।
Bihar Voter List Revision Dispute: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। गुरुवार, 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई हुई। विपक्ष ने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया। कहा-चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है। जबकि ECI ने विपक्ष के आरोपों को खारिज किया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से 5 सवालों के जवाब मांगे हैं।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने 5 जुलाई को सबसे पहले इस मुद्दे पर याचिका दायर की थी। इसके बाद RJD और कांग्रेस समेत 9 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाएं स्वीकार करते हुए प्राथमिक सुनवाई शुरू की है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा यह कैसे सिद्ध करेंगे कि वोटर लिस्ट गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया न्याय संगत नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील क्या बोले?
- याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, कानून में वोटर लिस्ट रिविजन का प्रवाधान है। यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में या फिर पूरी लिस्ट को नए सिरे से तैयार की जा सकती है, लेकिन चुनाव आयोग ने नया शब्द 'स्पेशल इंटेसिंव रिवीजन' गढ़ लिया है।
- चुनाव आयोग द्वारा 2003 में हुए वोटर लिस्ट रिवीजन का हवाला दिया जा रहा है, लेकिन तब वोटर्स की संख्या इतनी नहीं थी। बिहार में अब 7 करोड़ से ज्यादा मतदाता हैं। एक महीन में न प्रक्रिया संपन्न कराना संभव और न दस्तावेज जुटाना संभव है।
- गोपाल एस. ने बताया, 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाना कृत्रिम और भेदभावपूर्ण रेखा है। इसकी अनुमति न अधिनियम देता है और न ही नियम। कला और खेल जगत को छूट देना मनमाना है। फॉर्म न भरने पर मतदान से वंचित करना असंवैधानिक है।
सिब्बल बोले-वे नागरिकता तय करने वाले कौन होते हैं?
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, चुनाव आयोग के पास यह अधिकार नहीं है कि वह तय करे कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं। उन्होंने इस प्रक्रिया को चौंकाने वाला और संविधान विरोधी बताया।
सुप्रीम कोर्ट में उठे 5 बड़े सवाल
- संविधान और कानून का उल्लंघन: याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950, रूल 21A, और अनुच्छेद 14, 19, 21, 325, 326 का उल्लंघन करती है।
- नागरिकता पर मनमानी दस्तावेजीकरण: एक्टिविस्ट अरशद अजमल और रूपेश कुमार का आरोप है कि प्रक्रिया में नागरिकता, जन्म और निवास के असंगत प्रमाण मांगे जा रहे हैं।
- लोकतांत्रिक सिद्धांतों का हनन: याचिका में कहा गया कि वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया लोकतंत्र को कमजोर करती है और निष्पक्ष चुनाव की भावना को चोट पहुंचाती है।
- गरीबों और प्रवासियों पर असमान बोझ: चुनाव आयोग की शर्तें गरीब, प्रवासी, महिला और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए अनुपालन कठिन बनाती हैं।
- गलत समय पर लागू की गई प्रक्रिया: RJD सांसद मनोज झा का कहना है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में और चुनाव से ठीक पहले लागू की गई है, जिससे करोड़ों मतदाता अधिकार से वंचित हो सकते हैं।
चुनाव आयोग का क्या है जवाब?
चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि 1 जनवरी 2003 की वोटर लिस्ट में जिनके नाम थे, उन्हें कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है। साथ ही जिनके माता-पिता का नाम वोटर लिस्ट में है, उन्हें सिर्फ जन्म प्रमाण देना होगा। आयोग ने दावा किया कि कोई भी पात्र मतदाता बाहर नहीं किया जाएगा। पारदर्शिता के लिए यह प्रक्रिया जरूरी है।
अधिवक्ता केके वेणुगोपाल, मनिंदर सिंह और राकेश द्विवेदी ने बताया, यह प्रक्रिया RPA 1950 और संविधान के अनुच्छेद 326 के दायरे में है। 2003 की सूची के मतदाताओं के लिए दस्तावेज जरूरी नहीं हैं। इसका मकसद घुसपैठियों और फर्जी नामों को हटाना है।
राजनीतिक प्रभाव और आगे की राह
वोटर लिस्ट विशेष पुनरीक्षण (SIR) का ये मामला अब राजनीतिक से ज्यादा संवैधानिक बहस में बदल गया है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई अब इस पर दिशा और समय तय करेगी कि क्या यह प्रक्रिया सही थी या इसके कारण चुनाव प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
कांग्रेस-RJD ने कराया बिहार बंद
वोटर लिस्ट विशेष पुनरीक्षण (SIR) के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मोर्चा खोल दिया है। 9 जुलाई को पटना समेत बिहार के कई हिस्सों में आरजेडी, कांग्रेस, भाकपा माले समेत तमाम दलों के नेताओं ने चक्का जाम किया।
तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और दीपांकर भट्टाचार्य के नेतृत्व में पटना में प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों ने पुनरीक्षण प्रक्रिया को जनविरोधी बताया है।