Chaitra Navratri 2024: मेवाड़ की शक्ति पीठ ईडाणा माता का अग्नि स्नान, ढाई घंटे तक जलती रही आग, दर्शन करने उमड़ी भीड़

Idana Matas fire bath
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आग की लपटों के साथ ईडाणा माता का अग्नि स्नान।
Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ हो गया है। पहले दिन मंगलवार को राजस्थान के मेवाड़ की शक्ति पीठ ईडाणा माता ने अग्नि स्नान किया। मां की प्रतिमा के चारों ओर आग की लपटें उठने लगी। आधे घंटे तक तेज लपटों के साथ दर्शन हुए।

Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ हो गया है। राजस्थान के देवी मंदिरों में सुबह से श्रद्धालुओं की भीड़ है। उदयपुर से 60 किमी दूर सलंबूर में मेवाड़ की शक्ति पीठ ईडाणा माता ने मंगलवार को अग्नि स्नान किया। सुबह 10: 20 बजे अचानक से मां की प्रतिमा के चारों ओर आग की लपटें उठने लगी। जैसे ही आस-पास के लोगों को इसके बारे में पता चला तो दर्शन के लिए मंदिर में भक्तों की भीड़ लग गई। तेज लपटों के साथ श्रद्धालुओं ने मां के दर्शन किए। ढाई घंटे तक प्रतिमा के आस-पास आग जलती रही। दोपहर 12:30 बजे के बाद जब आग शांत हुई तो माता का नया शृंगार किया गया।बता दें कि मान्यता है कि ईडाणा मां अग्नि स्नान करती हैं, इस दौरान प्रतिमा के पास रखे चढ़ावा और अन्य चीजें जल जाती है और प्रतिमा को कुछ नहीं होता।

माता की प्रतिमा पर नहीं पड़ता कोई प्रभाव
अग्नि स्नान में माता का श्रृंगार, कपड़े और अन्य सामान जलकर भस्म हो जाते हैं। माता की प्रतिमा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मंदिर के पंडित ने बताया कि ईडाणा माता समय-समय पर अग्निस्नान करती रहती हैं। ईडाणा माता स्थित ​गायत्री धाम के आचार्य शैलेश त्रिवेदी ने बताया कि पिछले साल भी 24 मार्च 2023 को चैत्र महीने में ईडाणा माता ने अग्नि स्नान किया था। अग्नि स्नान को लेकर कोई दिन और समय तय नहीं है। यह संयोग है कि इस बार हिंदू नव वर्ष के दिन आज अभिजीत मुहूर्त में अग्नि स्नान शुरू हुआ।

मान्यता पूरी होने पर भक्त त्रिशूल चढ़ाते हैं
मंदिर में मान्यता है कि यहां लकवा से पीड़ित रोगियों को लाया जाता है और यहां से रोगी ठीक होकर जाते हैं। मंदिर में कई त्रिशूल लगे हैं। मन्नतें पूरी होने के बाद यहां भक्त त्रिशूल चढ़ाते हैं। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि हजारों साल से विराजित माता ईडाणा अचानक अग्नि स्नान करती हैं। इसके पीछे का कारण किसी को नहीं पता है। मंदिर के आसपास अगरबत्ती भी नहीं लगाई जाती। पुजारियों ने बताया कि सदियों पहले यहां से पांडव गुजर रहे थे तो उन्होंने माता ईडाणा की पूजा की थी। साथ ही एशिया के सबसे बड़ी मीठे पानी की झेल जयसमंद के निर्माण के समय राजा जयसिंह भी मंदिर पहुंचे थे और पूजा की थी।

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