CJI डीवाई चंद्रचूड़ का राम मंदिर मामले के फैसले पर खुलासा, बोले-5 जजों ने एकमत होकर दिया अंतिम आदेश

CJI on Ram Mandir Verdict: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को राम मंदिर के आखिरी फैसले लेकर अहम खुलासा किया। सीजेआई ने कहा कि बेंच के सभी जजों ने एकमत होकर अंतिम फैसला सुनाया था। इसलिए आदेश पर इसे लिखने वाले जज का नाम नहीं है।

Updated On 2024-01-01 23:40:00 IST
CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति से जुड़ी कॉलेजियम सिस्टम को पहले से ज्यादा पारदर्शी बनाया गया है।

CJI on Ram Mandir Verdict: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि राम मंदिर मामले की सुनवाई करने वाली बेंच के सभी पांच सदस्यों ने एकमत होकर अंतिम फैसला लिया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है। इसमें इतिहास के आधार पर अलग अलग नजरिए थे। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए आखिरी आदेश सुनाया गया। इसलिए अंतिम आदेश पर इसे लिखने वाले न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं है। 

जस्टिस गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने सुनाया था आदेश
राम मंदिर मामले में अंतिम फैसला 9 नवम्बर 2019 को सुनाया गया था। यह देश का एक ऐसा मामला रहा जो 100 साल से भी ज्यादा समय तक अदालत में लंबित रहा। तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अगुवाई वाली 5 सदस्यों वाली बेंच ने इस पर अंतिम फैसला सुनाया था। इसमें मंदिर के निर्माण की इजाजत दी गई थी। इसके साथ ही मस्जिद के निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन देने का भी आदेश सुनाया गया था। 

CJI ने किया कॉलेजियम सिस्टम का बचाव
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम प्रणाली का बचाव किया। चीफ जस्टिस ने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए साल 1993 से ही कॉलेजियम सिस्टम मौजूद है। यह हमारी न्यायशास्त्र का हिस्सा है। इसी प्रणाली को हम जजों को नियुक्त करने के लिए लागू करते हैं। हालांकि, कॉलेजियम सिस्टम के मौजूदा सदस्य के तौर पर इसे बरकरार रखना और अधिक पारदर्शी बनाना हमारा कर्तव्य है। हमने इस दिशा में अहम कदम उठाए भी हैं। मैं कॉलेजियम का कई साल से हिस्सा रहा हूं। मैं आपको बता सकता हूं कि जजों की नियुक्ति से पहले कंसल्टेशन की प्रक्रिया का हर संभव पालन होता है। 

कॉलेजियम डिस्कशन की नहीं हो सकती वीडियो रिकॉर्डिंग
चीफ जस्टिस ने कहा कि कॉलेजियम के भीतर होने वाले विचार-विमर्श को कई वजहों से सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। कई ऐसे न्यायाधीशों की गोपनीयता पर भी चर्चा होती है जिनका नाम सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए विचाराधीन होता है। यह चर्चा बिल्कुल स्पष्ट और स्वतंत्र माहौल में होनी चाहिए। ऐसे में कॉलेजियम की चर्चा की वीडियो रिकॉर्डिंग या डॉक्युमेंटेशन नहीं की जा सकती। फिर यह प्रक्रिया वैसी नहीं होगी जिसे संविधान में अपनाया गया है।

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