जल व जमीन को बर्बाद कर रही क्रेशरों की डस्ट, एक हजार एकड़ में रोकी फसलों की ग्रोथ, सालाना 7 करोड़ का नुकसान

Farmers troubled by crusher dust
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पर्यावरण के साथ जल व जमीन को बर्बाद कर रही क्रेशरों की डस्ट।
महेंद्रगढ़ के निजामपुर क्रेशर जोन से सरकार को राजस्व तथा मजदूरों को रोजगार मिल रहा है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आने शुरू हो गए है।

Mahendragarh News: महेंद्रगढ़ के निजामपुर क्रेशर जोन से सरकार को राजस्व तथा मजदूरों को रोजगार मिल रहा है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आने शुरू हो गए है, क्योंकि जोन के साथ लगते पांच गांवों की करीब एक हजार एकड़ रकबे पर खड़ी फसल डस्ट के दुष्प्रभाव से ग्रोथ नहीं करती। फसल पकने से पहले ही नष्ट होने लगती है। नष्ट हुई फसल से किसानों को सालाना करीब सात करोड़ का नुकसान होता है। परेशान किसानों ने प्रशासनिक अधिकारियों को समस्या से अवगत करवा दिया। बावजूद समाधान नहीं होने से क्रेशर संचालक और प्रशासन के बीच सांठगांठ होने की चर्चाएं हैं।

पास के गांव पर पड़ रहा बुरा प्रभाव

लगभग 20 साल पहले नांगल चौधरी क्षेत्र में क्रेशर संचालन को मंजूरी दी गई थी। तर्क दिया गया था कि क्रेशरों पर ग्रामीणों को नजदीकी रोजगार मिल सकेगा। इसी लालच में उस दौरान ग्रामीण व किसानों ने क्रैशरों का विरोध नहीं किया था। विभिन्न विभागों की एनओसी मिलने के बाद धौलेड़ा, बिगोपुर, जैनपुर, बांयल, बखरीजा, गोलवा, खातोली के आसपास 150 से अधिक क्रेशर स्थापित हो गए। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने एनओसी रिलीज करने से पहले हस्ताक्षर युक्त शपथ पत्र लिए थे। जिसमें पौधारोपण, पानी का छिड़काव, प्राथमिक उपचार कैंप, मजदूरों की सुरक्षा संबंधित इंतजाम की गारंटी ली गई थी। क्रेशर जोन स्थापित होने के बाद (2006 में) नांगल चौधरी, निजामपुर ब्लॉक को डार्क जोन घोषित कर दिया गया।

नियमों का पालन नहीं

नियमानुसार डॉर्क जोन में नए बोरवेल व बिजली कनेक्शन की अनुमति नहीं होती। भूजल का कमर्शियल इस्तेमाल भी नहीं कर सकते, जिनकी निगरानी व कार्रवाई की जिम्मेदारी ग्राउंड वाटर सेल विभाग को दी गई है। जिसने भूजल का कमर्शियल इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी। यदि डॉर्क जोन के अंतर्गत भूजल का कन्वेयर पर छिड़काव किया गया तो ग्राउंड वाटर सेल कार्रवाई करेगा।

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PCB ने पानी छिड़काव ने दिए निर्देश

प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के निर्देशानुसार कन्वेयर पर बिना पानी छिड़काव किए क्रेशर चला नहीं सकते। ऐसे में सरकार की ओर से निर्धारित नियमों की पालना करे तो ग्राउंड वाटर सेल विभाग कार्रवाई करेगा, नहीं किया तो प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड यूनिट को सील कर देगा। ग्रामीणों ने बताया कि रिकॉर्ड को पूरा करने के लिए क्रेशर संचालक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नारनौल से पानी उठाने की रसीद कटवा लेते हैं। मौके पर पानी छिड़काव होता ही नहीं, जिस कारण गांवों में डस्ट का प्रकोप रहने से लोगों का स्वास्थ्य और फसल दोनों चौपट हो रहे हैं।
नुकसान झेल रहे किसान

कृषि विभाग के बीएओ डा. हरीश यादव के मुताबिक एक एकड़ रकबे में 10 क्विंटल सरसों तथा 15 क्विंटल बाजरे का उत्पादन संभव है। समर्थन मूल्य के अनुसार 70 हजार का अनाज तथा 10 हजार का पशुचारा बिकेगा। एक हजार एकड़ में फसल नष्ट होने पर विभिन्न गांवों के किसानों को लगभग सात करोड़ रुपये सालाना नुकसान हो रहा है। जिसमें बिजाई, जुताई व खाद-बीज का खर्चा शामिल नहीं किया गया।

ओवरलोड से सड़कें जर्जर

क्रेशर जोन स्थापित होने से क्षेत्र में ओवरलोड वाहनों को बढ़ावा मिला है। इधर ग्रामीण सड़कें आठ-दस टन से अधिक वजन नहीं झेल सकती। 40-50 टन वजन पड़ने से कई गांवों की सड़कें गारंटी अवधि खत्म होने से पहले ही जर्जर हो चुकी हैं। टूटी सड़क पर वाहनों की दुर्घटना बढ़ गई।

नियमों की पालना नहीं करने पर होगा एक्शन

प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के एसडीओ अनुज नारवाल ने बताया कि क्रेशर संचालकों को कन्वेयर पर पानी छिड़काव करने के निर्देश हैं। नियमों की पालना नहीं करने वाले के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि किसानों की शिकायत वाजिब हैं, क्योंकि डस्ट उड़ने से लेबर व ग्रामीणों का स्वास्थ्य तथा फसलों को नुकसान होता है। औचक निरीक्षण करके क्रैशरों के मापदंड चेक करने की योजना बनाई गई है।

दमा और आंखों के मरीज बढ़े

क्रेशर की डस्ट फसलों के नुकसान तक ही सीमित नहीं है। इससे ग्रामीण स्वास्थ्य भी प्रभावित होने लगा है। धौलेड़ा, बिगोपुर व खातोली के ग्रामीणों ने बताया कि शाम होते ही क्रेशर चालू हो जाते हैं। पानी छिड़काव नहीं होने के कारण डस्ट से प्रदूषित हो जाता है। जिससे गांवों में दमा, एलर्जी व आंख संबंधित बीमारियां बढ़ गई। हालांकि सर्दी के समय इसके नुकसान ज्यादा देखने को मिल रहा है।

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