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हरियाणा में कांग्रेस द्वारा लंबी जद्दोजहद के बाद सिरसा लोकसभा सीट पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सिरसा से दो बार सांसद रह चुकी कुमारी सैलजा को प्रत्याशी घोषित करने से कांग्रेस वर्करों में नया उत्साह नजर आया। कुमारी सैलजा की सिरसा सीट पर 26 साल बाद वापसी हो रही है।

सुरेन्द्र असीजा, फतेहाबाद: कांग्रेस द्वारा लंबी जद्दोजहद के बाद सिरसा लोकसभा सीट पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सिरसा से दो बार सांसद रह चुकी कुमारी सैलजा को प्रत्याशी घोषित करने से कांग्रेस वर्करों में नया उत्साह नजर आया। कुमारी सैलजा की सिरसा सीट पर 26 साल बाद वापसी हो रही है। 1998 में डॉ. सुशील इंदौरा से मिली हार के बाद वह अम्बाला शिफ्ट हो गई थी। सैलजा के यहां से उम्मीदवार घोषित होते ही उनके हिसार स्थित निवास पर न केवल पुराने वर्करों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया, वहीं अनेक लोग वहां पहुंचकर कांग्रेस ज्वाइन कर रहे हैं। दो दिनों से यह सिलसिला चल रहा है।

डॉ. अशोक तंवर के साथ सीधी टक्कर में सैलजा

भाजपा ने दल-बदल कर आए अशोक तंवर को प्रत्याशी बनाया तो तब से क्षेत्र के लोग कांग्रेस द्वारा सैलजा को उम्मीदवार बनाए जाने के क्यास लगा रहे थे। यहां तक कि टिकट घोषणा से पूर्व ही सैलजा की जीत के दावे कर रहे हैं। दरअसल, सैलजा के पिता चौधरी दलबीर सिंह 4 बार व सैलजा स्वयं यहां से 2 बार चुनाव जीतकर केन्द्रीय मंत्री रह चुकी हैं। सैलजा के पिता दलबीर सिंह का यहां अच्छा-खासा रसूख है। सैलजा को टिकट मिलने की घोषणा होते ही क्षेत्र के लोग कांग्रेस में शामिल होने की कतार में खड़े हो रहे हैं। कल जजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष व टोहाना के पूर्व विधायक सरदार निशान सिंह सहित कई नेता कांग्रेस में शामिल होकर कांग्रेस के कुनबे को ओर बड़ा करेंगे।

सिरसा सीट से सैलजा का नाता

सिरसा लोकसभा सीट सैलजा परिवार की पैतृक सीट मानी जाती है। कुमारी सैलजा के पिता चौधरी दलबीर सिंह दिग्गज राजनीतिक रहे हैं। वे चार बार सिरसा से सांसद रह चुके हैं। 1966 को हरियाणा के गठन के बाद 1967 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार वह सिरसा लोकसभा से सांसद बने थे। इसके बाद 1971, 1980 और 1984 में भी सांसद बने। इसके बाद कुमारी सैलजा ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभाली और सिरसा से चुनाव मैदान में उतरी। 1991 और 1996 में हुए सिरसा लोकसभा चुनाव जीतकर वह संसद पहुंची। साल 1998 में हुए संसदीय चुनाव में डॉ. सुशील इंदौरा से पराजित होने के बाद सैलजा ने सिरसा सीट छोड़कर अंबाला शिफ्ट होने का निर्णय लिया। सैलजा की 26 साल बाद सिरसा में फिर से वापसी हो रही है।

भजनलाल परिवार के विरोध के कारण अम्बाला गई थी सैलजा

1998 में डॉ. सुशील इंदौरा से पराजित होकर अम्बाला शिफ्ट होने का बड़ा कारण पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल व उनका कुनबा था। दरअसल, भजनलाल व सैलजा के परिवार की आपस में राजनीतिक रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे। जब-जब सैलजा ने यहां से चुनाव लड़ा, भजनलाल परिवार ने उसका विरोध किया। यही कारण था कि सैलजा सिरसा सीट को अलविदा कहकर अम्बाला चली गई थी। अब माहौल उससे जुदा है। फतेहाबाद में पूर्व विधायक बलवान सिंह का अच्छा दबदबा है। फतेहाबाद विधानसभा में बलवान सिंह की हर वर्ग पर पूरी पकड़ है। खासकर जाट व शहरी मतदाता उनके खास माने जा रहे है। ऐसे में सैलजा को अच्छे वोट मिलेंगे, इसमें कोई दोराय नहीं है।

2019 में सिरसा में पहली बार खिला था कमल

सिरसा लोकसभा सीट पर 2019 में पहली बार कमल खिला था। सुनीता दुग्गल ने सिरसा में भाजपा का सूखा खत्म किया था। मगर उनका टिकट काटकर भाजपा ने डॉ. अशोक तंवर को टिकट दे दिया। वहीं कांग्रेस से सिरसा सीट पर डॉ. सुशील इंदौरा बड़े दावेदार थे। उनको हुड्डा का करीबी माना जाता है और उनका क्षेत्र में प्रभाव भी है। ऐसे में कांग्रेस में गुटबाजी सैलजा को सिरसा में परेशान कर सकती है।

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