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हरियाणा लोकसभा चुनाव में भाजपा सूबे की दस की दस सीटों पर कमल खिलाने का दावा कर रही है, लेकिन चंडीगढ़ सीट पर इस बार कमल का फूल खिलने में कई तरह की चुनौतियां सामने आ रही हैं। इस बार यहां भाजपा की ओर से स्थानीय पुराने नेता संजय टंडन को टिकट दिया है लेकिन टंडन के सामने अपनों को मनाने की बड़ी चुनौती पेश आ रही है।

योगेंद्र शर्मा, हरियाणा: हरियाणा लोकसभा मिशन-2024 फतेह करने में जुटे भाजपा के सियासी दिग्गजों को आशा है कि पिछली बार की तरह इस बार भी सूबे की दस की दस सीटों पर कमल का फूल खिलेगा। राजधानी चंडीगढ़ में भी पिछली बार की तरह कमल खिलाने के दावे किए जा रहे हैं। चंडीगढ़ की सीट पर इस बार कमल का फूल खिलने में कई तरह की चुनौतियां सामने आ रही हैं। इस बार यहां भाजपा की ओर से स्थानीय पुराने नेता संजय टंडन को टिकट दिया है लेकिन टंडन के सामने अपनों को मनाने की बड़ी चुनौती पेश आ रही है।

किरण खेर का भाजपा ने काटा था टिकट

भाजपा हाईकमान की ओर से राजधानी चंडीगढ़ में इस बार लोकसभा सीट पर वर्तमान सांसद किरण खेर का टिकट काटकर संजय टंडन को उम्मीदवार बनाने की घोषणा पिछले दिनों कर दी थी। शुरुआती दौर से ही संजय टंडन के नाम के ऐलान के बाद भाजपा के कई वरिष्ठ और पुराने नेताओं द्वारा प्रचार से दूरी बनाई हुई है। इस कारण से टंडन गैरों को छोड़कर अपनों को मनाने में जुटे हुए हैं, उनको पूरा विश्वास है कि वे सभी दिग्गजों को साथ में लेकर चलेंगे।

टिकट की दौड़ वाले नेताओं ने बनाई प्रचार से दूरी

ट्राई सिटी चंडीगढ़ के कई वरिष्ठ नेताओं में कई खुद भी टिकट की दौड़ में जुटे हुए थे। टिकट की दौड़ वाले सभी नेता अपने पार्टी उम्मीदवार संजय टंडन के चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार घोषित होने के बाद टंडन ने सबसे पहले इनमें से अधिकांश से मिलने की मुहिम चलाई हुई है लेकिन इनमें से कुछ अभी भी दूरी बनाए हुए हैं। यहां तक कि प्रचार के लिए मैदान में नहीं उतर पा रहे हैं।

खेर को भी बाहरी उम्मीदवार बताकर हुआ था विरोध

पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा के टिकट पर मैदान में किरण खेर को उतारा गया था, लेकिन शुरुआती दौर में उनको बाहरी उम्मीदवार बताकर लोगों ने विरोध किया। साथ ही किसी स्थानीय नेता को टिकट दिए जाने की मांग रखी थी। हालांकि भाजपा की हवा में खेर चुनौतियों के बाद भी जीत गई थी। इस बार उन्होंने पहले ही खराब सेहत के कारणों से साफ कर दिया था कि वे चुनाव मैदान में उतरने वाली नहीं हैं। इसी तरह से टंडन को भी विश्वास है कि चंडीगढ़ इस बार उनको सांसद बनाकर भेजेगा।

गुटबाजी और खींचतान को लेकर सिरदर्द

2014 से टंडन को अपनी ही पार्टी के भीतर विरोध व चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। पार्टी में गुटबाजी के कारण ही बताया गया कि बाहर से उम्मीदवार उतारा गया था, ताकि स्थानीय गुटों में शांति रहे। 2014 और 2019 में पैराशूट उम्मीदवार किरण खेर को मैदान में उतारा था। खेर ने कांग्रेस उम्मीदवार पवन बंसल को हराकर जीत हासिल की थी। हालांकि, इस बार स्थानीय उम्मीदवार की लगातार मांग उठ रही थी, इसलिए संजय टंडन को चुना गया। चंडीगढ़ के पूर्व सांसद सत्यपाल जैन भी टिकट की मांग कर रहे थे, क्योंकि पुराने दिग्गज जैन हाईकमान में भी अपना दबदबा रखते हैं। संजय टंडन को टिकट मिलने के बाद अब वो भी उनके लिए प्रचार नहीं कर रहे हैं।

भाजपा के नेताओं ने बनाई दूरी

आरएसएस के अनुयायी और भाजपा नेताओं का शहर की कॉलोनियों में खासा प्रभाव है। 2014 और 2019 में भाजपा के चुनाव प्रबंधन का नेतृत्व किया था। हालांकि इस बार उन्हें चुनाव से जुड़ी कोई भूमिका नहीं दी गई है। अरुण सूद एकमात्र ऐसे बड़े भाजपा नेता हैं, जो टंडन के साथ कार्यक्रमों में देखे गए है। टंडन ने किरण खेर से भी मुलाकात कर ली हैं। उनकी ओर से भी प्रचार करने को लेकर आश्वस्त कर दिया है। किरण खेर ने उनसे कहा कि अगर उनकी सेहत ठीक होती तो वे शारीरिक रूप से प्रचार में शामिल हो सकती थी, तो वे फिर से चुनाव लड़ती। वे निश्चित रूप से उनके लिए सॉफ्ट-कैंपेनिंग करेंगी। किरण खेर के अलावा कुछ अन्य चेहरे भी टंडन के प्रचार अभियान में शामिल नहीं हो रहे हैं।

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