272 पूर्व अधिकारियों का खुला पत्र: राहुल गांधी पर करारा हमला, कहा- चुनाव आयोग पर आरोप लोकतंत्र के लिए खतरनाक
19 नवंबर 2025 को 272 पूर्व अधिकारियों ने राहुल गांधी की चुनाव आयोग पर की गई टिप्पणियों की कड़ी आलोचना करते हुए एक खुला पत्र जारी किया। पत्र में कहा गया है कि बिना सबूत संवैधानिक संस्थाओं पर हमला लोकतंत्र को कमजोर करता है। जानें पूरा मामला।
Election commission vs Rahul gandhi
नई दिल्ली: देश के 272 प्रतिष्ठित पूर्व अधिकारियों और नागरिकों ने बुधवार,19 नवंबर 2025 को एक खुला पत्र जारी करके कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनकी पार्टी पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इस पत्र में कहा गया है कि राहुल गांधी लगातार चुनाव आयोग और संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर हमला कर रहे हैं, जबकि उनके दावों को साबित करने वाला कोई ठोस सबूत अब तक सामने नहीं आया है।
इस पत्र पर 16 पूर्व न्यायाधीश, 123 रिटायर्ड नौकरशाह, 14 पूर्व राजदूत और 133 सेवानिवृत्त सैन्य के हस्ताक्षर हैं, जो देश की प्रशासनिक और संवैधानिक मशीनरी के सबसे अनुभवी और सम्मानित लोग माने जाते हैं।
पूर्व अधिकारियों ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी बार-बार “वोट चोरी”, “चुनावी हेराफेरी”, “लोकतंत्र की हत्या” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके जनता के बीच चुनाव आयोग पर अविश्वास फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
उनका कहना है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और कर्नाटक में मतदाता सूची में बड़े स्तर पर छेड़छाड़ के राहुल गांधी के आरोप पूरी तरह राजनीतिक बयानबाजी हैं और इनमें किसी तरह के तथ्य नहीं दिए गए हैं।
राहुल गांधी ने 'डुप्लीकेट वोटर', फर्जी फोटो', 'मकान नंबर 0 वाले मतदाता' और 'ब्राजील मॉडल' जैसी तकनीकों के इस्तेमाल तक की बात कही थी। लेकिन चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों को 'निराधार और भ्रामक' बताते हुए चुनौती दी थी कि अगर उनके पास एक भी फर्जी या गायब मतदाता का नाम है, तो हलफनामे के साथ पेश करें। अब तक कोई प्रमाण जमा नहीं कराया गया है।
मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, जहां कर्नाटक की कथित मतदाता सूची हेराफेरी पर SIT जांच की मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को चुनाव आयोग के पास जाने को कहा। यानी न्यायपालिका ने भी इन दावों को ठोस आधार न मिलने पर आगे नहीं बढ़ाया।
हालांकि कुछ स्थानीय स्तर पर मामूली अनियमितताएं मिलती रही हैं और विपक्ष के कुछ नेता राहुल गांधी के आरोपों का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन बड़े पैमाने की हेराफेरी को किसी स्वतंत्र संस्था, कोर्ट या आधिकारिक जांच ने सही नहीं माना।
भाजपा ने इसे विपक्ष की हार का बहाना और चुनावी संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश बताया है।
इस खुले पत्र के जरिए देश के वरिष्ठ पूर्व अधिकारियों ने स्पष्ट संदेश दिया है कि बिना सबूत संवैधानिक संस्थाओं पर हमले लोकतंत्र को कमजोर करते हैं और उन्हें रोकना बेहद जरूरी है।
पत्र की खास बातें
- पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि पहले सेना, फिर न्यायपालिका और संसद को कटघरे में खड़ा किया गया। अब चुनाव आयोग पर हमला किया जा रहा है। यह “खतरनाक चलन” चुनावी हार छिपाने की कोशिश जैसा है।
- राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” और “गद्दारी” जैसे गंभीर आरोप लगाए और अधिकारियों को धमकाया, लेकिन कोई शिकायत, सबूत या हलफनामा दर्ज नहीं कराया। पूर्व अधिकारियों के अनुसार यह सिर्फ “राजनीतिक नाराजगी” है।
- जब विपक्षी पार्टियां जीतती हैं तो चुनाव आयोग पर कोई आरोप नहीं लगता, लेकिन हार मिलते ही संस्थाओं पर उंगली उठाई जाती है। इसे पत्र में “राजनीतिक अवसरवाद” बताया गया है।
- टीएन शेषन और एन. गोपालस्वामी जैसे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों के नेतृत्व में चुनाव आयोग एक मजबूत और निष्पक्ष संस्था बना है। बेबुनियाद हमले लोकतंत्र को कमजोर करने वाले बताए गए हैं।
- सभी भारतीयों से अपील की गई है कि वे चुनाव आयोग और संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास बनाए रखें। फर्जी वोटर, गैर-नागरिक और अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची से हटाना देश की सुरक्षा के लिए आवश्यक बताया गया है।
- पत्र पर 16 पूर्व जजों, 123 सेवानिवृत्त नौकरशाहों (जिसमें 14 पूर्व राजदूत शामिल), पूर्व रॉ चीफ संजीव त्रिपाठी, NIA के पूर्व प्रमुख योगेश चंद्र मोदी और 133 रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों ने हस्ताक्षर किए हैं।