हरियाणा जनस्वास्थ्य विभाग: सी-ग्रेड के कर्मचारियों को किया नियमित, हाईकोर्ट ने सही नहीं माना, दी जांच की सलाह

Haryana Government
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पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट।
Haryana Government: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कर्मचारियों को रेगुलर करने के मामले को लेकर नाराजगी जताई है। इस मामले में सरकार ने दलीलें दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया है।

Haryana Government: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जनस्वास्थ्य विभाग के वेतनभोगी कर्मचारियों को उचित वर्ग में नियमित न किए जाने को लेकर नाराजगी जताई है। हाईकोर्ट में जनस्वास्थ्य विभाग के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की ओर से पांच रिट याचिकाएं दायर की गई थीं। हाईकोर्ट के जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने इन याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहा कि सी-ग्रेड के कर्मचारी (जल पंप ऑपरेटर) इसी कैटेगिरी में नियमित होने के हकदार थे, लेकिन उन्हें ग्रुप D के पदों पर रेगुलर कर दिया गया। कोर्ट ने माना कि ये कर्मचारी उसी तारीख से सी-ग्रेड पदों पर नियमित होने के हकदार थे, जिस तारीख से समान स्थिति वाले कर्मचारियों को ऐसा लाभ दिया गया था।

क्या है पूरा मामला ?

जस्टिस भारद्वाज की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि उन्हें बताया गया था कि याचिकाकर्ता रेगुलर तौर पर जल पंप ऑपरेटर के रूप में काम करते थे। यह कर्मचारी 31 मार्च, 1993 को रेगुलर पॉलिसी के तहत कट-ऑफ डेट तक 5 साल की सेवा पूरी कर चुके थे। जिसके बाद कर्मचारियों को ग्रुप D पंप अटेंडेंट के तौर पर रेगुलर किया गया था, भले वो सी-ग्रेड पदों पर काम करते थे और उस दौरान पोस्ट भी खाली थी। जिसके बाद 11 मई 1994 को एक पूरक नीति ने ऐसे पदों पर काम करने वाले लोगों के लिए तृतीय श्रेणी (सी-ग्रेड) के पदों पर रेगुलर करने का प्रावधान किया था।

हाईकोर्ट ने सरकार को दी सलाह

हाईकोर्ट ने सरकार को चेतावनी दी कि इस तरह का गैर-अनुपालन मानसिकता को दर्शाता है। जस्टिस भारद्वाज ने कहा कि न्यायालय याचिकाकर्ताओं को अनुचित मुकदमेबाजी में धकेलने के लिए राज्य सरकार पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाना चाहता था। लेकिन कोर्ट ने इसकी जगह राज्य को सलाह दी कि वह पहले इस मामले की पूरी तरह से जांच करे।

सरकार फैसलों का अनुपालन नहीं करती- जस्टिस भारद्वाज

जस्टिस भारद्वाज ने कहा, न्यायालय ने अक्सर यह देखा है कि राज्य आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित फैसलों को इनकार करने के बराबर आपत्तियां उठाता है। राज्य की ओर से ऐसा दर्शाया जाता है कि वह फैसलों का अनुपालन करने का इरादा नहीं रखता है। इस तरह की अनदेखी प्रतिवादी राज्य के खिलाफ कठोर दंड लगाने के लायक है।

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सरकार की इस दलील को खारिज किया

वहीं, राज्य सरकार की ओर से दावा किया गया कि याचिकाकर्ताओं के पास तृतीय श्रेणी (सी-ग्रेड) की नियुक्ति के लिए योग्यता नहीं थी। न्यायमूर्ति भारद्वाज ने इसका खंडन करते हुए कहा कि प्रतिवादी-राज्य की आपत्ति यह थी कि याचिकाकर्ताओं के पास अपेक्षित योग्यता नहीं थी। यानी उनके पास आईटीआई प्रमाणपत्र नहीं था। प्रतिवादी की आपत्ति को इस न्यायालय ने विशेष रूप से यह देखते हुए खारिज कर दिया कि कानून में स्थिति अब एकीकृत नहीं है और खंडपीठ ने भी इस प्रश्न पर विचार किया और प्रतिवादी के खिलाफ फैसला सुनाया।

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(Edited by: Usha Parewa)

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