Insurance tips: बीमा क्लेम अटका या रिजेक्ट हो गया? जानिए पॉलिसीधारकों के अधिकार और कैसे पाएं अपना हक
insurance tips: बीमा कंपनी अगर क्लेम में देरी करती है या मना कर देती है, तो पॉलिसीधारक के पास कई कानूनी रास्ते हैं। इंश्योरेंस रेगुलेटरी अथॉरिटी और इंश्योरेंस ओम्बड्समैन जैसे मंच बीमाधारकों को मुफ्त सहायता देते हैं।
insurance claim rights
Insurance tips: बीमा खरीदना सुरक्षा की भावना देता है लेकिन जब क्लेम का समय आता है, तो कई बार बीमा कंपनियां देरी करती हैं या क्लेम पास करने से भी इनकार कर देती हैं। कभी नॉन-डिस्क्लोज़र तो कभी पॉलिसी एक्सक्लूजन जैसे तकनीकी कारणों से क्लेम रोक दिया जाता। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि भारतीय कानून आपको कई अधिकार देता है, जिन्हें जानकर आप बीमा कंपनी से अपना हक हासिल कर सकते हैं।
अक्सर कंपनियां अतिरिक्त दस्तावेज़ या स्पष्टीकरण मांगकर क्लेम प्रोसेस को जानबूझकर लंबा खींचती हैं। हेल्थ पॉलिसी के मामले में रिजेक्शन के आम कारण होते हैं, पुरानी बीमारियों की जानकारी न देना, पॉलिसी लैप्स होना, प्रीमियम न भरना या एक्सक्लूजन क्लॉज। कभी-कभी तो छोटी-सी गलती, जैसे डिस्चार्ज समरी और बिल में अंतर, भी क्लेम रोक देती है।
कंपनी के शिकायत सेल से संपर्क कर सकते
हर बीमा कंपनी को भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण के नियमों के तहत ग्रेविएंस (शिकायत) सेल रखना जरूरी है। अगर आपका क्लेम 30 दिनों से ज्यादा लटका है या बिना वजह ठुकराया गया है, तो आप लिखित शिकायत दर्ज करें। शिकायत का रेफरेंस नंबर ज़रूर नोट करें ताकि आगे आप मामला ट्रैक कर सकें।
इरडा और इंश्योरेंस ओम्बड्समैन को शिकायत करें
अगर कंपनी 15 दिनों में जवाब नहीं देती या जवाब संतोषजनक नहीं है, तो आप इंश्योरेंस रेगुलेटर के आईजीएमएस पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं। अगर बात वहां भी नहीं सुलझती, तो इंश्योरेंस ओम्बड्समैन के पास जाएं। यह एक मुफ्त, अर्ध-न्यायिक मंच है जो 30 लाख तक के मामलों की सुनवाई करता है और इसके निर्णय पर कंपनी को अमल करना पड़ता है।
पॉलिसी धारक को ब्याज तक मिलता है
बीमा कंपनियां क्लेम को अनंतकाल तक नहीं लटका सकतीं। इंश्योरेंस रेगुलेटरी अथॉरिटी के मुताबिक, हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम 30 दिनों में निपटाया जाना चाहिए। मोटर इंश्योरेंस में सर्वेयर रिपोर्ट 30 दिनों में और सेटलमेंट अगले 30 दिनों में होना चाहिए। अगर कंपनी देरी करती है, तो आपको ब्याज सहित रकम पाने का अधिकार है।
कागजात रखें दुरुस्त
बीमा कंपनियां अक्सर कागजों की कमी का बहाना बनाती हैं। इसलिए सभी रिपोर्ट, बिल, अस्पताल डिस्चार्ज समरी, पुलिस रिपोर्ट (जहां जरूरी हो) और ईमेल रिकॉर्ड संभालकर रखें। लिखित या पोर्टल के जरिए दस्तावेज़ जमा करें ताकि सबूत आपके पास रहें।
अगर ओम्बड्समैन से भी मदद न मिले या मामला बड़ा हो, तो आप कंज्यूमर या सिविल कोर्ट का रुख कर सकते। कई उपभोक्ताओं ने अदालतों में बीमा कंपनियों पर बड़ी जीत दर्ज की है। बीमा कंपनियां अक्सर इस भरोसे बैठी रहती हैं कि ग्राहक हार मान लेगा। लेकिन अगर आप अपने अधिकार जानते हैं, जैसे लिखित कारण मांगना, समयसीमा तय करना या ब्याज मांगना तो जीत आपकी ही होती है।
(प्रियंका कुमारी)