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रोहतक लोकसभा क्षेत्र से दीपेंद्र सिंह हुड्डा का लड़ना लगभग तय है, लेकिन उन्हें कोसली क्षेत्र से लोगों के साथ नहीं मिल रहा। इसके लिए दीपेंद्र ने हलके के छोटे-बड़े नेताओं को साथ जोड़ने पर ही ज्यादा फोकस किया, जबकि उसके खास कार्यकर्ता अब दूरी बनाने लगे है। ऐसे में दोबारा दीपेंद्र को कहीं इस क्षेत्र से हार का सामना न करना पड़े।

नरेन्द्र वत्स, रेवाड़ी: रोहतक लोकसभा क्षेत्र से दीपेंद्र सिंह हुड्डा का कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ना लगभग तय माना जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनावों में कोसली हलके में बड़ी हार के कारण सीट गवां चुके दीपेंद्र का हलके के छोटे-बड़े नेताओं को साथ जोड़ने पर ही ज्यादा फोकस रहा है। आम कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं मिलने से उनका दीपेंद्र के चुनाव को लेकर उत्साह गायब नजर आ रहा है। टिकट के आश्वासन पर अपने साथ जोड़े गए नेताओं से भी बड़े चमत्कार की उम्मीद कम नजर आ रही है। कार्यकर्ताओं की नाराजगी कोसली में दीपेंद्र को एक बार फिर झटका दे सकती है।

नया हलका बनने के बाद से बढ़ा महत्व

लगभग 2.5 लाख मतदाताओं वाले कोसली विधानसभा क्षेत्र का महत्व नया हलका बनने के बाद से ही बढ़ा हुआ है। रोहतक लोकसभा क्षेत्र का यह अकेला हलका अहीर बाहुल्य है। गत लोकसभा चुनावों में मुकाबला जाट और नॉन जाट प्रत्याशी में बदल गया था, जिस कारण भाजपा प्रत्याशी डॉ. अरविंद शर्मा को इस हलके में 70.94 फीसदी वोट मिले थे। उनके प्रतिद्वंद्वी दीपेंद्र हुड्डा को कोसली के मतदाताओं ने 25.8 फीसदी मतों पर समेट दिया था, जिससे कई हलकों में जीत दर्ज करने वाले दीपेंद्र को हार का सामना पड़ा था। दीपेंद्र ने हार के बावजूद कोसली हलके पर पूरा फोकस किया। हलके में हुई करारी हार को जीत में बदलने के लिए उन्होंने आम कार्यकर्ताओं से ज्यादा नेताओं पर भरोसा जताया है। कांग्रेस के पुराने नेताओं में उनके पास पूर्व विधायक राव यादुवेंद्र सिंह हैं।

हलके से पहले विधायक रह चुके यादुवेंद्र सिंह

यादुवेंद्र वर्ष 2009 में बने इस हलके के पहले विधायक रह चुके हैं। वह चुनाव जीतने के बाद अक्सर हलके से गायब रहे थे, जिस कारण वर्ष 2014 व 2019 में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। हार के बाद भी उनकी कार्यकर्ताओं से लगातार दूरी बनी रही। एक बार फिर से विधानसभा की सीट हुड्डा पिता-पुत्र के जरिए कंफर्न करने के लिए उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले सक्रियता बढ़ाई, लेकिन जनाधार के नाम पर यादुवेंद्र के हाथ खाली नजर आ रहे हैं। गत दिनों उन्होंने डहीना में जनसभा के जरिए ताकत दिखाने का प्रयास किया था, जिसमें वह पूरी तरह कामयाब नहीं हो सके थे।

जनाधार को देखकर जगदीश को जोड़ा

दीपेंद्र हुड्डा ने व्यक्तिगत जनाधार रखने वाले पूर्व मंत्री जगदीश यादव को कोसली में अपने साथ जोड़ लिया था, ताकि गत लोकसभा चुनावों में हुए नुकसान की भरपाई की जा सके। यादुवेंद्र और जगदीश के बीच छत्तीस का आंकड़ा होने के कारण यह जरूरी नहीं कि दीपेंद्र को जगदीश समर्थकों का खुलकर साथ मिल सके। दीपेंद्र ने अनिल पाल्हावास को भी भाजपा से निकालकर कांग्रेस ज्वाइन कराई थी। टिकट की पक्की गारंटी के बिना जगदीश के खुलकर साथ दिए जाने की उम्मीद दीपेंद्र को छोड़नी पड़ सकती है।

पुराने समर्थकों का उत्साह हुआ गायब

कोसली में दीपेंद्र के साथ काफी समय से जुड़े मनोज कोसलिया व कई अन्य चेहरे ऐसे हैं, जो पूरी ईमानदारी के साथ दीपेंद्र के लिए काम करते रहे हैं। यादुवेंद्र की टिकट कटने की सूरत में कई दावेदार लाइन में थे, लेकिन जगदीश और अनिल पाल्हावास को कांग्रेस ज्वाइन कराने से पुराने समर्थकों का उत्साह गायब हो चुका है। दीपेंद्र के पास इस हलके में टिकट की उम्मीद रखने वाले चेहरे ज्यादा हैं, जबकि आम कार्यकर्ताओं की भारी कमी देखने को मिली रही है।

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