सर्वोच्च अदालत का बड़ा फैसला: बीमा कंपनियों की मनमानी नहीं चलेगी, परमिट वैध नहीं होने पर भी देना होगा मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अब बीमा कंपनी पीड़ित को मुआवजा देने से इनकार नहीं कर सकती, भले ही गाड़ी ने तय रूट का उल्लंघन किया हो। अदालत ने कहा कि तकनीकी वजह से पीड़ित को मुआवजा न देना न्याय की मूल भावना के खिलाफ है।

Updated On 2025-10-30 15:47:00 IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंश्योरेंस कंपनियां केवल रूट बदलने या परमिट उल्लंघन का हवाला देकर पीड़ितों को मुआवजा देने से इनकार नहीं कर सकतीं। 

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर कोई वाहन अपने तय रूट से हटकर दुर्घटना का शिकार हो जाता है, तो बीमा कंपनी मुआवजा देने से मना नहीं कर सकती। सर्वोच्च अदालत ने साफ किया कि ऐसी तकनीकी बातों पर मुआवजा रोकना न्याय की भावना के खिलाफ है।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने यह टिप्पणी करते हुए वाहन मालिक के नागेंद्र और न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की अपील को खारिज कर दिया। यह मामला साल 2014 का है, जब एक मोटरसाइकिल सवार को बस ने लापरवाह ड्राइविंग के चलते टक्कर मारी थी। हादसे में मोटरसाइकिल सवार की मौके पर मौत हो गई थी। मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण ने मृतक के परिजनों को ब्याज सहित करीब 19 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

बीमा कंपनी ने दलील दी थी कि बस ने परमिट का उल्लंघन किया था, इसलिए वह मुआवजा देने की जिम्मेदारी से मुक्त है जबकि हाई कोर्ट ने कंपनी को पहले मुआवजा देने और बाद में मालिक से रकम वसूलने का आदेश दिया था। इस पर बीमा कंपनी और मालिक, दोनों ने ही सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

बीमा कंपनियों की मनमानी रुकेगी

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों की अपील खारिज करते हुए कहा कि बीमा पॉलिसी का मकसद गाड़ी मालिक को ऐसी अप्रत्याशित घटनाओं से सीधे नुकसान से बचाना है। अगर पीड़ित या उसके परिवार को सिर्फ इसलिए मुआवजा न मिले कि वाहन ने रूट परमिट का उल्लंघन किया था, तो यह अन्याय होगा।

बेंच ने यह भी कहा कि बीमा कंपनी और मालिक के बीच का समझौता भी अहम है क्योंकि बीमा केवल तय शर्तों के दायरे में ही लागू होता है। ऐसे में पे एंड रिकवर (पहले भुगतान, बाद में वसूली) का निर्देश दोनों पक्षों के हितों का संतुलन बनाए रखता है।

अदालत ने कहा कि पीड़ित को राहत मिलना प्राथमिकता है, और बीमा कंपनी को पहले मुआवजा देना होगा। बाद में वह रकम वाहन मालिक से वसूल सकती है। बेंच ने इस फैसले में कई पुराने मामलों का हवाला दिया, जिनमें नेशनल इंश्योरेंस कंपनी बनाम स्वर्ण सिंह (2004), न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी vs वी कमला (2001), परमिंदर सिंह vs न्यू इंडिया इंश्योरेंस लिमिटेड (2019) शामिल हैं। कोर्ट ने यही सिद्धांत दोहराया था कि भले ही वाहन में गलत सामान हो, बीमा कंपनी को पहले भुगतान करना होगा और बाद में वसूली का अधिकार रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साफ हो गया है कि सड़क हादसे के पीड़ितों को मुआवजे के लिए लंबी कानूनी लड़ाई नहीं झेलनी पड़ेगी।

(प्रियंका कुमारी)

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